गुवाहाटी: असम चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ का किंगमेकर बनने का सपना साकार नहीं हो सका , चुनाव में अजमल को खुद हार का सामना करना पड़ा।
चुनाव में जहां भाजपा नीत गठबंधन 87 सीटें जीतकर राज्य में सत्ता पर कब्जा जमाने के करीब पहुंच गई है वहीं 2011 में 18 सीट जीतने वाली अजमल की एआईयूडीएफ को इस बार 13 सीटें ही मिलती दिख रही हैं। पिछले विधानसभा में अजमल की पार्टी मुख्य विपक्षी दल थी।
एआईयूडीएफ प्रमुख और धुवरी से सांसद बदरुद्दीन अजमल की 16,723 मतों से हार हुई। उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी वाजिद अली चौधरी ने पराजित किया। चुनाव में मतदान के दौरान बदरुद्दीन अजमल ने भविष्यवाणी की थी कि इस चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिलेगा और वे किंगमेकर की भूमिका में होंगे। उन्होंने संकेत दिया था कि वे कांग्रेस के साथ जा सकते हैं। हालांकि बदरुद्दीन की पेशकश को कांग्रेस ने तब यह कहकर खारिज कर दिया था कि उसे किसी की जरूरत नहीं पड़ेगी।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, चुनाव के दिन अजमल ने भाजपा से दूरी बनाने की बात संभवत: इसलिए की थी क्योंकि मतदाताओं के बीच यह संदेश न फैल जाए कि चुनाव के बाद एआईयूडीएफ, भाजपा का दामन थाम सकती है। बिहार में कांग्रेस की सहयोगी जेडीयू ने असम में आरजेडी तथा एआईयूडीएफ के साथ तालमेल करके लोकतांत्रिक मोर्चा बनाया है और बदरुद्दीन अजमल इस मोर्चे के नेता हैं। लोकतांत्रिक मोर्चा के कांग्रेस के वोट में सेंध लगाने का अनुमान व्यक्त किया जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, कांग्रेस और भाजपा दोनों परोक्ष रूप से एआईयूडीएफ नेता बदरुद्दीन अजमल को अपने पाले में करने की कोशिश में थे, लेकिन सार्वजनिक तौर पर यह दोनों पार्टियां मौलाना के खिलाफ ही नजर आईं जिसका कारण बांग्लादेशी घुसपैठिये के मुद्दे को बताया जा रहा है।
इस चुनाव में गोगोई ने बीजेपी को बाहरी बताकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की। पूरे चुनाव में गोगोई ने बीजेपी पर असम में घुसपैठ करने का आरोप लगाया है। बिहार चुनाव में नीतीश के नारे का सहारा गोगोई असम चुनाव में लेते दिखे। बांग्लादेशी घुसपैठिये के विषय को चुनावी मुद्दा बनाने का भी नुकसान अजमल की पार्टी को उठाना पड़ा। समय-समय पर असम की राजनीति में प्रतिबंधित संगठन उल्फा समेत अन्य स्थानीय संगठन इस तरह से असमिया अस्मिता के विषय को पेश करते रहे हैं।