केजीएमयू प्रशासन की जिद के कारण दिव्यांगजनो की नाराजगी भी

लिंब सेंटर को कोविड हॉस्पिटल घोषित करने पर 05 मुख्य विभाग व आम जनता भी होगी प्रभावित

लखनऊ: लिम्ब सेंटर को कोविड-19 हॉस्पिटल बनाए जाने का विरोध करते हुए कर्मचारी शिक्षक संयुक्त मोर्चा ने राजनाथ सिंह रक्षा मंत्री भारत सरकार व सांसद लोकसभा लखनऊ क्षेत्र, मुख्यमंत्री,मंत्री चिकित्सा शिक्षा, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा से दिव्यांगों और आम जनता के हित में लिंब सेंटर की जगह कहीं और कोविड हॉस्पिटल बनाने का अनुरोध किया है ।

मोर्चे के अध्यक्ष वी पी मिश्रा ने बताया कि लिम्ब सेंटर को जो कोविड अस्पताल बनाने का निर्णय , एक समिति ने लिया है उसको केजीएमयू की अधिशासी परिषद द्वारा पारित नही किया गया है , लिम्ब सेंटर परिसर पूरी तरह तकनीकी एवं चिकित्सीय आधार पर कोविड अस्पताल के लिए अनुपयुक्त है, साथ ही साथ, यदि इस लिम्ब सेंटर को कोविड अस्पताल में परिवर्तित कर दिया गया तो प्रदेश के लाखों दिव्यांगजन, कृत्रिम अंग एवं सहायक उपकरण तथा पुनर्वास के लिए वंचित हो जाएंगे साथ ही साथ प्रदेश के एक मात्र जेई एवं एक्यूट इंसेफलाइटिस के इलाज वाले केंद्र जिसको शासन ने 5 करोड़ की लागत से स्थापित किया है उसके बंद हो जाने से, जापानी इंसेफेलाइटिस मरीजो का इलाज भी नही हो सकेगा।

केजीएमयू के एक समिति द्वारा प्रस्तावित कोविड अस्पताल को कोई अन्य सुरक्षित परिसर में निर्मित किया जाये और इस दिव्यांगजन केंद्र को दिव्यांगजनो हेतु संरक्षित रखा जाए । शासन द्वारा कहा गया था कि लिंब सेंटर की जगह कोई और जगह देखकर पुनः प्रस्ताव भेजा जाए लेकिन समिति ने पुनः लिंब सेंटर का ही प्रस्ताव भेजा जो जनहित में नही है । जबकि 466 बेड का ट्रामा सेंटर भी इस उपयोग में पी जी आई की भाँति लाया जा सकता है चूँकि वर्तमान में इमरजेंसी मानसिक रोग विभाग से संचालित हो रही है। द्विव्यांग मरीजों की चिंता एवं जनहित को देखते हुए इस संबंध में कर्मचारी शिक्षक संयुक्त मोर्चा द्वारा चिकित्सा शिक्षा विभाग सहित सभी माननीय को पत्र लिखकर पूरी समस्या से अवगत कराया गया ।

उत्तर प्रदेश के दिव्यांगों का एकमात्र विशिष्ट पुनर्वास केंद्र लिंब सेंटर के संबंध में श्री मिश्र का कहना है कि डिपार्टमेंट ऑफ आर्थोपेडिक के.जी.एम.सी. के अंतर्गत वर्ष 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने बांग्लादेश वार के समय 9 करोड़ रूपया दिया था, लाॅटरी फंड से इसका नाम आर्टिफिशियल लिंब सेंटर एवं प्रोस्थेटिक वर्कशॉप रखा गया। उस समय वर्कशॉप, फिजियोथेरेपी, आकुपेशनल थेरेपी, वोकेशनल सेक्शन तथा ओपीडी का स्थापना एवं संचालन शुरू हुआ। 1974 से 76 के पूर्व बिल्डिंग का निर्माण हुआ और सौ बेड का अस्पताल पैराप्लोजिया सेंटर, ऑपरेशन थिएटर वगैरा शुरू हुए। उसी समय दिव्यांगों के लिए लकड़ी का हाल और रीक्रिएशनल यूनिट शुरू हुआ जहां पर विकलांगो को शारीरिक रूप से सक्षम बनाए जाने के लिए खेलकूद सिखाएं जाते थे, जिसके माध्यम से पैरा ओलंपिक 1976-1981 में यहां के दिव्यांगों ने 6 गोल्ड मेडल जीते तभी वोकेशनल यूनिट की स्थापना हुई तथा आजीविका हेतु आत्मनिर्भर बनाने के लिए रोजगारपरक कार्य भी सिखाए जाते थे।

