लखनऊ: मरकजी सीरते सहाबा के तहत छन्दोइयां फैज नबी हाल में जलसा मोहसिने इन्सानियत व सीरते सहाबा मो अतीक की सदारत में इनअेकाद पजेर हुआ। तिलावत कलाम रब्बानी के बाद रफत शैदा सिद्दीकी, उस्मान आजम मो उसामा, मो. शुऐब, मो. जावेद, जान मोहम्मद, मो. आसिफ, मो. हुसैन, मो. आमिर, शहीर अहमद ने नात व मनकबत का नजराना पेश किया निज़ामत के फराएज कारी कमरूल हफीज कमर ने अन्जाम दिये।

जलसे को खिताब करते हुए मौलाना माविया अब्दुर्ररहीम ने कहा कि हर एक मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है न वो किसी पर जुल्म करे न उस पर कोई दूसरा जुल्म करे। हुजूर ने फरमाया तुम में से जो अपने भाई की हाजत रवाई में लगा रहे और जो मुसलमान किसी दूरे मुसलमान की तकलीफ दूर करने में लगा रहे अल्लाह तआला कयामत के दिन उस के बदले उस को तकलीफ से निजात देगा। वह मुसलमान नहीं जो खुद पेट भर खाये और पड़ोसी भूखा सो रहे। सहाबा कराम के अन्दर तआवुन ईसाव व हमदर्दी का कितना जज्बा था। एक सहाबा भूख की शिकायत लेकर हुजूर के पास गये। आका ने तमाम अजवाज मुतहरात के पास कहलवाया कि कुछ खाने को है लेकिन घर से जवाब मिला कि घर में पानी सिवा कुछ नहीं। आका ने फरमाया कि मेरे इस मेहमान की आज रात कौन जियाफत करेगा। हजरत अबु तलहा ने फरमाया कि मेहमान की जियाफत मैं करूंगा। मेहमान गये हजरत अबु तलहा ने अपने बच्चों को बहला फुसला कर सुला दिया मेहमान खाने पर बैठे खूब शिकम सैर हो गये हजरत अबु तलहा भूखे रह अल्लाह को ये अदा बहुत पसन्द आई, अपने पाक कलाम में तारीफ फरमाई। काश हमारे अन्दर भी वही जज्बा हो जो सहाबा कराम का था आज हमारे घरों में खाना सड़ जाता है फेंक दिया जाता है मगर गरीबों बेवाओं मिस्कीनों को नहीं दिया जाता इन्तिहाई अफसोस की बात है कि बड़े छोटों से शफकत व मोहब्बत का बर्ताव करते हैं न छोटे बड़ों का अदब व एहतराम करते हैं। छोटे बच्चों को सलाम करने की आदत नहीं। अक्सर व बेशतर जगहों पर एक दूसरे को सलाम करना लोग मुसीबत समझते है। जबकि हमारे आका बाजार सिफ सलाम करने के लिए जाते थे आज लोग अपने घरों में बच्चों और बीवी बहनों को सलाम करना गुनाह समझते हैं। जबकि फरमान खुदा फरमान नबी है कि घरों में आवाज देकर दाखिल हों और सलाम करो हुजूर ने फरमाया सलाम को रिवाज बना दो और अल्लाह तआला हम सभी को हुजूर और सहाबा कराम के नक़्शे कदम पर चलने की तौफीक अता फरमाये। इस जलसे को खुसूसी तौर पर खलील अखतर निजामी, मो. फीरोज मो सली, राजा बाबर, मो. रेहान, मो. कदीर, मो. अय्यूब ने शिरकत की जो काबिले जिक हैं, जलसे के बानी मिस्टर हुसैनुद्दीन बलून ने तबर्रूक तकसीम किया मौलाना माविया उबैदुर्ररहीम की दुआ पर जलसा खत्म हुआ।