गांधी पर लगाए गंभीर आरोप, पार्टी में बचा है लोकतंत्र 

नई दिल्ली: तमिलनाडु की वरिष्ठ नेता औोर पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंति नटराजन ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है।  नटराजन ने इसकी वजह का बताते हुए पार्टी पर राह से भटकने का आरोप लगाया हैयहीं बचा है , उन्होंने कहा कि कांग्रेस अब वो पार्टी नहीं रह गई, जिससे वे जन्म से ही जुड़ी हैं।  उन्होंने कहा कि उनके लिए निहायत ही दुख भरा दिन है क्योंकि उनका परिवार कांग्रेस पार्टी से इसकी स्थापना के समय से ही जुड़ा हुआ है, उनके पितामह तमिलनाडु के अंतिम मुख्यमंत्री थे। 

जयंति ने सीधे राहुल गांधी पर हमला करते हुए कहा कि वे चाहते थे कि बड़ी परियोजनाओं को तुरत फुरत हरी झंडी मिल जाए।  उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि परियोजनाओं को ज़ल्दी से मंजूरी देने की बात राहुल ने फिक्की की सभा में कही, पर सरकार ने इसके लिए कोई दिशा निर्देश जारी नहीं किया था।  पार्टी की इस वरिष्ठ नेता ने कहा कि राहुल गांधी ने उन्हें ख़त लिख कर यह भी कहा कि अडानी से जुड़ी परियोजना को मंजूरी नहीं दी जाए।  उनका कहना था, “मैंने एक दिन बाथरूम में अडानी समूह से जुड़ी फ़ाइल फेंकी हुई देखी,“ नटराजन ने यह भी आरोप लगाया कि पार्टी ने उनसे ‘स्नूपगेट’ के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी पर तीखे हमले करने को कहा था। 

नटराजन ने कहा, “मै मोदी की नीतियों पर हमला करना चाहती थी, पर व्यक्तिगत आक्षेप करना नहीं चाहती थी, पर मैं मजबूर थी।  मैंने पार्टी के आदेश का पालन करते हुए यह भी किया,” जयंति के मुताबिक उन्हें प्रधानमंत्री ने एक दिन बुला कर कह दिया कि आप इस्तीफ़ दे दें. उन्होंने इसका कोई कारण नहीं बताया। 

जयंति नटराजन ने कहा, “इसके बाद पार्टी फोरम पर मुझ पर लगातार हमले होते रहे, मेरे ख़िलाफ़ मीडिया में कहानियां लीक कराई गईं, मुझे परेशान किया गया।  पार्टी की हार के बाद भी मैंने राहुल गांधी और पार्टी प्रमुख को कई चिट्ठियां लिख कर अपनी बात रखनी चाही।  पर मुझे इसका मौक़ा अब तक नहीं मिला है। ” जयंति नटराजन ने कहा कि कांग्रेस में अंदरूनी लोकतंत्र नहीं बचा है।  जयंति नटराजन ने कहा कि राजीव गांध की नीति थी कि पर्यावरण की रक्षा हर क़ीमत पर होनी चाहिए, इसके लिए कितनी बड़ी कुर्बानी क्यों न चुकानी पड़़े।  उन्होंने कहा कि पर्यावरण मंत्री रहते हुए राहुल गांधी ने उनके कामकाज में हस्तक्षेप किया था। 

नटराजन के मुताबिक, वेदांता समूह के उड़ीसा में बाक्साइट खनन परियोजना के बारे में राहुल गांधी ने अपनी राय से अवगत करा दिया था और उन्होंने उनकी बात का सम्मान करते हुए यह भरोसा दिलाया कि आदिवासियों के हितों का पूरा ख्याल रखा जाएगा। इसके बाद वेदांता को मंजूरी देने से इनकार कर दिया गया था। अदानी ग्रुप के प्रोजेक्टस के बारे में कुछ एनजीओ ने नियमों का उल्लंघन की शिकायत की थी। राहुल गांधी के कार्यालय द्वारा इस संबंध में पहले नटराजन से कांग्रेस मंत्री दीपक बाबरिया से संपर्क करने को कहा गया।

पत्र में सोनिया गांधी को संबोधित करते हुए नटराजन ने लिखा है, ”आपने भी मुझे लिखे अपने पत्रों में हिमाचल प्रदेश के धारी देवी मंदिर में जीवीके पावर प्रोजेक्ट्स, महाराष्ट्र के लवासा प्रोजेक्ट और गुजरात के निरमा सीमेंट प्रोजेक्ट के संबंध में अपनी चिंता जाहिर की थी। मैँने इन प्रोजेक्ट्स के संबंध में लिए अपने फैसलों में इसका जिक्र भी किया था। ”नटराजन ने अपने पत्र में लिखा है कि उन्होंने 30 साल तक निष्ठापूर्वक तरीके से कांग्रेस की सेवा की। इस दौरान उनके दामन पर एक भी दाग नहीं लगा, लेकिन इस प्रकरण से उनकी और उनके परिवार की छबि को गहरा धक्का लगा है।

जयंती नटराज ने पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव से सिर्फ 100 दिन से पहले ही अपने पद से इस्तीफा दिया था। तब कांग्रेस द्वारा कहा गया था कि पार्टी का कामकाज संभालने के लिए नटराजन ने इस्तीफा दिया। बाद में राहुल ने इस तरह की छबि बनाने की कोशिश की कि नटराजन ने पार्टी का कामकाज संभालने के लिए इस्तीफा नहीं दिया, बल्कि उन्हें आलाकमान द्वारा पर्यावरण मंत्रालय छोड़ने को कहा गया था। अब पत्र में नटराजन ने लिखा है कि उन्हें आज तक नहीं पता कि उनसे इस्तीफा क्यों लिया गया। नटराजन के मुताबिक, पर्यावरण मंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद राहुल गांधी के दफ्तर से उनके खिलाफ मीडिया में नकारात्मक प्रचार चलाया गया। इस्तीफे के एक दिन बाद फिक्की के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राहुल ने उद्योगपतियों से कहा था कि अब उन्हें पर्यावरण संबंधी अनुमतियों के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा। पत्र में इस ओर भी इशारा किया गया है कि राहुल यूपीए-2 सरकार के कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, ”यूपीए सरकार में विकास संबंधी प्रोजेक्टस को पर्यावरण अनुमति देने के संबंध में जो अफवाहें चर्चा में थी, वे अब सच साबित हुई हैं। यह साफ हो गया है कि यूपीए सरकार ने कानूनी प्रक्रिया से अलग मनमानी तरीके से विकास संबंधी प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी। इन फैसलों में पार्टी का हित देखा गया और आम लोगों को परेशान किया गया। प्रधानमंत्री पूरे मामले में मूकदर्शक बने रहे। अब यह पर्यावरण मंत्रालय का दायित्व है कि इन प्रोजेक्ट्स पर दोबारा विचार करे और मंजूरी के संबंध में कानून के मुताबिक फैसला करे।”