लखनऊ: राष्ट्रीय प्राथमिकता वाले रोगों (परजीवी, संक्रामक, एवं अस्थि संबंधी विकार) के क्षेत्र मे नए रसायनिक तत्वों की खोज एवं विकास के मिशन पर सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ विभिन्न विषयों पर विशेषज्ञता को सम्मिलित करके ‘हिट्स’ को नए “ड्रग केंडीडेट्स” मे परिवर्तित करने मे नोडल सेंटर के रूप मे कार्य करने की ओर ध्यान केन्द्रित कर रहा है। उदाहरण के लिए, हाल ही मे फ्रेक्चर के तेजी से उपचार एवं मेनोपाज़ के पश्चात होने वाले ऑस्टियोपोरोसिस के प्रबंधन हेतु डल्बर्जिया सिसु (शीशम) के मानकीकृत सत्त जिसे रीयूनियन के ब्रांड नाम से लाइसेन्स देने के 10 महीनों की अल्प अवधि मे बाजार मे विपणन हेतु लांच कर दिया गया है । निदेशक, डॉ मधु दीक्षित ने अशोक होटल नई दिल्ली में आयोजित निदेशकों की बैठक के बाद आज संवाददाताओं के साथ बातचीत मे बताया कि, “मई के प्रथम सप्ताह में सीएसआईआर के अध्यक्ष एवं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के जोशपूर्ण आह्वान का अनुसरण करते हुए स्वास्थ्य के क्षेत्र मे सामाजिक समस्याओं के प्रबंधन के लिए संस्थान फास्ट ट्रैक ट्रांसलेशनल प्रोजेक्ट (एफटीटीपी) मोड मे उच्च प्राथमिकता के साथ परियोजनाओं को गति देने के लिए दृढ़ता से संकल्पबद्ध है। उन्होने आगे बताया कि मुख्य प्राथमिकता वाले वह क्षेत्र जिनमे संस्थान अगले दो वर्षों मे समाज को वास्तविक लाभ दिलाने के लिए अपने संसाधनो का प्रयोग करेगा निम्नलिखित हैं-
1 मलेरिया – गरीबी की एक बीमारी
विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2015 की विश्व मलेरिया रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 मे विश्व मे मलेरिया के 214 मिलियन मामले सामने आए। मलेरिया भारत की एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र मलेरिया के फैलने के लिए बहुत ही संवेदनशील हैं। मलेरिया का केंद्रिक प्रकोप एक सामान्य घटना है विशेष रूप से असम के जंगलों के किनारे बसे गाँव, अरुणाचल प्रदेश की सीमा के क्षेत्र । मलेरिया परजेवी पी फेल्सिपेरम से होने वाली 40% से अधिक मृत्यु सिर्फ ओडिशा राज्य मे होती हैं । सीएसआईआर-सीडीआरआई राष्ट्रहित और इसकी गरीब असुरक्षित जनसंख्या के हित मे इस भयानक बीमारी के लिए औषधि अनुसंधान पर लगातार कार्य कर रहा है और समस्या के तत्काल समाधान हेतु एफटीटीपी मोड पर नई मलेरिया रोधी केंडीडेट ड्रग 97/78 पर कार्य प्रारम्भ कर चुका है । मलेरिया के चूहा एवं बंदर दोनों माडल्स मे सभी तीनों माध्यम जैसे मौखिक, इंट्रामस्कुलर व इंट्रावेनस तौर से सक्रिय होने के साथ ही 97/78 एक सक्रिय शाइजोन्टीसाइडल है, मल्टीड्रग रेजिस्टेंट प्लाज्मोडियम के विरुद्ध (क्लोरोक्विन रेजिस्टेंट पी फेल्सिपेरम पात्रे, एमडीआर पी योली , चूहों मे एवं पी सायनोमोल्गि, रिसस बंदर मे) भी सक्रिय है। इसके विकास हेतु सभी आवश्यक कार्य जैसे ओरल फोर्मूलेशन, पूर्व क्लीनिकल परीक्षण, औषधि प्रभावगति अध्ययन, जन्तु औषधि प्रभाव एवं विषविज्ञान, पुरुष एवं महिला प्रजनन एवं विकासीय विषालुता अध्ययन पूर्ण किए जा चुके हैं एवं भारत में आईएनडी अनुमोदन प्राप्त किया जा चुका है। अब प्रथम चरण के क्लीनिकल परीक्षण का अध्ययन शुरू किया जाना है।
