लेख

कोरोना से सहमी सरकार की वर्चुअल रैलियां

राजेश सचान, युवा मंच

राजेश सचान

कोविड-19 महामारी के बेकाबू होते जा रहे हालात के बीच केंद्रीय गृह मंत्री व भाजपा नेता अमित शाह द्वारा वर्चुअल रैली कर बिहार चुनाव का शंखनाद करने की प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से खबर है। इस वर्चुअल रैली को बिहार में 70 हजार बूथों पर एलईडी के माध्यम से दिखाया जाना था, इसी तरह भाजपा ने 75 और वर्चुअल रैलियों के आयोजन का लक्ष्य लिया है। कोविड महामारी संकट के दौर में इस तरह के राजनीतिक प्रोपेगैंडा और चुनावी अभियान के लिए ऊर्जा जाया करने और करोड़ों रुपये बहाने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। यही वजह रही कि उन्हें जोर देकर सफाई देनी पड़ी कि राजनीतिक प्रचार उनका मकसद नहीं है।

बहरहाल ताली-थाली, घण्टी बजाने, दीप प्रज्वलन व कोराना वारियर्स पर सेना द्वारा पुष्प वर्षा जैसे प्रोग्राम को ऐतिहासिक बता कर कोराना संकट के खिलाफ देश को एकजुट करने की बड़ी कार्यवाही के बतौर पेश करने को हास्यास्पद के अलावा क्या कहा जा सकता है। इसमें मोदी सरकार की उपलब्धियों का महिमामंडन के सिवाय नया क्या है, इसका राजनीतिक लाभ तो भाजपा को पहले ही मिल चुका है।

दरअसल मोदी सरकार महज राजनीतिक प्रचार ही नहीं करना चाहती है बल्कि यह बुरी तरह डरी हुई है। उनकी वर्चुअल रैली में कोई नई बात कहने के लिए नहीं है, इसलिए इसमें न तो कोई तथ्य है और न ही तेवर। दरअसल लोग तो मौजूदा बुरे हालात से निपटने के लिए सरकार के पास रोडमैप क्या है, तैयारियां क्या हैं, इसे जानना चाहते हैं।

एक तरफ कोविड महामारी के संक्रमण का खतरा बढ़ता जा रहा है, किसी न किसी रूप में आबादी के एक बड़े हिस्से के चपेट में आने की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं, मानसून के साथ ही अन्य संक्रामक बीमारियों का आसन्न खतरा अलग से है। अभी से स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है, तब मुकम्मल स्वास्थ्य तैयारियों को लेकर भी लोग चिंतित हैं। लेकिन नागरिकों की वाजिब चिंता दूर करने के बजाय आंकड़ों के प्रोपेगैंडा से इसकी भरपाई करने की कोशिश की जा रही है। इसी तरह अर्थव्यवस्था का जिस तरह संकट गहराया है, 10 करोड़ से ज्यादा लोगों की रोजी रोटी छिन गई, लेकिन मोदी सरकार को मनरेगा में भी सभी को काम मिल जाये, लोगों को सीधे 7500 रू 6 महीने तक कैश ट्रांसफर किया जाये, इतना भी न्यूनतम काम करने में क्या दिक्कत है ? मौजूदा हालात में मध्यम वर्ग बेहद हताश है, कुंठित हो रहा है। हताशा-कुंठा उसे कहां ले जायेगी, कितने सालों तक इसका असर होगा, उसे कुछ नहीं पता।

सब मिलाजुला देखा जाये तो इस वर्चुअल रैली से न तो उत्साह पैदा हुआ, न ही इस रैली का कोई तर्क ही बन सका। इसी तरह इस दौर में पीएम भी जो बोल रहे हैं उनकी बातों का भी तर्क नहीं बन पा रहा है और निष्पक्ष लोगों में इसे लेकर अच्छी धारणा नहीं है। यही वजह है कि कल से शुरू हुई वर्चुअल रैलियों को फ्लाप ही नहीं माना जा रहा है, बल्कि लोगों में इसके विरुद्ध प्रतिक्रिया हो रही है और लोगों में अंदर से गुस्सा पैदा हो रहा है। देखिए आगे और क्या होता है?

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