पूरी दुनिया कोरोना महामारी से बर्बादी की कगार पर पहुँच गयी, ऐसा आम लोगों का मानना है लेकिन ऐसा है नहीं| कोरोना बेशक बर्बादी लेकर आया लेकिन आम लोगों के लिए क्योंकि ऑक्सफैम की रिपोर्ट के हिसाब से तो ख़ास और ख़ास होते चले गयी, उनकी तिजोरियां भर्ती चली गयीं| ऑक्सफैम’ की इस ‘इनइक्वलिटी रिपोर्ट’ को कोविड के कारण ”दि इनइक्वलिटी वायरस रिपोर्ट” नाम दिया गया है। इसमें कहा गया है कि कोविड महामारी के परिणामस्वरूप आर्थिक दृष्टि से समाज में असमानता में वृद्धि हुई।

इस कोरोना काल में जाने-माने उद्योगपति मुकेश अंबानी ने जहां 90 करोड़ रुपये प्रति घंटे के हिसाब से धन कमाया, वहीं 24 प्रतिशत लोगों की एक महीने की आमदनी तीन हजार रुपये से भी कम रही। इसका तात्पर्य यह कि कोरोना काल में मुकेश अंबानी ने एक घंटे में जितनी राशि कमाई, उसे कमाने में एक अकुशल मजदूर को 10,000 साल लगेंगे। इस दर से मुकेश अंबानी ने एक सेकंड में जितना कमाया, उतना कमाने के लिए एक आम इंसान को तीन साल लगेंगे।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस महामारी ने मौजूदा सामाजिक, आर्थिक और लिंग आधारित असमानता की खाई और चौड़ी कर दी है। इस महामारी के गंभीर दुष्परिणामों से धनाढ्य वर्ग बिल्कुल अछूता रहा है, जबकि मध्यमवर्गीय लोग घर से ऑफिस का काम कर रहे हैं। लेकिन, दुखद पहलू यह है कि देश में अधिकतर लोगों को अपनी नौकरी/आजीविका से हाथ धोना पड़ा। कोरोना काल में जिस दिन मुकेश अंबानी दुनिया के चौथे सबसे अमीर आदमी बने, उसी दिन राजेश रजक नामक एक व्यक्ति ने नौकरी चले जाने के कारण अपनी तीन बेटियों सहित खुदकुशी कर ली।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट ‘इनइक्वालिटी वायरस’ के मुताबिक मार्च 2020 के बाद की अवधि में भारत में 100 अरबपतियों की संपत्ति में 12,97,822 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है। इतनी राशि का वितरण यदि देश के 13.8 करोड़ सबसे गरीब लोगों में किया जाए, तो इनमें से प्रत्येक को 94,045 रुपये दिए जा सकते हैं। रिपोर्ट को विश्व आर्थिक मंच के ‘दावोस संवाद’ के पहले दिन जारी किया गया।

रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी पिछले सौ वर्षों का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट है और इसके चलते 1930 की महामंदी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक संकट पैदा हुआ। ऑक्सफैम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ बेहर ने कहा कि इस रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि अन्यायपूर्ण आर्थिक व्यवस्था से कैसे सबसे बड़े आर्थिक संकट के दौरान सबसे धनी लोगों ने बहुत अधिक संपत्ति अर्जित की, जबकि करोड़ों लोग बेहद मुश्किल से गुजर-बसर कर रहे हैं। बेहर ने कहा कि शुरुआत में सोच थी कि महामारी सभी को समान रूप से प्रभावित करेगी, लेकिन लॉक़डाउन होने पर समाज में विषमताएं खुलकर सामने आ गईं।

रिपोर्ट के लिए ऑक्सफैम द्वारा किए गए सर्वेक्षण में 79 देशों के 295 अर्थशास्त्रियों ने अपनी राय दी, जिसमें जेफरी डेविड, जयति घोष और गेब्रियल ज़ुक्मैन सहित 87 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने महामारी के चलते अपने देश में आय असमनता में बड़ी या बहुत बड़ी बढ़ोतरा का अनुमान जताया। रिपोर्ट के मुताबिक मुकेश अंबानी, गौतम अडाणी, शिव नादर, सायरस पूनावाला, उदय कोटक, अजीम प्रेमजी, सुनील मित्तल, राधाकृष्ण दमानी, कुमार मंगलम बिरला और लक्ष्मी मित्तल जैसे अरबपतियों की संपत्ति मार्च 2020 के बाद महामारी और लॉकडाउन के दौरान तेजी से बढ़ी। दूसरी ओर अप्रैल 2020 में प्रति घंटे 1.7 लाख लोग बेरोजगार हो रहे थे।

रिपोर्ट के भारत केंद्रित खंड में बताया गया कि भारतीय अरबपतियों की संपत्ति लॉकडाउन के दौरान 35 प्रतिशत बढ़ गई। भारत अरबपतियों की संपत्ति के मामले में अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस और फ्रांस के बाद छठे स्थान पर पहुंच गया। भारत के 11 प्रमुख अरबपतियों की आय में महामारी के दौरान जितनी बढ़ोतरी हुई, उससे मनरेगा और स्वास्थ्य मंत्रालय का मौजूदा बजट एक दशक तक प्राप्त हो सकता है।

ऑक्सफैम ने कहा कि महामारी और लॉकडाउन का अनौपचारिक मजदूरों पर सबसे बुरा असर हुआ। इस दौरान करीब 12.2 करोड़ लोगों ने रोजगार खोए, जिनमें से 9.2 करोड़ (75 प्रतिशत) अनौपचारिक क्षेत्र के थे। रिपोर्ट में कहा गया कि इस संकट के चलते महिलाओं ने सबसे अधिक कष्ट सहा और 1.7 करोड़ महिलाओं का रोजगार अप्रैल 2020 में छिन गया। महिलाओं में बेरोजगारी दर लॉकडाउन से पहले ही 15 प्रतिशत थी, इसमें 18 प्रतिशत की और बढ़ोतरी हो गई। इसके अलावा स्कूलों से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या दोगुनी होने की आशंका भी जताई गई।