ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज अध्ययन के अनुसार, भारत में होने वाली सभी मौतों में से लगभग एक चौथाई (24.8 प्रतिशत) हृदय संबंधी बीमारियों (सीवीडी) के कारण होती हैं। एओर्टिक स्टेनोसिस, एक सामान्य लेकिन गंभीर हृदय रोग है। यह स्वास्थ्य से जुड़ी बड़ी चिंता का विषय रहा है। यह भारत में वयस्क आबादी में तीसरा सबसे सामान्य वाल्व घाव है, जो 7.3 प्रतिशत मामलों में देखने को मिलता है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। पूरे उत्तर प्रदेश में हृदय रोग विशेषज्ञों का अनुमान है कि राज्य में 2 लाख मौतें सीवीडी के कारण होती हैं। एओर्टिक स्टेनोसिस एक ऐसी स्थिति है जो एओर्टिक वाल्व के संकुचन की विशेषता है, यह शरीर के बाकी हिस्सों में रक्त के प्रवाह को बाधित करती है। इससे सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ और यहां तक कि हार्ट फेल जैसे लक्षण हो सकते हैं। परंपरागत रूप से, गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस वाले रोगियों के लिए ओपन-हार्ट सर्जरी ही एकमात्र विकल्प था। हालाँकि, यह विधि विशेषकर वृद्ध रोगियों और अन्य स्वास्थ्य जटिलताओं वाले लोगों के लिए जोखिम भरी हो सकती है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के अग्रणी इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अखिल शर्मा ने कहा, “हालाँकि, ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन प्रक्रिया का आगमन इस दुर्बल स्थिति से पीड़ित रोगियों के लिए आशा की एक नई किरण लेकर आया है। लखनऊ में, टीएवीआई प्रक्रिया को अपनाने से एक बड़ा बदलाव आया है। स्थानीय अस्पतालों ने इस उन्नत उपचार को शुरू कर दिया है | टीएवी/टीएवीआर के चलते कई रोगियों को जीवन रेखा प्रदान हुई है ख़ासकर, उन मरीज़ों को जिन्हे आयारटिक स्टेनोसिस से ख़तरा बहुत ज़्यादा था। शहर में प्रक्रिया की सफलता दर आशाजनक रही है, कई मरीज़ टीएवीआई के बाद अपने जीवन की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार की बात कर रहे हैं। टीएवीआई एक मिनिमली इन्वेसिव प्रक्रिया है जिसने एओर्टिक स्टेनोसिस के उपचार में क्रांति ला दी है। टीएवीआई में कैथेटर के माध्यम से, आमतौर पर पैर में फेमोरल आर्टरी के माध्यम से, रोगी के हृदय में एक नया वाल्व डाला जाता है। इस प्रक्रिया के लिए ओपन-हार्ट सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे यह कई रोगियों के लिए एक सुरक्षित और अधिक आरामदायक विकल्प बना है।