• ज़ीनत क़िदवाई

उत्तराखंड में भाजपा की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (TSR) को दिल्ली तलब किया है और राज्य की राजनीतिक का पारा बढ़ाया है। भाजपा के कई विधायकों की नाराजगी के कारण मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी पर संकट खड़ा हो गया है। हालाँकि, क्या वह सत्ता की कमान अपने हाथों से छोड़ेंगे, यह तस्वीर स्पष्ट नहीं है, लेकिन उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में कांग्रेस और भाजपा का कोई भी सीएम नारायण दत्त तिवारी (NDT) को छोड़कर अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है।

उत्तराखंड का राजनीतिक मिजाज अस्थिर रहा है। भाजपा तीसरी बार राज्य की सत्ता में बैठी है, लेकिन पार्टी का एक भी सीएम पांच साल तक पद पर बना नहीं रह सका है। उत्तराखंड राज्य का सपना 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी की सरकार के कार्यकाल में साकार हुआ था। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनी।

भाजपा के नेता नित्यानंद स्वामी ने 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, लेकिन वह एक साल भी कुर्सी पर नहीं रह सके। भाजपा नेताओं ने नित्यानंद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, जिसके बाद उन्होंने 29 अक्टूबर 2001 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। नित्यानंद के इस्तीफे के बाद भाजपा ने अपने दिग्गज नेता भगत सिंह कोश्यारी को विधायक दल के नेता के रूप में चुना।

भगत सिंह कोशियारी ने 30 अक्टूबर 2001 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। वह 1 मार्च 2002 तक सीएम की कुर्सी पर बने रहे। उत्तराखंड में 2002 विधानसभा चुनाव हुए जिसमें भाजपा ने कोशियारी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। यह चुनाव भाजपा के लिए महंगा पड़ा और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस सत्ता में आ गयी।

2002 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस ने नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया और उन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। वह 2002 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद, 2007 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह से हार गई और भाजपा सत्ता में लौट आई। इस तरह नारायण दत्त तिवारी अबतक राज्य के एकमात्र सीएम हैं जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है।

2007 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला। भाजपा ने 2007 और 2012 के बीच पांच साल के कार्यकाल में उत्तराखंड का मुख्यमंत्री पद पर तीन बार बदलाव किया । 2007 में सत्ता में लौटने के बाद भाजपा ने 8 मार्च 2007 को भुवन चंद्र खंडूरी को सीएम बनाया मगर जून 2009 में बीजेपी ने खंडूरी के स्थान पर रमेश पोखरियाल निशंक को सत्ता की बागडोर सौंप दी। निशंक ने 24 जून 2009 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली लेकिन चुनाव से ठीक चार महीने पहले उन्होंने अपनी कुर्सी छोड़ दी। 10 सितंबर 2011 को भाजपा ने भुवन चंद्र खंडूरी को फिर से सीएम बनाया, लेकिन वह 2012 के चुनावों में पार्टी को सत्ता में वापस नहीं ला सके। इस तरह खंडूरी को 13 मार्च 2012 को कुर्सी छोड़नी पड़ी।

2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई लेकिन पांच साल के कार्यकाल में दो सीएम बदलने पड़े। पहले कांग्रेस ने 13 मार्च 2012 को विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन दो साल बाद ही उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया और हरीश रावत ने सत्ता संभाली। हरीश रावत ने 1 फरवरी 2014 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली लेकिन उन्होंने अपने लोगों के साथ संघर्ष किया।

2016 में कांग्रेस विधायकों के विद्रोह के कारण राष्ट्रपति शासन आया जिसके कारण हरीश रावत को कुर्सी को हटा दिया गया। इसके बाद अदालत से राहत मिली और कांग्रेस फिर से सत्ता में आ गई। इसके बाद 2017 के चुनावों में कांग्रेस को भाजपा के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा जिसके बाद रावत को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा।

2017 के विधानसभा चुनावों में जब भाजपा को मजबूत बहुमत मिला तो सत्ता की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत को दी गई। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 18 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली जिसके बाद वह अपनी कुर्सी पर बने हुए हैं। त्रिवेंद्र भाजपा में सीएम पद पर सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले नेताओं में से एक हैं लेकिन चार साल बाद पार्टी में बगावत से सरकार पर संकट गहरा गया है। स्थिति को संभालने के लिए भाजपा आलाकमान ने छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और महासचिव दुष्यंत सिंह गौतम को पर्यवेक्षक के रूप में देहरादून भेजा और अपनी रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष को सौंपी जिसके बाद दिल्ली में त्रिवेन्द सिंह को फ़ौरन तालाब किया गया और सीएम को बदलने की बात हो रही है। अब देखना है कि त्रिवेंद्र रावत कार्यकाल पूरा करने वाले उत्तराखण्ड के दूसरे मुख्यमंत्री बन पाएंगे या मुख्यमंत्री बदलने की परिपाटी जारी रहेगी|