नई दिल्ली : केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सेंसर बोर्ड) की अध्यक्ष लीला सैमसन के इस्तीफे के बाद उनके समर्थन में बोर्ड के 8 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। सूत्रों ने बताया कि लीला के समर्थन में 8 सदस्यों ने दस्तखत किए हैं और सूचना प्रसारण मंत्रालय को भेज दिया है।
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड यानी सेंसर बोर्ड के जिन सदस्यों ने इस्तीफा भेजा है उनमें केसी शेखर बाबू, कांग्रेस कार्यसमिति में सचिव पंकज शर्मा, शाजी करुण, ममंग दई, ईरा भास्कर, राजीव मसंद, शुभ्रा गुप्ता, अरुंधती नाग, एम के रैना, निखिल अल्वा और लोरा के प्रभु शामिल हैं। सरकारी हस्तक्षेप के मसले पर सेंसर बोर्ड के दो सदस्यों एम के रैना और अंजुम राजाबली करीब एक महीने पहले इस्तीफा दे चुके हैं। अध्यक्ष के अलावा कुल 23 सदस्य थे।
लीला सैमसन और ईरा भास्कर के इस्तीफों के बाद उनके साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए प्रख्यात फिल्म निर्माता शाजी एन करूण ने भी केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया है और साथ ही बोर्ड की कार्यशैली पर गहरा असंतोष जाहिर किया है।
बीती शाम सैमसन को अपना इस्तीफा भेजने वाले करूण ने कहा कि वह केवल विवादास्पद फिल्म ‘मैसेंजर ऑफ गॉड’ को मंजूरी दिए जाने के मुद्दे पर ही इस्तीफा नहीं दे रहे हैं बल्कि उनका इस्तीफा पिछले कुछ समय से सीबीएफसी में संवैधानिक और संगठनात्मक विफलता को लेकर भी है।
करूण ने बताया, मैंने अध्यक्ष को अपना इस्तीफा मेल कर दिया है। यह बिल्कुल स्वाभाविक सी बात है कि जब अध्यक्ष पद छोड़ देता है तो उनके साथ काम करने वाली टीम भी इस्तीफा देती है। मेरी सूचना यह है कि सीबीएफसी के करीब 14 सदस्य पहले ही अपने इस्तीफे दे चुके हैं। करूण ने कहा कि बोर्ड के सदस्य कुछ समय से इस्तीफा देने की सोच रहे थे क्योंकि बोर्ड पिछले 9 महीने से एक तरह से ठप पड़ा है।
उन्होंने कहा, हम पिछले नौ महीनों में एक बार भी नहीं मिले हैं। जब भी हम बैठक के लिए कहते थे तो बॉस का जवाब होता था कि इसके लिए पैसा नहीं है। इतना ही नहीं, हमारा कार्यकाल पिछले मार्च में समाप्त हो चुका था। उस समय सरकार ने सूचित किया था कि उपर से पत्र मिलने तक हम पद पर बने रहें। हमने केवल बोर्ड को चलाने के लिए सरकार की मदद के मकसद से काम जारी रखा।
पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता ने कहा कि बोर्ड के सदस्य न केवल मौजूदा राजग सरकार बल्कि पिछली कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग सरकार के बोर्ड के प्रति रवैये को लेकर भी खुश नहीं थे। उन्होंने कहा कि बदलती सरकारों द्वारा बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियों ने बोर्ड के मूल मकसद को हल्का कर दिया है।
उन्होंने कहा, राजनीतिक दलों के सिफारिशी कई बोर्ड सदस्यों का सिनेमा से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। सीबीएफसी को बोर्ड में शामिल इनमें से कुछ के गलत कामों की वजह से सामूहिक शर्मिंदगी झेलनी पड़ी।
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