पुण्य तिथि पर विशेष-

संजोग वाॅल्टर

फिल्म साहिब बीबी और गुलाम में छोटी बहु (मीना कुमारी ) अकेलेपन से तंग आकर शराब का सहारा लेती है ऐसा ही हुआ असलियत में उनकी जिन्दगी जब उन्हें सहारे की जरूरत थी तब उनको सहारा नहीं मिला,मीना कुमारी बेमिसाल अदाकारा,जिन्हें ट्रेजेडी क्वीन का खिताब मिला,मीना कुमारी का असली नाम महजबी बानो था और ये बंबई में पैदा हुई थीं। उनके वालिद अली बक्श भी फिल्मों में और पारसी रंगमंच के मझे हुये कलाकार थे और उन्होंने कुछ फिल्मों में संगीतकार का भी काम किया था। उनकी वालिदा प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो),भी मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थी जिनका ताल्लुक टैगोर परिवार से था। महजबी ने पहली बार किसी फिल्म के लिये छह साल की उम्र में काम किया था। उनका नाम मीना कुमारी विजय भट्ट की खासी लोकप्रिय फिल्म बैजू बावरा से पड़ा। मीना कुमारी की प्रारंभिक फिल्में ज्यादातर पौराणिक कथाओं पर आधारित थे। मीना कुमारी के आने के साथ भारतीय सिनेमा में नयी अभिनेत्रियों का एक खास दौर शुरु हुआ था जिसमें नरगिस ,निम्मी, सुचित्रा सेन और नूतन शामिल थीं। 1953 तक मीना कुमारी की तीन सफल फिल्में आ चुकी थीं जिनमें दायरा, दो बीघा जमीन और परिणीता शामिल थीं. परिणीता से मीना कुमारी के लिये नया युग शुरु हुआ। परिणीता में उनकी भूमिका ने भारतीय महिलाओं को खास प्रभावित किया था चूकि इस फिल्म में भारतीय नारियों के आम जिदगी की तकलीफों का चित्रण करने की कोशिश की गयी थी। लेकिन इसी फिल्म की वजह से उनकी छवि सिर्फ दुखांत भूमिकाएँ करने वाले की होकर सीमित हो गयी। लेकिन ऐसा होने के बावजूद उनके अभिनय की खास शैली और मोहक आवाज का जादू भारतीय दर्शकों पर हमेशा छाया रहा।

मीना कुमारी की शादी  फिल्मकार कमाल अमरोही के साथ हुई जिन्होंने मीना कुमारी की कुछ मशहूर फिल्मों का निर्देशन किया था। लेकिन मीना अमरोही से 1964 में अलग हो गयीं। उनकी फिल्म पाकीजा को और उसमें उनके रोल को आज भी सराहा जाता है शर्मीली मीना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कवियित्री भी थीं लेकिन कभी भी उन्होंने अपनी कवितायें छपवाने की कोशिश नहीं की। उनकी लिखी कुछ उर्दू की कवितायें नाज के नाम से बाद में छपी। मीना कुमारी उम्र भर एक पहेली बनी रही महज चालीस साल की उम्र में वो मौत के मुह में चली गयी इसके लिए मीना के इर्दगिर्द कुछ रिश्तेदार,कुछ चाहने वाले और कुछ उनकी दौलत पर नजर गढ़ाए वे लोग हैं, जिन्हें ट्रेजेडी क्वीन की अकाल मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। मीना कुमारी को एक अभिनेत्री के रूप में, एक पत्नी के रूप में,एक प्यासी प्रेमिका के रूप में और एक भटकती गुमराह होती हर कदम पर धोखा खाती स्त्री के रूप में देखना उनकी जिंदगी का सही पैमाना होगा।

