तौक़ीर सिद्दीक़ी

तौक़ीर सिद्दीक़ी

एक कहावत है कि घुटने हमेशा पेट की और मुड़ते हैं, आप अपने घुटनों को सीधा रखकर चाहे जितनी देर खड़े रह सकते हैं मगर जब भी आपको अपने घुटने मोड़ना होंगे उसकी दिशा आपका पेट ही होगा। आप इसे आसान भाषा में कह सकते हैं कि अपने तो अपने होते हैं। मैं यहाँ बात वरुण गाँधी की कर रहा हूँ जो नेता और प्रतिनिधि भले ही भाजपा के हों पर चश्मो चिराग़ तो गाँधी परिवार के ही हैं और इस सच को लाख कोशिशों के बाद कोई झुठला भी नहीं सकता। इस बात से भी कोई इंकार नहीं कर सकता कि सोनिया गाँधी उनकी बड़ी अम्मी हैं और प्रियंका व राहुल उनके भाई. इन दोनों से खून का रिश्ता है वरुण का.

कहते हैं कि खून रंग लाता ज़रूर है. शायद रंग लाने भी लगा है, तभी तो वरुण के तेवर भी बदल गए हैं, अंदाज़ भी बदल गया है और भाषा भी. लेकिन भाजपा में रहकर भी भाजपा पर हमले की शालीनता गाँधी परिवार जैसी। आज जिस तरह वरुण गाँधी ने किसानों के मुद्दे पर भाजपा को आज के लायक बनाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की एक छोटी से वीडियो क्लिप को शेयर करके बड़ी शालीनता से भाजपा या कह सकते हैं कि सीधे नरेंद्र मोदी पर हमला बोला है उससे यह ज़ाहिर होने लगा है कि गाँधी फैमिली का यह चश्मो चिराग़ भाजपा में अब ज़्यादा दिन जलने वाला नहीं।

देखा जाय तो वरुण गाँधी के यह तेवर तबसे जारी हैं जबसे किसान आंदोलन ने रफ़्तार पकड़ी और मोदी सरकार ने सैकड़ों किसानों की मौत के बाद भी मौन धारण कर लिया क्योंकि वह अपने उद्योगपति मित्रों को किसी भी हाल में नाराज़ नहीं कर सकते जो सीधे रूप से तीन विवादित कृषि कानूनों से जुड़े हैं. मैंने ऊपर खून की बात कही थी और वरुण गाँधी में वह खून दौड़ रहा है जो किसानों पर इस तरह के अत्याचार होते देख खौलने पर मजबूर हो जाता है.

वैसे वरुण गाँधी को भाजपा में हाशिये पर लाना तभी से शुरू हो गया था जब भाजपा पर मोदी और शाह की जोड़ी ने कब्ज़ा कर लिया था. खासकर अमित शाह ने वरुण को कभी पसंद नहीं किया और उसकी वजह शायद उनके नाम के आगे गाँधी सरनेम लगा होना थी। यह तो सभी सभी को मालूम है कि गाँधी नाम से नरेंद्र मोदी से कहीं ज़्यादा अमित शाह चिढ़ते हैं, फिर वह चाहे महात्मा गाँधी का नाम ही क्यों न हों, हालाँकि वह गुजरात से थे इसके बावजूद भी.

मामला अब सिर्फ इस बात पर टिका मालूम होता है कि क्या भाजपा वरुण को निकालेगी या वरुण गाँधी भाजपा का तिरस्कार करेंगे। भाजपा खुद वरुण गाँधी को निकालकर उन्हें हीरो नहीं बनने देना चाहती और वरुण गाँधी शायद इस लिए भाजपा को नहीं छोड़ रहे हैं कि लोकसभा की सदस्यता हाथ से निकल जाएगी। उनकी राह में दूसरा रोड़ा शायद उनकी माँ मेनका गाँधी हैं जिनके बारे में लोग कहते हैं कि वह सोनिया गाँधी से एक हद तक नफरत करती हैं. मेनका गाँधी तो कभी नहीं चाहेंगी कि वरुण का रियल गाँधी फैमिली से रिश्ता मज़बूत हो लेकिन बात फिर उसी खून की और घुटने मुड़ने की. वरुण गाँधी ने कई मौक़ों पर प्रियंका गाँधी के साथ टाइम शेयर किया है, यह भी सभी को मालूम है कि उनके अपनी दीदी से बड़े अच्छे रिश्ते हैं और वह प्रियंका के टच में भी रहते हैं, राहुल से भी उनका अपनत्व है यह तो उनकी माँ मेनका की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बीच में बाधा बनी हुई है वरना इतनी लम्बी दूरी कब की ख़त्म हो चुकी होती।

इस मामले में रणदीप सुरजेवाला का एक बयान बहुत महत्व रखता है जिसमें उन्होंने कहा कि यह गाँधी परिवार का आंतरिक मामला है, इसलिए उन्हें ही फैसला करने दीजिये, मतलब खिचड़ी तो कुछ ज़रूर पक रही है. बाक़ी अगर मौजूदा राजनीतिक हालात पर गहराई से नज़र डालें तो हमें तो घुटने पेट की और मुड़ते ही दिखाई दे रहे हैं बाकी समय बताएगा।