स्थापना काल के समय 154 पदों का सृजन किया गया था, संचालन के लिए यह हड्डी विभाग के अधीन था पर इसका पूर्ण रूप से पृथक बजट शासन द्वारा आवंटित होता था। वर्ष 1976 में इस विभाग का नाम आर.एल.सी. रखा गया तब इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी जी ने किया था, उस समय के.जी.एम.सी. लखनऊ विश्वविद्यालय का अंग था। वर्ष 1980 में इस विभाग को स्वतंत्र सोसाइटी में परिवर्तित किया गया था जिसको बाद में शासन द्वारा 1986 में भंग करके राज्य सरकार के अधीन एक पूर्णकालिक निदेशालय बना दिया गया और तब इसका पृथक निदेशक बनाया गया जिसका नियंत्रण शासन द्वारा नामित 11 सदस्य समिति के पास था तथा जिसके अध्यक्ष मुख्य सचिव जी होते थे और आज भी हैं, वो शासनादेश आज भी यथावत है।

वर्ष 1992 में के.जी.एम.यू. लखनऊ विश्वविद्यालय के अधीन फिर चला गया पर लिंब सेंटर के कर्मचारियों ने माननीय उच्च न्यायालय याचिका संख्या 5809-92 के माध्यम से स्टे ले लिया जिसमें लिंब सेंटर पूर्ण रूप से शासन का अंग ही रहा। बाद में शासन द्वारा वर्ष 1994 में एक शासनादेश के माध्यम से इस विभाग को केवल शैक्षणिक उद्देश्य के लिए के.जी.एम.सी. में संबद्ध किया गया बाकी पूरा विभाग वर्ष 2002 तक शासन के नियंत्रण में ही रहा।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1986-1994 निर्गत शासनादेश एवं के.जी.एम.यू. एक्ट 2002 अध्याय 2 के काॅलम 04 के तहत उक्त लिंब सेंटर का प्रयोग केवल दिव्यांगों के पुनर्वास कार्य हेतु करना निर्धारित है तथा इसको कोई अन्य अस्पताल बनाने से इसका उल्लंघन होगा एवं दिव्यांगों का पुनर्वास कार्य बाधित होगा । इस केंद्र में दिव्यांगों के कृत्रिम उपकरण निर्माण एवं मरम्मत करने हेतु एकमात्र बृहद कार्यशाला है जो पूर्णतः बंद हो जाएगा।

मोर्चा के उपाध्यक्ष सुनील यादव ने आक्रोश व्यक्त करते हुए बताया कि लिंब सेंटर के भवन में प्रमुख पांच विभाग आर्थोपेडिक सर्जरी, फिजिकल मेडिसिन एवं पुनर्वास ,गठिया रोग विभाग, पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक सर्जरी तथा स्पोर्ट्स मेडिसिन विभागों की ओपीडी तथा वार्ड संचालित हो रहे हैं, जो कि प्रदेश में केवल एकमात्र जगह ही उपलब्ध हैं। साथ ही पी॰एम॰आर॰ विभाग प्रदेश में एकमात्र ऐसा जगह है जो जापानी इंसेफेलाइटिस के मरीजों का समुचित इलाज मुहैया करा रहा है।

अतः दिव्यांगों के पुनर्वास कार्य को महत्व देते हुए उन पर मानवीय आधार पर विचार कर पुरवत बनाये रखे जाने का अनुरोध किया गया। मोर्चे का कहना है कि चोट लगे हुए मरीजों में 30 से 40% मरीजों को आर्थोपेडिक इंटरवेंशन की जरूरत होती है, जो मेडिकल कॉलेज के इसी डिपार्टमेंट से दिया जाता है ।

इस भवन के निकट घनी बस्ती जवाहर नगर, रिवरबैंक कॉलोनी है । इसलिए यहां संक्रमण के प्रसार का खतरा ज्यादा है। मोर्चे का कहना है कि कंवेंशन सेंटर को कोविड हॉस्पिटल में आसानी से तब्दील किया जा सकता है। इसके अलावा परिसर में कई अन्य भवन हैं जो बनकर लगभग तैयार हैं, फिलहाल के तौर पर उनका भी इस्तेमाल किया जा सकता है।