मीना कुमारी की नानी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के छोटे भाई की बेटी थी, जो जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही प्यारेलाल  के चली साथ  गई थीं। विधवा हो जाने पर उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया। दो बेटे और एक बेटी को लेकर बम्बई आ गईं। नाचने-गाने की कला में माहिर थीं इसलिए बेटी प्रभावती के साथ पारसी थिएटर में भरती हो गईं। प्रभावती की मुलाकात थियेटर के हारमोनियम वादक मास्टर अली बख्श से हुई। उन्होंने प्रभावती से निकाह कर उसे इकबाल बानो बना दिया। अली बख्श से इकबाल को तीन संतान हुईं। खुर्शीद,महजबी (मीना कुमारी) और तीसरी महलका (माधुरी)। पैदा होते ही वालिद अली बख्श ने रुपये के तंगी और पहले से दो बेटियों के बोझ से घबरा कर इन्हे एक मुस्लिम अनाथ आश्रम में छोड़ दिया था, मीना कुमारी की माँ के काफी रोने-धोने पर वे इन्हे वापस ले आए। परिवार हो या शादीशुदा जिंदगी मीना कुमारी के हिस्से में सिर्फ तन्हाईयाँ हीं आइ,। अली बख्श रंगीन मिजाज के व्यक्ति थे।  परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। महजबीं को मात्र चार साल की उम्र में फिल्मकार विजय भट्ट के सामने खड़ा कर दिया गया। इस तरह बीस फिल्में महजबीं (मीना) ने बाल कलाकार के रूप में न चाहते हुए भी की। महजबीं को अपने पिता से नफरत सी हो गई और पुरुष का स्वार्थी चेहरा उसके जेहन में दर्ज हो गया। फिल्म बैजू बावरा (1952) से मीना कुमारी के नाम से मशहूर महजबीं ने अपने वालिद की इमेज को दरकिनार करते हुए उनसे हमदर्दी जताने वाले कमाल अमरोही की शख्सियत में अपना बेहतर आने वाला कल दिखाई दिया,वे उनके नजदीक होती चली गईं। नतीजा यह रहा कि दोनों ने निकाह कर लिया। लेकिन यहाँ उसे कमाल साहब की दूसरी बीवी का दर्जा मिला। उनके निकाह के इकलौते गवाह थे जीनत अमान के अब्बा अमान साहब। कमाल अमरोही और मीना कुमारी की शादीशुदा जिंदगी करीब दस साल तक एक सपने की तरह चली। मगर औलाद न होने की वजह से उनके ताल्लुतक में दरार आने लगी। लिहाजा दोनों अलग हो गये कहते है उस रात मीना कुमारी ने जब कमाल अमरोही का घर छोड़ा था,उस रात किसी ने भी उनकी मदद नहीं की भारत भूषण,प्रदीप कुमार,राज कुमार किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया। फिल्म फूल और पत्थर (1966) के हीरो ही-मैन  ध र्म ेन्द्र से मीना की नजदीकियाँ, बढ़ने लगीं। इस दौर तक मीना कामयाब,  सुपर हिट हीरोइन के रूप में जानी जाने लगी थी, धर्मेन्द्र का करियर डाँवाडोल चल रहा था। उन्हें मीना का मजबूत पल्लू थामने में अपनी सफलता महसूस होने लगी। गरम धरम ने मीना को सूनी सपाट अंधेरी जिंदगी को एक ही मैन की रोशन से भर दिया। कई तरह के गॉसिप और गरमा गरम खबरों से फिल्मी पत्रिकाओं के पन्ने रंगे जाने लगे। इसका असर मीना कमाल के रिश्ते पर भी हुआ। मीना धर्मेन्द्र के रोमांस की खबरें हवा में बम्बई से दिल्ली तक के आकाश में उड़ने लगी थीं। जब दिल्ली में वे तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन से एक कार्यक्रम में मिलीं तो राष्ट्रपति ने पहला सवाल पूछ लिया कि तुम्हारा बॉयफ्रेंड धर्मेन्द्र कैसा है?

