निरुक्त भार्गव, पत्रकार, उज्जैन

जैसे काले-काले बादल हर दिन आसमान पर मंडराते रहते हैं लेकिन बरसते नहीं, लगता है कि उज्जैन को भी कुछ इसी तरह के हालातों का सामना करना पड़ रहा है, वो भी लगातार! महाकाल की नगरी को ना मालूम कौन-सा अभिशाप लगा है कि यहां के बाशिंदों को कोई-न-कोई नया संकट घेर लेता है…

उज्जैन को ना जाने कितने पुराने काल से ‘मोक्षदायिनी’ स्थली होने की मान्यता मिली हुई है? जाहिर है, क्षिप्रा जी के कारण ही उज्जयिनी को युगों-युगों से ये स्टेटस मिला होगा? क्षिप्रा जी आज भी उज्जैन पर कृपावनत हैं, इसीलिए जन्म-जन्मान्तर की सारी परम्पराएं चलायमान हैं!

पर हकीकत में क्या क्षिप्रा जी के किसी भी घाट पर कोई भी सामान्य नागरिक जल आचमन और स्नान सहित भिन्न-भिन्न कर्मकांड करवाकर संतुष्ट हो सकता है? “बिल्कुल नहीं”! क्या शहर के 6 लाख से भी ज्यादा नागरिकों को क्षिप्रा का पानी घरों के नलों में छोड़कर उनकी प्यास बुझायी जा सकती है? “कदापि नहीं”?

समझ में ही नहीं आ रहा है कि “जिम्मेदार” और “जवाबदेह” लोग क्यों क्षिप्रा जी को अवमूल्यित करने में सक्रिय हैं! क्षिप्रा जी को तो लोगों के पाप धोने की मान्यता मिली हुई है, पर उनको पानी की पिपासा शांत करने का माध्यम इस दौर में बना दिया जा रहा है!

उज्जैन के ‘सख्त’ प्रशासकों ने 09-10-11 जुलाई 2021 को परंपरागत शनिश्चरी अमावस्या के अवसर पर क्षिप्रा के तमाम घाटों पर आम श्रद्धालुओं को पवित्र स्नान करने से वंचित कर दिया है! बावजूद इसके इन्हीं दिनों में उज्जैन के वासियों को इसी जल से तृप्त करने की योजना भी बना ली गई है!

मुद्दा है, गंभीर बांध के सूख जाने का! मानसून की बेरुखी का!! और इन सबके बीच जो पानी दिखाई दे रहा है, उसको सप्लाई कर देने का!!!

उज्जैन नगर निगम में चुनकर आये जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त हुए एक अर्सा बीतने को है. उल्लेख करने की जरूरत नहीं फिर भी करना पड़ रहा है कि ‘जनता के नौकर’ हर स्तर पर काबिज हैं! जिला सरकार और जिला स्तरीय आपदा प्रबंध समूह काफ़ूर हो गए हैं! तिस पर भी फैसला कर लिया गया, “उज्जैनवासियों को अब हर तीसरे दिन जल आपूर्ति होगी”…

मैं सभी माई के लालों, शहर की भाईगिरी करने वालों और उनके उन तमाम-तमाम पट्ठों, जो अनगिनत सालों से “अमृत” का रसपान कर रहे हैं, से पूछना चाहता हूं कि क्षिप्रा जी के काले पानी का रहस्य क्या है? कान्ह नदी के भीषण प्रदूषित पानी को क्षिप्रा में नहीं मिलने देने का स्टेटस क्या है? और नर्मदा जी तो क्षिप्रा जी से मिल ही चुकीं थीं, सो उस पानी का रासायनिक पैमाना क्या है?

मैं अब समझ गया हूं कि जिस तंत्र पर हम भरोसा करते हैं, वो हमारे भरोसे को खो चुका है! असंख्य ‘फिल्टर्ड’ और ‘आरओ’ जार को क्षिप्रा में डुबोकर भी घरों में पीने योग्य जल का सप्लाई नहीं किया जा सकता है! कितनी भी नदियां और उपचारित नाले उज्जैन की तरफ मोड़ दो, पर क्षिप्रा जी के हालात नहीं सुधारे जा सकते!

मैं फिर से लानत-मलानत भेजता हूं, आधुनिक काल के योजनाकारों/प्रशासकों/नेताओं के जिन्होंने उज्जैन जैसी नगरी को फिर से जलसंकट की ओर धकेल दिया है….