उत्तर प्रदेश

हाईकोर्ट का ये आर्डर यूपी में बंद करवा देगा अनुदानित मदरसे

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने शुक्रवार को ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004’ को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के प्रति उल्लंघनकारी करार देते हुए उसे ‘असंवैधानिक’ घोषित कर दिया। हाईकोर्ट के इस फैसले से राज्य के हजारों मदरसों में पढ़ रहे लाखों छात्रों की पढ़ाई अधर में लटक गई है और उनके बीच अनिश्चितता का माहौल है।

न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने कानून को अधिकार क्षेत्र से बाहर घोषित करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को एक योजना बनाने का निर्देश दिया ताकि मदरसे में पढ़ने वाले छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में समायोजित किया जा सके। कोर्ट का यह आदेश अंशुमान सिंह राठौड़ द्वारा दायर एक रिट याचिका की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें यूपी मदरसा बोर्ड की शक्तियों को चुनौती दी गई थी।

इस याचिका में यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड को चुनौती देने के साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अल्पसंख्यक कल्याण विभाग और अन्य संबंधित मदरसों के प्रबंधन पर आपत्ति जताई गई थी। इसमें बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2012 जैसे मुद्दों पर भी आपत्ति जताई गई थी। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश में लगभग 25 हजार मदरसे हैं और इनमें से 16,500 से अधिक मदरसा यूपी बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त हैं।

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉक्टर इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा है कि उनके वकील सम्भवत: अदालत के सामने अपना पक्ष सही तरीके से नहीं रख सके, इसीलिए यह फैसला आया है। बोर्ड उच्च न्यायालय के निर्णय का अध्ययन करने के बाद तय करेगा कि आगे क्या करना है। वहीं, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा है कि उच्च न्यायालय के इस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जानी चाहिए।

जावेद ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश का सबसे ज्यादा असर सरकार से अनुदान प्राप्त मदरसों पर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यदि मदरसा शिक्षा कानून रद्द हुआ तो अनुदान प्राप्त मदरसों के शिक्षक बेरोजगार हो जाएंगे। राज्य में 560 मदरसों को सरकार से अनुदान मिलता है। इसके अलावा राज्य में साढ़े आठ हजार गैर मान्यता प्राप्त मदरसे हैं।

उन्होंने कहा, ”वर्ष 2004 में सरकार ने ही मदरसा शिक्षा अधिनियम बनाया था। इसी तरह राज्य में संस्कृत शिक्षा परिषद भी बनायी गई है। दोनों ही बोर्ड का मकसद संबंधित अरबी, फारसी और संस्कृत जैसी प्राच्य भाषाओं को बढ़ावा देना था। अब 20 साल बाद मदरसा शिक्षा कानून को असंवैधानिक करार दिया गया है। जाहिर होता है कि कहीं न कहीं कुछ चूक हुई है। हमारे वकील अदालत के सामने अपना पक्ष सही तरीके से नहीं रख सके।” उच्चतम न्यायालय जाने के सवाल पर जावेद ने कहा, ”अब यह तो सरकार को ही तय करना है, क्योंकि अदालत ने उसी को आदेश दिये हैं।”

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि अपने संवैधानिक अधिकार के तहत मुस्लिम समाज ने मदरसे स्थापित किये हैं। उन्होंने कहा कि ठीक उसी तरह जैसे संस्कृत पाठशालाएं हैं। उन्होंने कहा कि मदरसों में तो आधुनिक शिक्षा भी दी जा रही है। उन्होंने कहा कि यदि मदरसा शिक्षा अधिनियम को ही खत्म कर दिया जाएगा तो इससे प्रदेश के सैकड़ों मदरसों के शिक्षक बेरोजगार हो जाएंगे और उनमें पढ़ने वाले बच्चों के भविष्य पर भी सवाल खड़े होंगे। उन्होंने कहा कि इससे बहुत खराब स्थिति पैदा हो जाएगी, लिहाजा इस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी ही जानी चाहिए।

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