फिल्म बैजू बावरा के दौरान भारत भूषण भी अपने प्यार का इजहार मीना कुमारी से कर चुके थे। जॉनी (राजकुमार) को मीना कुमार से इतना इश्क हो गया कि वे मीना के साथ सेट पर काम करते अपने डाॅयलाग भूल जाते थे। इसी तरह फिल्मकार मेहबूब खान ने महाराष्ट्र के गर्वनर से कमाल अमरोही का परिचय यह कहकर दिया कि ये  मीना कुमारी के पति हैं। कमाल अमरोही यह सुन नीचे से ऊपर तक आग बबूला हो गए थे। धर्मेन्द्र और मीना के चर्चे भी उन तक पहुँच गए थे। उन्होंने पहला बदला धर्मेन्द्र से यह लिया कि उन्हें पाकीजा से आउट कर दिया। उनकी जगह राजकुमार की एंट्री हो गई। कहा तो यहाँ तक जाता है कि अपनी फिल्म रजिया सुल्तान में उन्होंने धर्मेन्द्र को रजिया के हब्शी गुलाम प्रेमी का रोल देकर मुँह काला कर दिया था। पाकीजा फिल्म निर्माण में सत्रह साल का समय लगा। इस देरी की वजह मीना-कमाल का अलगाव रहा। लेकिन मीना जानती थी कि फिल्म पाकीजा कमाल साहब का कीमती सपना है। उन्होंने फिल्म बीमारी की हालत में की। मगर तब तक उनकी लाइफ स्टाइल बदल चुकी थी।

गुरुदत्त की फिल्म साहिब, बीवी और गुलाम की छोटी बहू परदे से उतरकर मीना की असली जिंदगी में समा गई थी। मीना कुमारी पहली हेरोइन थी,जिन्होंने बॉलीवुड में पराए मर्दों के बीच बैठकर शराब के प्याले पर प्याले खाली किए। धर्मेन्द्र की बेवफाई ने मीना को अकेले में भी पीने पर मजबूर किया। वे छोटी-छोटी बोतलों में शराब भरकर पर्स में रखने लगीं। जब मौका मिला  शीशी गटक ली। कहते है की धर्मेन्द्र ने भी मीना कुमारी का इस्तेमाल किया उन दिनों मीना कुमारी की तूती बोलती थी और धर्मेन्द्र नए कलाकार मीना कुमारी ने धर्मेन्द्र की हर तरह से मदद की फूल और पत्थर की कामयाबी के धर्मेन्द्र उनसे धीरे धीरे अलग होने लगे थे,1964 में धर्मेन्द्र की वजह से ही कामल अमरोही ने मीना को तलाक दे दिया एक बार फिर से धोका मिला मीना कुमारी को,पति का भी साथ छुड गया और प्रेमी भी साथ छोड़ गया है धर्मेन्द्र को कभी उनसे सच्चा प्यार नहीं किया धर्मेन्द्र के लिए मीना तो बस एक जरिया भर थी यह बेबफाई मीना सह ना सकी सह्राब की आदि हो चुकी मीना की मौत लीवर सिरोसिस की वजह से हो गयी । दादा मुनि अशोक कुमार, मीना कुमारी के साथ अनेक फिल्में कर चुके थे। एक कलाकार का इस तरह से सरे आम मौत को गले लगाना उन्हें रास नहीं आया। वे होमियोपैथी की छोटी गोलियाँ लेकर इलाज के लिए आगे आए। लेकिन जब मीना का यह जवाब सुना दवा खाकर भी मैं जीऊँगी नहीं, यह जानती हूँ मैं। इसलिए कुछ तम्बाकू खा लेने दो। शराब के कुछ घूँट गले के नीचे उतर जाने दो तो वे भीतर तक काँप गए।

