मोहम्मद आरिफ नगरामी

उत्तर प्रदेश असेम्बली इन्तेखाबात से पहले जिस तरह से एक बार फिर माबलिंचिंग की घटनाएं सामने आ रही हैं, और मुल्क में मजहबी नफरत का जुनून जिस तेज़ी से अपने पावं पसार रहा है वह बहुत अफसोस और चिंता की बात है। धार्मिक उन्माद में डूबी भीड़ जिनको लक्ष्य बनाती है उनको जी भर मारने पीटने के बाद, ऐसा माहौल बनाया जाता है कि पिटने वाला ही गुनहगार नजर आने लगता है। देश के बहुसंख्यक समुदाय से तअल्लुक रखने वाले लोगों के अन्दर अल्पसंख्यकों और खास कर मुसलमानों के खिलाफ जो नफरत का जहेर भर दिया गया है, उसमें भाईचारे की उस परंपरा को बहुत नुकसान पहुंचाया है जो इस देश की पहचान रही है।

माबलिंचिंग के अफसोसनाक और शर्मनाक, मामलात आये दिन सामने आने लगे हैं जो यह साबित करते हैं कि एक शहर या कस्बा और गांव में रहने वालों ने अपने गिर्द मजहबी और कौमी तअस्सुब का ऐसा घेरा बना लिया है, कि इसके बाहर के लोग उनकी नजरों में इन्सान ही नहीं होते, यही वजह है कि इस नफरती भेदभाव में डूबे यह लोग किसी बेगुनाह और सीधे साधे इन्सान को सिर्फ इस आधार पर अपनी हिंसा का निशाना बनाते हैं कि वह शख्स धार्मिक तौर पर उनसे अलग पहचान रखता है।

विगत कुछ वर्षों में मुल्क के विभिन्न हिस्सों में माबलिंचिंग की जो घटनाएं हुई हैं, अगर उनकी गिनती कि किया जाये तो तादाद सैंकडों में पहुंच जायेगी और इस तरह के मामलात में सबसे ज्यादा अफसोस नाक पहलू यह है कि कानून की सुरक्षा को यकीनी बनाने वाला विभाग यानी पुलिस प्रशासन ऐसे मौकों पर अक्सर खामोश तमाशाई की भूमिका अदा करती है, अपने फर्ज से इस कदर गैरसंजीदगी भरा यह रवैया इसलिये अख्तियार किया जाता है कि हिंसा करने वाले लोग और उनमें कोई फ़र्क़ नज़र नहीं आता है और दूसरे यह कि ऐसे मामलात ज़्यादातर उन्हीं राज्यों में होते हैं जहां भगवा पार्टी की हुकूमत है, यह दोनों ऐसे कटु सत्य हैं जो संविधान को बुरी तरह प्रभावित कर रहे है, अगर इस देश में लोगों के अधिकारों को सुरक्षित रखना है तो इस चलन को ख़त्म करने की जरूरत है । खास तौर पर उत्तर प्रदेश मेें चुनाव से पहले जिस तरह माबलिंचिंग की घटनाएं सामने आ रही हैं, उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ यह है कि सियासी पोलाराईजेशन हो सके। ध्यान रहे कि अभी कुछ दिनों कब्ल, उत्तर प्रदेश के शहर चित्रकूट में आर.एस.एस. की एक मीटिंग हुयी थी, जिसमें यह बार चर्चा में आई थीं कि जैसे भी हो उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों को बेहैसियत किया जाना चाहिये। फादर और चादर से लडाई का नारा दिया गया था। फादर का मतलब ईसाई और चादर का मतलब मुसलमान है, और उसी सोच के साथ उत्तर प्रदेश के एक लाख से ज़्यादा गांव में आर.एस.एस. अपने तीन सदस्यों को भेज रही है। मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, छत्तीसगढ आदि से यह सदस्य वहां जायेंगेें । असेम्बली चुनाव 2022 के लिये होटलों की बुकिंग अभी से शुरू हो चुकी है। बिहार एलेक्शन में भी यही हुआ था कि एलेक्शन से महीनों पहले आर.एस.एस.वालों ने होटल बुक कराये थे।

उत्तर प्रदेश का एलेक्शन योगी और मोदी की इज्जत का स्वाल है इसलिये हर तरह कोशिश की जायेगी कि हर हाल में यह एलेक्शन जीता जाये। सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश असेम्बली एलेक्शन में बीजेपी ने 15 हजार करोड़ खर्च करने का मन्सूबा बनाया है। जिन जिन राज्यों में उत्तर प्रदेश के लोग रहते हैं वहां बडी बडी होर्डिंग लगा दी गयी है। खास कर दिल्ली में कोई जगह खाली नहीं है। हर जगह सरकार के कामों की होर्डिग लगी हुयी है। बंगलोर, मुम्बई, हरियाणा, हर जगह यह किया जा रहा है, बंगलौर मेें तो मुकदमा भी हो गया था। यूपी हुकूमत नहीं बता सकी कि उसने चार लाख नौकरियां कहां दीं, इसलिए होर्डिंग उतारनी पडी थी।

उत्तर प्रदेश में माबलिंचिंग का जो दौर शुरू हुआ है वह इसी एलेक्शन का हिस्सा है। अब सवाल यह पैदा होता है कि अपने आप को सेक्युलर कहलाने का शौक रखने वाली राजनीतिक पार्टियां कहां हैं। हर पार्टी समझ रही है कि मुसलमानों के साथ क्या हो रहा है, उनकी पिटाई हो रही है, उनके खिलाफ नाजायेज मुकदमात दर्ज किये जा रहे हैं, लेकिन सब खामोश हैं। संविधान को ताक़ पर रख दिया गया है, आरएसएस के फ्रंटल संगठन आदिवासियों, मुसलमानों को पीट रहे हैं । इस वक्त मुसलमान ख़ास तौर पर निशाने पर हैं, बीजेपी उसके खिलाफ कार्रवाई करती है जो उसके खिलाफ आवाज बलंद करता है।

देश की सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा में मानवता का जो चमकदार तत्व शामिल हैं, अब उस पर मजहबी नफरत की धुन्ध छाने लगी है, अगर इस धुन्ध को मोहब्बत और भाईचारगी की रोशनी से शिकस्त न दी गयी तो न जाने कितने बेगुनाहों को नफरत, हिंसा और ज़िल्लत और रूसवाई का सामना करना पडेगा। मुल्क की मौजूदा सूरतेहाल देश की तरक्की और खुशहाली के लिये नुकसानदेह हो सकती है। लेहाजा अगर इस नुक्सान से बचना है तो मुल्क की फिजाओं को मजहबी नफरत और तशद्दुद के खूनी दागों से पाक करना होगा।