न्यूयॉर्क
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच हुई कड़वी बातचीत के खुलासे ने एक बार फिर दुनिया के सामने एक स्पष्ट वैश्विक सिद्धांत की सच्चाई उजागर कर दी है: जब किसी महाशक्ति के हित बदल जाते हैं, तो एक कमजोर देश, चाहे वह सहयोगी हो या विरोधी खेमे का सदस्य, महाशक्ति के हाथों दुर्व्यवहार और उदासीनता का समान रूप से शिकार हो जाता है।

रूस के खिलाफ यूक्रेन के युद्ध के दौरान, संयुक्त राज्य अमेरिका और राष्ट्रपति बिडेन न केवल यूक्रेन के संरक्षक और सहयोगी बने, बल्कि अरबों डॉलर के हथियार, सहायता और वैश्विक समर्थन प्रदान करके रूस के खिलाफ युद्ध जारी रखा, क्योंकि यही अमेरिकी हितों की मांग थी। यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की अमेरिका की नज़र में आज़ादी के नायक थे और अमेरिका में लोकप्रिय थे। लेकिन, 20 जनवरी को रिपब्लिकन राष्ट्रपति ट्रंप की सरकार के सत्ता में आते ही अमेरिकी हितों की मांग बदल गई, इसलिए रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ बातचीत शुरू हुई। सिर्फ़ चार हफ़्तों में, रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ अमेरिकी वार्ता और राष्ट्रपति ट्रंप और उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस द्वारा यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की की अपमानजनक टिप्पणियों के व्हाइट हाउस द्वारा नाकाबंदी। इससे एक बार फिर दूसरे देशों के लिए इस तथ्य की पुष्टि हुई कि जो लोग महाशक्तियों के हितों के लिए उनके सहयोगी बनकर अपने घरेलू और राष्ट्रीय हितों का त्याग करते हैं, उन्हें अंततः महाशक्तियों के हाथों उदासीनता, संकट और गिरावट का सामना करना पड़ता है।

शुक्रवार को अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात के दौरान जेलेंस्की ने ट्रंप को खरी-खोटी सुना दी. दोनों के बीच करीब 9 मिनट तक बहस चलती रही. आखिर में ट्रंप ने बहस रोककर जेलेंस्की को व्हाइट हाउस से बाहर भेज दिया.

दुनिया के सबसे पावरफुल माने जाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने जेलेंस्की का खुला मोर्चा खोलना पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है. जेलेंस्की राजनीति में कॉमेडी के जरिए आए. जब उन्होंने यूक्रेन की राजनीति में कदम रखा, तब वहां भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा था. जेलेंस्की कॉमेडी के जरिए इस पर आवाज उठाते थे. जनता ने जेलेंस्की को अपना समर्थन दिया और वे राष्ट्रपति बन गए. जेलेंस्की ने इसके बाद नाटो की सदस्यता लेने की तैयारी शुरू कर दी.

इसी बीच रूस ने जेलेंस्की को चेताया, लेकिन बाइडेन से दोस्ती की वजह से जेलेंस्की अपने फैसले पर अड़े रहे. आखिर में फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया, तब से अब तक यूक्रेन बर्बाद हो चुका है. ओब्लास्ट समेत कई शहरों पर रूस ने कब्जा कर लिया है.

यूक्रेन की कोशिश शांति समझौते के तहत अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने की है. जेलेंस्की जानते हैं कि इन जमीनों को अगर वापस नहीं पाया गया तो यूक्रेन में उनके लिए सर्वाइव करना आसान नहीं होगा. नाटो की सदस्यता को लेकर अमेरिका के यूटर्न से पहले ही जेलेंस्की बैकफुट पर हैं.

जेलेंस्की अगर अमेरिका के सामने नहीं अड़ते हैं तो उसका सीधा इंपैक्ट यूक्रेन की जनता पर होगा. जेलेंस्की ट्रंप के जरिए अपने लोगों को साधने में लगे हैं. ट्रम्प ने जहां यूक्रेन से मुंह मोड़ लिया है, वहीं यूरोपीय देश मजबूती के साथ यूक्रेन के पीछे खड़ा है. ब्रिटेन और फ्रांस के प्रधानमंत्री ने तो खुले तौर पर समर्थन कर दिया है. ब्रिटेन और फ्रांस यूनाइटेड नेशन का स्थाई सदस्य है. दोनों देशों के पास आधुनिक हथियार भी हैं.

ब्रिटेन ने तो अपने सैनिक भी भेजने की बात कही है. वहीं फ्रांस का कहना है कि रूस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. खासकर पुतिन की बातों पर. ब्रिटेन और फ्रांस के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी मिलकर गए हैं. इन दोनों महाशक्ति को भी यूरोप में इग्नोर नहीं किया जा सकता है.

इसके अलावा जर्मनी भी यूक्रेन के समर्थन में है. पोलैंड ने भी खुलकर यूक्रेन का समर्थन किया है. ऐसे में जेलेंस्की जानते हैं कि शांति के लिए रूस भी उसकी शर्तों को मानेगा. दूसरी तरफ रूस भी इस युद्ध से थक चुका है.

कीव इंडिपेंडेंट के मुताबिक युद्ध में अब तक रूस के 8.47 लाख सैनिक मारे जा चुके हैं. 370 प्लेन और 331 हेलिकॉप्टर क्रैश हो चुके हैं. यूक्रेन ने युद्ध के दौरान 10 हजार से ज्यादा टैंक और 23 हजार से ज्यादा रूसी आर्टिलरी को नष्ट कर दिया है. युद्ध में हथियारों की कमी से जूझ रहा रूस उत्तर कोरिया की मदद ले रहा है.