वाशिंगटन: अमेरिकी सीनेटरों ने मंगलवार को ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास की भारत की योजना पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि व्यापार के विस्तार के लिए की जा रही यह कवायद कहीं अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को उल्लंघन तो नहीं है। अमेरिकी विदेश विभाग के एक अधिकारी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि प्रशासन इस योजना पर बारीकी से निगाह जमाए हुए है।
दक्षिण और मध्य एशिया मामलों की प्रभारी सहायक विदेश मंत्री निशा देसाई बिस्वाल ने मंगलवार को कहा, 'ईरान के संबंध में प्रतिबंध के बावजूद भारतीयों की ओर से गतिविधियां जारी रखने को लेकर हम बेहद स्पष्ट हैं।' उन्होंने कहा कि हमें चाबहार के बारे में की गई घोषणा का परीक्षण करते हुए यह देखना होगा कि यह पूरी तरह से सही है या नहीं।
चाबहार बंदरगाह के विकास से जुड़े द्विपक्षीय समझौते के अलावा भारत, अफगानिस्तान और ईरान ने परिवहन और ट्रांजिट कॉरिडोर पर एक त्रिपक्षीय समझौते पर दस्तखत किए हैं। परिवहन और ट्रांजिट कॉरिडोर समझौते के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इससे 'क्षेत्र के इतिहास की धारा बदल सकती है।' गौरतलब है कि भारत चाबहार बंदरगाह के लिए 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगा। दूसरी ओर, अमेरिका और यूरोप में जनवरी में एक समझौते के तहत इस शर्त के साथ ईरान पर से प्रतिबंध हटाए हैं कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करेगा हालांकि व्यापार से जुड़े कुछ प्रतिबंध अभी भी कायम हैं।
बिस्वाल ने कहा कि उनका मानना है कि भारत के ईरान के साथ रिश्ते प्राथमिक तौर पर आर्थिक और ऊर्जा के मु्द्दे पर आधारित हैं और अमेरिकी प्रशासन व्‍यापारिक रास्ते (ट्रेड रूट) के लिए भारत की जरूरतों का भली भांति समझता हैं। उन्‍होंने कहा कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में ईरान, भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्‍य एशिया का द्वार खोलता हैं। यह भारत को वह 'पहुंच' उपलब्‍ध कराता है जो किस अभी उसके पास नहीं है।
बिस्वाल के अनुसार,उन्‍हें भारत के ईरान के साथ सैन्य सहयोग जैसे किसी रिश्ते के संकेत नहीं मिले हैं जो कि निश्चित रूप से अमेरिका के लिए चिंता का विषय बन सकते थे। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अगले माह अमेरिका का दौरा करना है जहां वह अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को संबोधित करेंगे।