नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की वैक्सीनेशन नीति पर गंभीर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने 18-44 वर्ष के आयु वर्ग की टीकाकरण नीति को प्रथमदृष्टया अतार्किक ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की इस नीति को चुनौती दी गई है.वैक्सीनेशन को बेहद जरूरी बताते हुए कोर्ट ने कहा, ऐसी खबरें हैं कि 18-44 वर्ष आयु वर्ग के लोग न केवल कोविड-19 से संक्रमित हो रहे हैं, बल्कि गंभीर रूप से बीमार भी हो रहे हैं. उन्हें लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती होना पड़ रहा है. तमाम दुर्भाग्यपूर्ण मामलों में मरीजों की मौतें भी हुई हैं.

जवाब के लिए दो हफ्ते का समय
न्यायालय की वेबसाइट पर डाले गये 31 मई के आदेश में पीठ ने कहा, ‘हम केंद्र सरकार को दो सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं.’ पीठ ने केंद्र से यह सुनिश्चित करने को कहा कि आदेश में प्रत्येक मुद्दे पर अलग-अलग जवाब दिया जाए.

ब्लैक फंगस पर भी सवाल
शीर्ष अदालत ने म्यूकरमायकोसिस (ब्लैक फंगस) की दवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में भी बताने को कहा है. इसके अलावा निशुल्क टीकाकरण के संबंध में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से दो सप्ताह के भीतर अपना रुख बताने को कहा गया है.

मनमाना और अतार्किक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महामारी के बदलते रुख को देखते हुए यह महसूस किया जा रहा है कि 18-44 आयु वर्ग के लोगों का भी वैक्सीनेशन किया जाए. हालांकि वैज्ञानिक आधार पर विभिन्न आयु वर्ग को प्राथमिकता बनाए रखी जा सकती है. लिहाजा केंद्र सरकार द्वारा वैक्सीनेशन के पहले दो चरणों में टीकाकरण को मुफ्त करना और 18 से 44 आयु वर्ग के लिए राज्यों और निजी अस्पतालों को भुगतान की जिम्मेदारी डालना प्रथमदृष्टया मनमाना और अतार्किक फैसला है.

सभी टीकों की खरीद का ब्यौरा माँगा
SC ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह कोविड-19 टीकाकरण नीति पर अपनी सोच दर्शाने वाले प्रासंगिक दस्तावेज, फाइल नोटिंग रिकॉर्ड पर रखे. यह भी कहा गया है कि कोविड-19 के समस्त टीकों की खरीद का ब्योरा देते हुए वह पूरे आंकड़े पेश करे. यह स्‍पष्‍ट करें कि केंद्रीय बजट में वैक्‍सीन की खरीद के लिए रखे गए 35,000 करोड़ रुपये अब तक किस तरह खर्च किए गए हैं और उनका इस्‍तेमाल 18-44 वर्ष के लोगों के लिए वैक्‍सीन खरीदने के लिए क्‍यों नहीं किया जा सकता.