नई दिल्ली : नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने नालंदा विश्वविद्यालय चांसलर (कुलाधिपति) के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल के लिए यह कहते हुए अपना नाम वापस ले लिया है कि नरेंद्र मोदी सरकार नहीं चाहती कि वह पद पर बरकरार रहें।

लंबे समय से मोदी के आलोचक रहे सेन ने विश्वविद्यालय के गवनि’ग बोर्ड को लिखे पत्र में एक महीने पहले उनके नाम की सिफारिश किए जाने के बावजूद सरकार की ओर से उसका अनुमोदन नहीं किए जाने को विजिटर, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मंजूरी मिलने में विलंब का कारण बताया ।

पत्र में उन्होंने लिखा है, ‘ (सरकार की तरफ से) कार्रवाई नहीं करना बोर्ड के फैसले को पलटने के लिए समय नष्ट करने का एक तरीका है। ऐसे में जब सैद्धांतिक आधार पर सरकार के पास कार्रवाई करने और नहीं करने का अधिकार है..मेरे लिए यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं है कि सरकार जुलाई के बाद नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के तौर पर मेरे कार्यकाल की समाप्ति चाहती है और तकनीकी तौर पर उसे ऐसा करने का अधिकार है।’ उन्होंने कहा कि यह अनिश्चितता और फैसला लेने में देरी नालंदा विश्वविद्यालय प्रशासन और इसकी अकादमिक प्रगति के लिए मददगार नहीं है।

उन्होंने लिखा है, ‘इसलिए मैंने फैसला किया है कि मुझे जुलाई के बाद भी इस पद पर बनाए रखने की सर्वसम्मत सिफारिश और गवर्निंग बोर्ड के अनुरोध के बावजूद नालंदा विश्वविद्यालय की बेहतरी के लिए अपने नाम को हटा लेना चाहिए।’ उन्होंने कहा, यह स्पष्ट है कि सरकार की मंजूरी के बिना मुखर्जी बोर्ड के सर्वसम्मत चयन पर अपनी संस्तुति देने की स्थिति में नहीं हैं ।