• बॉक्सिंग फेडरेशन आफ इंडिया (बीएफआई) अध्यक्ष के कार्यकाल में हासिल की गई हैं कई ऐतिहासिक उपलब्धियां।

भारत में क्रिकेट को हमेशा से व्यापक प्यार मिला है। हालांकि बीते कुछ सालों में देश के खेल जगत में क्रिकेट के अलावा भी कई खेलों में प्रशंसकों की संख्या में बड़ा इजाफा देखा गया है। ऐसा ही एक खेल है-मुक्केबाजी, जो बीते चार साल में लोकप्रियता के मामले में क्रिकेट के साथ-साथ खड़ा रहा है और इस खेल से जुड़े मुक्केबाजों ने इस अवधि में दुनिया भर में कई शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं।

भारत में मुक्केबाजी को चलाने वाले महासंघ को साल 2014 में कुप्रबंधन के कारण अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (एआईबीए) ने टर्मिनेट कर दिया था। साल 2016 में ब्राजील के शहर रियो डी जनेरियो में आयोजित ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक चार्टर फ्लैग के तहत हिस्सा लेने के मजबूर हुए थे। इसका कारण यह था कि उस समय भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने भी मुक्केबाजी महासंघ की मान्यता समाप्त कर दी थी।

अब सवाल उठता है कि आखिरकार जिस महासंघ को 2014 में भंग कर दिया था, उसने किस तरह इतने कम समय में न सिर्फ मुख्यधारा में वापसी की बल्कि इसके खिलाड़ियों ने वैश्विक स्तर पर शानदार उपलब्धियां हासिल करते हुए इसे देश का सबसे सफल नेशनल फेडरेशन बना दिया?

इसका जवाब यह है कि मुक्केबाजी महासंघ के कायाकल्प की प्रक्रिया 2016 के अंत में अजय सिंह के नेतृत्व में शुरू हुई। नए महासंघ को बॉक्सिंग फेडरेशन आॅफ इंडिया (बीएफआई) का नाम मिला और इका मूल मंत्र ‘खिलाड़ियों का हित सर्वप्रथम’ रखा गया।

टुकड़ों को जोड़ना काफी कठिन और मुश्किल काम था। हालांकि, कार्यभार सम्भालने के कुछ ही महीनों के भीतर अजय सिंह के नेतृत्व वाली बीएफआई टीम ने न सिर्फ खेल की छवि को सुधारना शुरू किया बल्कि उसने एआईबीए और यहां तक की भारतीय ओलंपिक संघ से भी आधिकारिक मान्यता हासिल कर ली। इसके बाद तो भारतीय मुक्केबाजी को कोई रोकने वाला नहीं था।

साल 2016 से आज तक भारतीय मुक्केबाजों ने अलग-अलग इंटरनेशनल इवेंट्स में 600 से अधिक मेडल जीते। ऐसे में जबकि खिलाड़ियों को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जा रही थी, महासंघ ने यह सुनिश्चित किया कि खिलाड़ियों को अधिक से अधिक इंटरनेशनल एक्सपोजर मिले और इसी कारण भारतीय मुक्केबाज 22 चैम्पियनशिप, 80 टूर्नामेंट्स और 19 इंटरनेशनल एक्पोजर टूर्स में हिस्सा लेने में सफल रहे।

इसके अलावा फेडरेशन ने 2 विश्व चैमिम्पयनशिप का आयोजन किया, 2 ओपन टूर्नामेंट्स का आयोजन किया पहली बार मुक्केबाजी लीग का आयोजन किया और इसके अलावा 17 नेशनल चैम्पियनशिप्स और 35 नेशनल कैम्प के माध्यम से कई ऐसे युवाओं को मौका दिया, जो अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में सफल रहे।

भारतीय मुक्केबाजी के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि अब तक नौ भारतीय मुक्केबाज 2021 टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर चुके हैं और वह भी सिर्फ एक ओलंपिक क्वालीफाईंग इवेंट के माध्यम से। यह भारतीय मुक्केबाजी के लिए अभूतपूर्व सफलता है।

भारतीय महिला मुक्केबाजी टीम के पूर्व कोच एवं द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित शिव सिंह ने कहा, ‘‘हमारे लिए बीते चार साल काफी अहम रहे। इस दौरान हमने दुनिया भर में आयोजित होने वाले हर एक टूर्नामेंट में पदक जीते। उपलब्धि के लिहाज से ये चार साल काफी शानदार रहे। मैं समझता हूं कि इतने सारे इंटरनेशनल इवेंट्स में हिस्सा लेना और एक्सपोजर टूर करने से हमारे अंदर आत्मविश्वास का संचार हुआ। हमें दुनिया की सबसे अच्छी सुविधाओं में रहकर अभ्यास का मौका मिला और परिणाम आपके सामने है।’’

हर एस्पीरेशन के लिए एक सॉलिड फाउंडेश्न की जरूरत होती है और अजय सिंह के नेतृत्व में बीएफआई ने एक ऐसा माहौल बनाना शुरू किया जहां सपोर्ट स्टाफ और कोचों को काम करने के लिए फ्री हैंड दिया गया। इस दौरान कोचों और सपोर्ट स्टाफ ने सभी खिलाड़ियों के साथ बराबरी का सुलूक करते हुए एक्सीलेंस पर ध्यान दिया और इसका नतीजा हुआ कि अब भारतीय मुक्केबाजी वैश्विक स्तर पर अपना अलग स्थान बना चुका है।

सिंह ने आगे कहा, ‘‘बीते चार साल में हमने देखा कि बड़ी संख्या में प्रतिभाशाली बॉक्सर सामने आए। मैं समझता हूं कि इंटरनेशनल इवेंट्स का आयोजन कराना हमारे लिए अहम साबित हुआ क्योंकि इससे स्थानीय मुक्केबाजों को इसमें न सिर्फ हिस्सा लेने का मौका मिला बल्कि वे इनके माध्यम से इंटरनेशनल एक्सपोजर भी हासिल करने में सफल रहे। इससे उन्हें वह आत्मविश्वास हासिल हुआ, जिसकी बदौलत वे बड़े आयोजनों में अपनी चमक बिखेर सके। साल भर चलने वाले नेशनल कैम्प फेडरेशन और खिलाड़ियों की सफलता का कहानी में एक दूसरा अध्याय हैं।’’

बीएफआई ने बीते चार साल में एआईबीए सर्टिफाईड कोचिंग एवं ट्रेनिंग के माध्यम से रेफरियों और कोचों के साथ-साथ तकनीकी अधिकारियों के विकास का भी ध्यान रखा। मौजूदा समय में देश में 264 एआईबीए सर्टिफाईड कोच हैं जबकि 2016 में इनकी संख्या 40 थी। अन्य विभागों में भी तेजी से विकास हुआ है। अभी 26 आरजे, 5 रिंगसाइड डॉक्टर, 25 कटमैन और 4 आईटीओ हैं जबकि 2016 से पहले हमारे पास एक भी एआईबीए सर्टिफाईड रिंगसाइड डॉक्टर या कटमैन नहीं था। उस समय हमारे पास सिर्फ 5 आरजे और दो आईटीओ थे।