मोहम्मद आरिफ नगरामी

तमाम दुनिया में 18 दिसम्बर को अकलियतों के हुकूक का दिन मनाया जाता, क्योंकि सन 1992 मेें अकवामे मुतहद्दा की जनरल असेम्बली ने मेम्बर मुमालक के मशवरे से यौमे अकलियती हुकूक मनाने का एलान किया था जिसका मकसद दुनिया के हर मुल्क में रहने वाी अकलियतों के हुकूक का तहफफुज था।

हमारे मुल्क हिन्दुस्तान मेें भी सब का साथ सब का विकास के नारों के साथ अकलियतों को आईन मेें दिये गये हुकूक के साथ उनको बराबर का दरजा दिया गया है। हर साल 18 दिसम्बर को मुल्क के तमाम मुल्कों में अकलियतों के हुकूक की पासदारी के लि ये जलसे मुनअकिद किये जाते हैं। बडे बडे सेमिनार होते हैं जिस में अकलियतों की फलाह व बहबूद और उनकी तरक्की के लिये खुशनुमा और दिलफरेब एलान किये जाते हैं मगर सह जलसे सेमिनार सिर्फ रस्मी खानापूरी तक ही रहती है। होता कुछ नहंी। आज पूरी दुनिया में खास कर मुसलमान अकलियतों के साथ गैर मुन्सिफाना रवैया अख्तियार किया जाता है ओर मगरिबी मआशरे मेें ‘‘इसलाम फोबिया‘ की ऐसी मुहिम बरपा की गयी है कि हर शख्स इस्लाम और मुसलमानों के खौफजदह हैं साथ ही इस्लामी शोआएर व अलामात से लोगोें के दिलों मेें नफरत बैठ गयी है जो मुमालिक जम्हूरियत और सेक्यलिरिज्म का नाम लेते हैं और अपने आप को हकूके इन्सानी का अलमबरदार के लिये है उनके यहां हाल यह है कि मजहबी शोआयेर और मजहबी शख्सियतों के एहतेराम मेें इम्तियाज बरता जा रहा है। पैगम्बरे इस्लाम और दूसरे मजाहिब के पेशवाओं के मकाबले मेें गुस्ताखाना रवैया को इजहारे ख्याल की आजादी का नाम दिया जाता है। लोगोें को बेलेबास चलने की तो इजाजत है लेकिन मुसलमान औरत को हेजाब या नेकाब पहनने और मर्दों को दाढी रखने की इजाज़त नहीं है।

यहां तक कि मसाजिद के मीनारे भी उनकी आंखों में खटकने लगे हैं, क्या यही इन्सानी हुकूक की पासदारी है और यही अकलियत के हकूक की रियायत है और फिर हमारे मुल्क हिन्दुस्तान में सूरते हाल यह है कि मुम्बई के फिरकावाराना फसादात में जो मुसलमान मारे गये उनके सिलसिले में श्री कृष्णा रिपोर्ट को दबा दिया गया आौर कोई कार्रवाई नहंी हुयी। हालांकि उसके रद्दे अमल मेें होने वाले बम ब्लास्ट के मुरतकीन को केफरे किरदार तक पहुंचाया गया। हम उनके खिलाफ कारवाई के मुखालिफ नहंी हैं लेकिन ेइन्साफ के पैमाने दो नहंी होने चाहिये। बाबारी मस्जिद को दोपहर की धूप मेें और मीडिया के सामने शहीद कर दिया गया।

मस्जिद पर हमला करने वालों की फोटो तक शाया हुयी और इस जुर्म में शरीक होने वालों ने बेशर्मी के साथ एलान भी किया और जुर्म का एतेेराफ भी किया और फख्र का इजहार भी किया लेकिन इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुयी।