2 ऑस्टियोपोरोसिस- भारतीय महिलाओं की एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या
इस समस्या से विश्व मे 200 मिलियन महिलाएं प्रभावित हैं जिनमे से एक चौथाई भारत मे निवास करती हैं। सम्पूर्ण विश्व मे वर्ष भर मे 8.9 मिलियन फ्रेक्चर्स (प्रति 3 सेकंड मे 1 की दर से) ओस्टियोपोरोसिस की वजह से होते हैं। इस समस्या की रोकथाम व निदान के लिए सीएसआईआर-सीडीआरआई द्वारा एफटीटीपी मोड पर एक आशाजनक विकल्प के रूप मे एंटिओस्टिओपोरोटिक केंडीडेट ड्रग 99/373 तैयार किया जा रहा है। यह बहुत ही किफ़ायती व मुख से लेने वाला सक्रिय योगिक है जो वर्तमान मे उपलब्ध दवाइयों जैसे रेलोक्सिफिन एवं बिसफोस्फ़ोनेट की तुलना मे अधिक उपयोगी है एवं प्रीक्लीनिकल रेग्युलेटरी फर्माकोलोजी एवं विषालुता अध्ययनो मे सुरक्षित पाया गया है। हमे प्रथम चरण के क्लीनिकल परीक्षण के लिए डीसीजीआई की अनुमति प्राप्त हो चुकी है। समाज को शीघ्र लाभ पहुँचाने के लिए यह ड्रग लाइसेन्स करने एवं आगे के विकास तथा व्यवसायीकरण हेतु उपलब्ध कर दिया गया है।
3 कार्डियोवस्कुलर डिजीज- तीव्रता से बढ़ती हुई एक दीर्घावधि (लंबी) बीमारी
भारत मे कार्डियोवस्कुलर (हृदय व धमनी संबंधी) बीमारियों मे तेजी से बढ़ने वाली दीर्घ अवधि की बीमारियों (9.2% वार्षिक वृद्धि दर के साथ) मे मुख्य है। न्यूनतम ब्लीडिंग रिस्क (रक्तस्राव के जोखिम) के साथ प्रभावी व दक्षतापूर्ण उपचार या निदान की उपलब्धता/सर्वसुलभता ही इस बीमारी के इलाज मे मुख्य चिंता का विषय है। वर्तमान मे उपलब्ध एंटीथ्रोंबोटिक ड्रग्स मे कुछ महत्वपूर्ण कमियाँ हैं जो उपचार मे इन का उपयोग सीमित कर देती हैं। उपचार की इन अनुपलब्ध अवश्यकताओं को ध्यान मे रखते हुये सीएसआईआर-सीडीआरआई ने एक नवीन एवं सुरक्षित एंटीथ्रोंबोटिक एजेंट विकसित किया है।
एंटि-प्लेटलेट ड्रग्स का मार्केट लगभग 15 मिलियन डालर (कुल एंटीथ्रोम्बोटिक मार्केट का 58%) का है जो विश्व ड्रग मार्केट का कुल 5 फीसदी है। इस श्रेणी मे एस007-867, पहला नवीन एवं प्रभावी एंटि-प्लेटलेट केंडीडेट ड्रग है। इस सुरक्षित एवं टार्गेट सिलेक्टिव एंटि-थ्रोम्बोटिक लीड एस007-867 को अब सीएसआईआर-सीडीआरआई ने एफटीटीपी मोड मे लिया है जो इंट्रावस्कुलर आर्टेरीयल थ्रोंबोसिस के उपचार मे उपयोगी सिद्ध होगा। यह यौगिक कोलेजन आधारित प्लेटलेट एक्टिवशन को सिलेक्टिवली इन्हिबिट करता है। कोलेजन एक्टिवेशन का फार्मेकोलोजिकल इन्हिबिशन एक प्रभावी चिकित्सकीय निदान माना जाता है। एस007-867, कोलेजन इंड्यूज्ड प्लेटलेट एक्टिवेशन को रोकने वाला विशिष्ट एवं शक्तिशाली इन्हिबिटर है जो आर्टेरीयल थ्रोंबोसिस के अनेक एनिमल माडल्स मे उच्च सक्रियता दिखा चुका है। प्रिक्लीनिकल अध्ययन दर्शाते हैं, कि वर्तमान मे इस्तेमाल किए जाने वाले एस्परीन एवं क्लोपीडोग्रेल की तुलना मे इस यौगिक का ब्लीडिंग (रक्तस्राव) मे कमतर प्रभाव है। चूहों मे एक्यूट टोक्सिसिटी अध्ययनों मे इस यौगिक ने अनुकूल सेफ़्टी प्रोफ़ाइल का प्रदर्शन किया है।
अब एस007-867 का मूल्यांकन पहिले नॉन-रोडेंट एनिमल मॉडल मे किया जाएगा तत्पश्चात आईएनडी फाइल की जाएगी एवं डीसीजीआई से क्लीनिकल ट्राइल के लिए अनुमति मांगी जाएगी।