टीम इंस्टेंटखबर
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने अपने एक बयान में कहा कि भारत के संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को उसके धर्म और उसके मौलिक अधिकारों के अनुसार जीने की इजाजत दी है। इस अधिकार के तहत, अल्पसंख्यकों और आदिवासी वर्गों के लिए उनकी इच्छा और परंपराओं के अनुसार देश को बिना किसी नुकसान के अलग-अलग पर्सनल लॉ रखने की इजाज़त दी गई है। बल्कि, यह बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के बीच आपसी विश्वास बनाए रखने में मदद करता है।

बयान में कहा गया है कि अतीत में कई आदिवासी विद्रोहों को ख़त्म करने के लिए उनकी इस मांग को पूरा किया गया है कि वह सामाजिक जीवन में अपने विश्वास और अपनी परम्पराओं का पालन कर सकटेंगे । अब सामान्य नागरिक संहिता को लेकर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश सरकार या केंद्र सरकार का राग अलापना सिर्फ बेवक़्त की रागनी है और सभी जानते हैं कि इसका उद्देश्य बढ़ती महंगाई, गिरती अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दों से ध्यान हटाना और नफरत के एजेंडे को बढ़ावा देना है।

बयान में कहा गया कि यह अल्पसंख्यक विरोधी और संविधान विरोधी कदम है, मुसलमानों के लिए बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसकी कड़ी निंदा करता है और सरकार से इस तरह की हरकतों से बचने की अपील करता है।