गोधरा के वाकया में मुलव्विस लोगों पर बिला तहकीक जंगल का कानून पोटा नाफिज किया गया। लेकिन गुजरात में शहीद होने वाले 2000 मुसलमानों की आह किसी ने नहीं सुनी और ना ही हुकूमत ने इस पर कोई कार्यवाही की। यह एक वाजेह मिसाल है। मुसलमान अकलियत के हुकूक को तलब करने और मजलूमों को जालिम के कठघरे में खड़ा करने की जिस पर मगरिब से मश्रिक तक पूरी दुनिया का अमल है।

वहीं दूसरी इस्लामी तालीमात का असर है कि मुसलमानों ने हमेशा अपने जेरे एक्तेदार गैर मुस्लिम अकलियत के साथ बेहतर सुलूक किया और आज भी मुस्लिम मुमालिक में गैर मुस्लिम भाई पूरी आजादी और सहूलतों के साथ मुकीम हैं। इजराइल में सूरतेहाल यह है कि मुसलमानों के घरों पर बुल्डोजर चलाये जाते है और बगैर किसी सबक के उनको जिला वतन कर किया जाता है। इजराइल के पड़ोस में ही मिस्र और शाम को देखिये और जरा आगे बढ़कर ईरान और इराक पर नजर डालिये कि वहां यहूदी और बाज कदीम ईसाई फिरके पूरी राहत और सुकून के साथ मुकीम हैं। इंडोनेशिया ने बड़ी मुस्लिम आबादी का मुल्क है। वहां इसाइयों को न सिर्फ आजादी हासिल है बल्कि यह आजादी बाज अवकात मुसलमानों पर जयादती की शक्ल अख्तियार कर लेती है।

हमारे मुल्क हिंदुस्तान के मुख्तलिफ हिस्सों में मुसलमानों ने तकरीबन 1000 साल तक हुकूमत की लेकिन हिंदुओं और बुद्धिस्टों के बड़े-बड़े तारीखी मंदिर को कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया बल्कि मुसलमान हुकूमत ने इनके लिए बड़ी-बड़ी जागिरें अता की और मजहबी पेशवाओं के लिए खुसूसी मुराआत रखी गईं मगर आज इसी हिंदुस्तान के मुख्तलिफ सदियों में अकलियतों के साथ जो गैर इंसानी सुलूके किया जा रहा है वह सारी दुनिया देख रही है हरियाणा के गुरूग्राम मुसलमानों को जुमे की नमाज अदा करने की इजाजत शरपसंद अनासिर नहीं दे रहे हैं और हुकूमत खोमोश तमाशाई बनी हुई है।

बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद मथुरा की जामा मस्जिद और वाराणसी की तारीखी ज्ञानव्यापी मस्जिद पर हिंदू दहशतगर्दाें की निगाहें हैं। इसी तरह चीन में मुसलमानों पर जो जुल्म वहां हुकूमत कर रही है उनको नमाज की अदाएगी की इजाजत नहीं है। उनको घरों और मसाजिद में कुरआन पाक रखने की इजाजत नहीं है। रोजा रखने की इजाजत नहीं है उन पर जुल्म के पहाड़ तोड़े जा रहे । मगर अक्वामे मुत्तहिदा खामोश तमासीन बना हुआ है इसी तरह म्यामार में जिस तरह मुसलमानों पर जुल्म किया गया उनकी नौजवान नस्ल को तबाह व बर्बाद किया गया। उस पर किसी भी मुल्क ने आवाज नहीं उठायी।

आज हिंदुस्तान में अकलियत और खास मुसलमान सख्त हालात से दो-चार हैं। आज मुसलमानों के लिए अपने इस्लामी कवानीन पर अमल करने के अख्तियार को रोकने और बदले की आवाजें अक्सरियत की बाज हल्कों की तरफ से उठ रही हैं। इस मुल्क में मुसलमान अकलियत में हैं और अकलियत जहां भी हो उसको अकसरियत के मुकाबले में ज्यादा तवज्जह व मेहनत की जरूरत होती है मगर ऐसा हो नहीं रहा है। ऐसे हालात में अकलियती हुकूक का दिन मनाने से क्या फायदा है। यह सिर्फ एक ढकोसला और झूठ है।