लखनऊ: दो दिन पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रदेश में 74 हजार पदों के लिए भर्ती शुरू करने की घोषणा की गई। इसमें अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से 30 हजार, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड से 27 हजार और उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग से 17 हजार पद शामिल हैं। इन 74 हजार पदों पर नई भर्ती की घोषणा की हकीकत क्या है, इसे समझने की जरूरत है।

अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में 30 हजार पदों पर विज्ञापन जारी कर चयन प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है बल्कि प्रारंभिक आहर्ता परीक्षा घोषित की गई। लेकिन सरकार और मीडिया आहर्ता परीक्षा के आयोजन को इस तरह पेश कर रहा है कि मानों विज्ञापन जारी हो चुका हो । जब चुनाव के 6 महीने शेष बचे हैं तो सरकार बताये कि कैसे इतने अल्प समय में आहर्ता परीक्षा और उसके बाद मुख्य परीक्षा पूरी कर युवाओं को नियुक्ति दे दी जायेगी जिसका दावा किया जा रहा है। जबकि प्रदेश में 5-10 साल तक पुरानी भर्तियां अधर में हैं। इसी अधीनस्थ सेवा आयोग में भी 2016 तक की भर्तियों की परीक्षाओं को अभी तक आयोजित नहीं किया गया है। इसके इस अलावा आहर्ता परीक्षा में भी वेबसाइट व सर्वर समस्या के चलते करीब 10 लाख छात्रों के आवेदन से ही वंचित होने से विवाद शुरू हो गया है।

माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में 15 हजार टीजीटी पीजीटी और उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में 2020 से 2 हजार असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों के लिए चयन प्रक्रिया चल रही है और अगस्त-अक्तूबर में परीक्षाएं प्रस्तावित हैं। बता दें कि यह दोनों विज्ञापन इन आयोगों द्वारा 2016 के बाद जारी किए गए हैं। इसके अलावा 27 हजार टीजीटी पीजीटी व 17 हजार असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर न तो चयन प्रक्रिया चल रही है और भविष्य में प्रस्तावित है।

वास्तव में 74 हजार पदों की मुख्यमंत्री द्वारा घोषित की गई भर्ती फिलहाल अस्तित्व में ही नहीं है जिसकी मीडिया में चर्चा है। इसी तरह की शिगूफेबाजी कोरोना से निपटने में योगी सरकार द्वारा की गई थी, दावा किया गया था कि एक लाख कोविड बेड हैं, आक्सीजन व वेंटिलेटर आदि की किसी तरह की कमी नहीं है, लेकिन किस तरह प्रदेश में लोगों को राम भरोसे छोड़ दिया गया इसे कौन भूल सकता है। इस बार चुनावों में रोजगार को मौलिक अधिकार बनाने और 5 लाख रिक्त पदों के बैकलॉग को भरने का मुद्दा युवा बनायेंगे और सरकार किसी भ्रम में न रहे कि युवाओं को झांसा देकर निकल जायेगी।