न्यूज़ डेस्क
राजनीतिक वर्चस्व की जंग भी अजीब होती है और यह तब और भी अजीब हो जाती है जब मुकाबला एक ही जाति या समुदाय में हो जाता है. समाजवादी पार्टी के संस्थापक और संरक्षक आज इस नश्वर संसार को छोड़ चले गए मगर उनसे जुडी यादें आज भी लोगों के दिमाग़ में ताज़ा है. ऐसी ही एक याद उन पलों की हैं जब मुलायम सिंह यादव देश के प्रधानमंत्री बनने के बिलकुल करीब थे, ऐसे दो मौके आये मगर इन दोनों मौकों पर उनकी राह में रोड़ा उनकी अपनी जाति के नेताओं ने ही डाला।

बात 1996 की है, यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनने वाली थी, प्रधानमंत्री पद के लिए फ्रंट के एक वरिष्ठ लीडर ने मुलायम सिंह का नाम सुझाया लेकिन राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और शरद यादव की आपत्तियों के कारण प्रधानमंत्री नहीं बन सके। दरअसल 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली थी। भारतीय जनता पार्टी के खाते में 161 सीटें थीं। अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार बनाई मगर वो 13 दिनों में ही गिर गई। अब सवाल यह उठा कि नई सरकार कौन बनाएगा। कांग्रेस गठबंधन सरकार बनाने के मूड में नहीं थी।

लोगों ने 989 में गठबंधन सरकार चलाने वाले वी पी सिंह से कहा महोने उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया। फिर पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु का नाम सामने रखा, मगर सीपीएम पोलित ब्यूरो ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसके बाद मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव का नाम सामने आया। चारा घोटाले में नाम आने के बाद लालू पीएम की दौड़ से बाहर हो गए। गठबंधन बनाने का काम वामपंथी दिग्गज हरकिशन सिंह सुरजीत को सौंपा गया था। सुरजीत ने प्रधानमंत्री के लिए मुलायम के नाम की वकालत की लेकिन लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने इसका कड़ा विरोध किया। नतीजतन, नेताजी प्रधानमंत्री बनने से चूक गए।

1999 में फिर से चुनाव हुए। मुलायम सिंह ने संभल और कन्नौज सीटों से दोहरी जीत हासिल की। उनका नाम फिर से पीएम पद के लिए आया। लेकिन 1996 की पुनरावृत्ति में, अन्य यादव नेताओं ने मुलायम का समर्थन करने से इनकार कर दिया। इस तरह मुलायम सिंह दो बार प्रधानमंत्रियों की कुर्सी पर कब्जा करने के करीब आ गए, लेकिन गठबंधन की राजनीति के कारण हार गए।