1956 से शुरू हुई पाकीजा 4 फरवरी 1972 को रिलीज हुई और 31 मार्च,1972 को मीना चल बसी। शुरूआत में पाकीजा को खास कामयाबी नहीं मिली मिली थी पर मीना कुमारी की मौत ने फिल्म को हिट कर दिया तमाम बंधनों को पीछे छोड़ तनहा चल दी बादलों के पार अपने सच्चे प्रेमी की तलाश में। पाकीजा सुपरहिट रही। अमर हो गईं ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी। मगर अस्पताल का अंतिम बिल चुकाने लायक भी पैसे नहीं थे उस तनहा मीना कुमारी के पास। अस्पताल का बिल अदा किया वहाँ के एक डॉक्टर ने,जो मीना का जबरदस्त प्रशंसक था।

बैजू बावरा,परिणीता,एक ही रास्ता, शारदा.मिस मेरी,ष्चार दिल चार राहें,दिल अपना और प्रीत पराई,आरती,भाभी की चूडियाँ,मैं चुप रहूंगी,साहब बीबी और गुलाम,दिल एक मंदिर, चित्र लेखा,काजल,फूल और पत्थर,मँझली दीदी,मेरे अपने,पाकीजा के किरदारों में उन्होंने जान डाल थी,मीना कुमारी ने हिन्दी सिनेमा में जिस मुकाम को हासिल किया वो आज भी मिसाल बना हुआ है । वो लाजवाब अदाकारा के साथ शायरा भी थी,अपने दिली जज्बात को उन्होंने जिस तरह कलमबंद किया उन्हें पढ़ कर ऐसा लगता है कि मानो कोई नसों में चुपके चुपके हजारों सुईयाँ चुभो रहा हो. गम के रिश्तों को उन्होंने जो जज्बाती शक्ल अपनी शायरी में दी, वह बहुत कम कलमकारों के बूते की बात होती है. गम का ये दामन शायद अल्लाह ताला की वदीयत थी जैसे। तभी तो कहा उन्होंने कहाँ अब मैं इस गम से घबरा के जाऊँ कि यह गम तुम्हारी वदीयत है मुझको चाँद तन्हा है,आस्मां तन्हा दिल मिला है कहाँ -कहाँ तन्हां बुझ गई आस, छुप गया तारा थर थराता रहा धुआं तन्हा जिंदगी क्या इसी को कहते हैं जिस्म तन्हां है और जां तन्हां हमसफर कोई गर मिले भी कही दोनों चलते रहे यहाँ तन्हां जलती बुझती सी रौशनी के परे सिमटा सिमटा सा एक मकां तन्हां राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जायेंगे ये मकां तन्हा टुकडे टुकडे दिन बिता,धज्जी धज्जी रात मिली जितना जितना आँचल था, उतनी हीं सौगात मिली जब चाह दिल को समझे, हंसने की आवाज सुनी जैसा कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे जलती बुझती आंखों में, सदासी जो बात मिली गुलजार साहब ने उनको एक नज्म दिया था. लिखा था शहतूत की शाख पे बैठी मीना बुनती है रेशम के धागे लम्हा लम्हा खोल रही है पत्ता पत्ता बीन रही है एक एक सांस बजाकर सुनती है सौदायन एक एक सांस को खोल कर आपने तन पर लिपटाती जाती है अपने ही तागों की कैदी रेशम की यह शायरा एक दिन अपने ही तागों में घुट कर मर जायेगी जिस वक्त मीना कुमारी की उम्र की हेरोइन पेड़ के चक्कर लगाकर प्रेम गीत गा रही थी तब मीना कुमारी ने मेरे अपने,गोमती के किनारे में अपने बालों में सफेदी लगाकर बुजुर्ग किरदार किये थे,दुश्मन में वो भाभी के किरदार में थी,जवाब में जीतेन्द्र की बड़ी बहन का किरदार बखूबी निभाया उस दौर की सभी हीरोइनों ने यह रोल करने से मना कर दिया अपनी इमेज खराब होने का वास्ता देकर।