लखनऊ
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद मायावती ने आज कहा कि यूपी भाजपा सरकार में भी हर वर्ष बजट की केवल औपचारिकता पूरी करने के कारण ही इससे हर साल युवाओं, बेरोजगारों व गरीबों आदि की उम्मीदें टूट कर बिखर रही हैं और आम जनता का जीवन लगातार लाचार व मजबूर बना हुआ है, तो फिर ऐसे में यूपी में भाजपा की ’डबल इंजन’ की सरकार होने का यहाँ की लगभग 24 करोड़ जनता को क्या लाभ?
यूपी बजट को खोखला व यूपी की जरूरतों के मुताबिक आधा-अधूरा बताते हुए मायावती जी ने अपने आकलन में कहा कि बजट कैसा होगा इसकी झलक राज्यपाल के अभिभाषण में ही दो दिन पहले मिल चुकी थी, क्योंकि यूपी भाजपा सरकार के उस नीतिगत दस्तावेज में ऐसा कुछ खास नहीं था जो लोगों के बेचैन व त्रस्त जीवन में थोड़ी सहूलियत व अपेक्षित राहत पहुँचा सके।

वैसे यूपी भाजपा सरकार की नीयत व नीति भी, बी.एस.पी. जैसी ’’सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय’’ आधारित सर्वसमाज-हितैषी नहीं होने के कारण ही, जनता समझ नही पा रही है पिछले वर्ष के इसी प्रकार के इनके वादों और दावों का क्या हुआ? कुल मिलाकर पिछले बजट की तुलना में इस वर्ष का बजट भी हवाहवाई ज्यादा तथा जनता की उनकी ज्वलन्त समस्याओं से मुक्त करने कीे उम्मीदों पर खरा उतरने वाला कम। भाजपा के दावों के अनुसार अगर यूपी प्रगति कर रहा है तो यहाँ के लगभग 24 करोड़ लोग रोजी-रोजगार के बुनियादी अधिकारों से वंचित क्यों?

बढ़ती महंगाई के साथ-साथ अपार गरीबी, बेरोजगारी व अशिक्षा के हालात से पीड़ित लोग लुभावने वादों एवं हवाहवाई दावों के सहारे कब तक जीयें? देश की तरह ही यूपी में भी आम जनता की क्रय शक्ति घटने के कारण खासकर युवा वर्ग, बेरोजगारों, छोटे हुनरमन्द व अन्य मेहनतकश समाज के लोगों आदि को अपने भविष्य व अस्तित्व का संकट झेलना पड रहा है, जिनके लिए यूपी सरकार का बजट कतई कोई खास चिन्तित नहीं लगता है, यह अति-दुःखद व चिन्ताजनक बात। यूपी सरकार का बजट भी प्रदेश की समस्याओं से अनभिज्ञ व बेगाना लगता है। ऐसे में यूपी का पिछड़ापन कैसे दूर होगा?

यूपी सरकार द्वारा प्रदेश के हर जिले में मेडिकल कालेज खोलने के वादे लगातार दोहराए जा रहे हैं, परन्तु शिक्षा व लचर कानून-व्यवस्था आदि की तरह ही प्रदेश में स्वाथ्य व्यवस्था का जो काफी बुरा हाल है वह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। साथ ही, जनता की आवाज को दबाने के मामलें में सरकारी जुल्म-ज्यादती आदि अब और भी व्यापक व ऐसी द्वेषपूर्ण है कि इसके नकारात्मक चर्चे सरकारी कार्यकलापों पर भी भारी पड़ने लगे हैं। सरकार द्वारा जनता को अपने अंहकार का शिकार बनाना तथा उन्हें लिखने, पड़ने व बोलने पर प्रताड़ित करना अनुचित एवं अशोभनीय। सरकार व्यापक जनहित के मद्देनजर इस पर जरूर चिन्तन करे।

इसके इलावा जातिगत जनगणना की वकालत करने वाली सपा के लिए यह बेहतर होता कि यदि इस कार्य को, यह पार्टी अपनी सरकार में ही पूरा करा लेती, तो आज इनको बीजेपी की सरकार से बार-2 इसकी यह माँग नहीं करनी पड़ती। जबकि बी.एस.पी. यह चाहती है कि जातिगत जनगणना केवल अकेले यू.पी में ही नही बल्कि पूरे देश मे व एक साथ होनी चाहिये, ताकि जातिवार लोगों की संख्या की सही स्थिति सामने आ सके। जिसके लिए केन्द्र की सरकार को ही आगे आना होगा। खासकर सपा व बीजेपी यू.पी. में विकास के जिन कार्यों को अपना कहकर भुना रही है, उनमे से अधिकाशः कार्यों की रूपरेखा बी.एस.पी की सरकार मे ही तैयार कर दी गयी थी तथा काफी कार्य शुरू भी कर दिये गये थे। यही सच है।