तौक़ीर सिद्दीक़ी

चाचा शिवपाल को लेकर अखिलेश से अब पत्रकारों के सवाल बढ़ते जा रहे हैं, विधानसभा चुनावों के बाद यादव कुनबे में कलह बढ़ती जा रही है. शिवपाल का रवैय्या भी काफी बदल गया है, वह अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, वहीँ इस दौरान चाचा शिवपाल को लेकर भतीजे अखिलेश के कम से कम दो बयान ऐसे आये हैं जिनसे कड़वाहट या खीज साफ़ झलकती है. कुछ दिन पहले ही शिवपाल को लेकर पूछे गए एक सवाल पर अखिलेश के जवाब से पत्रकार भी हैरान रह गए थे, पत्रकारों के सवाल पर अखिलेश ने समय बर्बाद न करने की बात कही थी वहीँ आज शिवपाल के भाजपा में जाने की ख़बरों पर अखिलेश ने और भी विचित्र जवाब दिया। अखिलेश ने भाजपा का धन्यवाद अदा किया कि वह पार्टी से परिवारवाद ख़त्म कर रही है. उनका इशारा शायद शिवपाल के साथ अपर्णा यादव की ओर भी था.

सवाल उठता है कि चुनाव बाद ऐसा क्या हो गया जो चाचा भतीजे में इतनी तल्खी आ गयी कि बात परिवारवाद ख़त्म करने तक पहुँच गयी. मतलब अगर शिवपाल यादव भाजपा में जा रहे हैं तो इससे अखिलेश खुश हैं कि चलो एक झंझट ख़त्म । शायद अखिलेश चाचा शिवपाल को अपने लिए एक कांटा समझते हैं जो उन्हें लगातार चुभन देता आया है, इसलिए वो कांटा अपने आप निकल जाय तो उनके लिए बड़ी अच्छी बात रहेगी। अखिलेश को भी मालूम है यादव परिवार में शिवपाल ही ऐसी हस्ती हैं जो उनके विरोध में हैं और जिनकी काफी राजनीतिक पकड़ भी है, अपर्णा यादव की अबतक कोई राजनीतिक पहचान नहीं इसलिए उनकी कोई चर्चा भी नहीं, शेष यादव फैमिली अखिलेश के पीछे खड़ी है.

शिवपाल के लेकर अखिलेश अब सवालों से पूरी तरह पीछा छुड़ाना चाहते हैं और इसीलिए इस तरह के अपने बयानों में शिवपाल का तिरस्कार कर रहे हैं. वहीँ चाचा शिवपाल कई बार अपना दुखड़ा रो चुके हैं और अब शायद कुछ निर्णयात्मक कदम उठाना चाहते हैं. भाजपा से नज़दीकियों के संकेत उन्होंने दिए हैं हालाँकि भाजपा में जाने की बात उन्होंने अभी तक तो कहीं भी नहीं कही है. हाँ कुछ ख़बरें आज़म खान को लेकर ज़रूर गर्दिश कर रही हैं कि शायद कोई नया मोर्चा वजूद में आये. इस खबर की सच्चाई के बारे इतना ही कहा जा सकता है कि कुछ दिन पहले रामपुर में आज़म खान के कार्यालय से बग़ावत की आवाज़ ज़रूर सुनाई दी थी, शिवपाल और आज़म के मोर्चे की बातें शायद वहीँ से निकल आ रही हैं. वैसे आज़म खान और उनके बेटे अब्दुल्लाह आज़म की तरफ से अखिलेश के खिलाफ अभी तक कोई भी विपरीत बात नहीं कही गयी है लेकिन समर्थकों का सीधा आरोप है कि अखिलेश आज़म खान को जेल से बाहर लाने में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. इस आरोप को बल चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के उस बयान से भी मिल रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि अखिलेश ही नहीं चाहते कि आज़म बाहर आएं.

उधर चुनाव बाद सपा के मुस्लिम विधायकों के खिलाफ योगी सरकार की कार्रवाई पर अखिलेश की चुप्पी भी सवालों के घेरे में हैं. इन विधायकों के समर्थक खुले आम सोशल मीडिया पर सपा प्रमुख के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। इनका साफ़ आरोप है कि मुसलमानों पर उत्पीड़न के मामले में अखिलेश यादव कभी कुछ नहीं बोलते जबकि इस चुनाव में मुसलमानों ने एकजुट होकर समाजवादी पार्टी को वोट दिया और गठबंधन को 125 सीट जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन लोगों का कहना है कि सत्ता में आये तो सीएम आप बनें और जब विपक्ष में आये तो लीडर ऑफ़ अपोज़ीशन भी आप ही बनें, तो जब सब आप ही बनें तो दूसरों का क्या काम?

देखा जाय तो फिलहाल हालात अखिलेश और समाजवादी पार्टी के लिए अनुकूल नहीं चल रहे हैं, सत्ता में लौटने का ख्वाब टूटने से नेता और कार्यकर्ता दोनों सदमे में हैं. एमएलसी चुनाव में एक भी सीट न मिलने से यह सदमा और भी बढ़ा है. हालाँकि यह भी सच है कि यह चुनाव हमेशा सत्ताधारी पार्टी ही जीतती आयी है, अफ़सोस सिर्फ इस बात का है कि एक भी कामयाबी नहीं मिली। देखना है कि इस अफ़सोस और सदमे से पार्टी कितनी जल्दी निकलती है, 2024 आने में समय नहीं लगेगा क्योंकि समय की रफ़्तार बहुत तेज़ होती है, वैसे शिवपाल पर सवाल तो अखिलेश का पीछा कभी नहीं छोड़ेंगे भले ही वह कोई नया मोर्चा बना लें, पार्टी तो पहले ही बना चुके हैं.