अहमदाबाद। इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में करीब साढ़े सात साल से जेल में बंद पूर्व आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा बुधवार को जमानत पर जेल से बाहर आ गए। सीबीआई की विशेष अदालत ने वंजारा और तीन अन्यों को 5 फरवरी को जमानत दे दी थी। वंजारा को दो लाख के मुचलके पर जेल से रिहा किया गया है। साथ ही अदालत ने उनके गुजरात प्रवेश पर रोक लगा दी है। 

हालांकि, अदालत ने हर शनिवार को पूर्व आईपीएस अधिकारी को अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के साथ साथ देश नहीं छोड़कर नहीं जाने का आदेश दिया है। सीबीआई ने वंजारा को तुलसी प्रजापति, सोहराबुद्दीन शेख और इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामलों में आरोपी बनाया था। फर्जी मुठभेड़ों के दौरान, वह आतंकवाद विरोधी यूनिट (एटीएस) के प्रमुख थे। 

सीआईडी-क्राइम ब्रांच ने 24 अप्रेल 2007 को वंजारा को 2005 में हुए सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में गिरफ्तार किया था और वह तब से जेल में बंद थे। वंजारा अहमदाबाद क्राइम ब्रांच में पुलिस उपायुक्त थे जब जून 15, 2004 को शहर के बाद पुलिस ने कथित फर्जी मुठभेड़ में मुंबई की कॉलेज छात्रा इशरत जहां, जावेद शेख उर्फ प्रनेश पिल्ले, अमजदाली अकबराली राना और जीशन जोहर को मार गिराया था।

मुठभेड़ के बाद पुलिस ने कहा था की मारे गए लोग लशकर ए तय्यबा के सदस्य थे और ये लोग तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने के लिए ही गुजरात आए थे। मामले की जांच के लिए गुजरात हाई कोर्ट ने विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था। हालांकि, बाद में मामले को एसआईटी से लेकर सीबीआई को सौंप दिया गया था। 

सीबीआई ने अगस्त 2013 मे दायर अपनी चार्जशीट में कहा था कि मुठभेड़ फर्जी थी और इसे अहमदाबाद पुलिस और सबस्डियरी इंटेलीजेंस ब्यूरो (एसआईबी) ने संयुक्त रूप से अंजाम दिया था। उल्लेखनीय है कि वंजारा ने पिछले साल जमानत याचिका यह कहते हुए दायर की थी की वह सात साल से ज्यादा समय से जेल में बंद हैं। इसलिए, उन्हें जेल से रिहा किया जाना चाहिए।