सोना लंबे समय से आकर्षण का केंद्र रहा है. इसे न सिर्फ गहनों के तौर पर खरीदा जाता है बल्कि निवेश का एक मजबूत माध्यम समझा जाता है. सोने के गहने भी एक तरह से निवेश हैं क्योंकि इन्हें यह समझकर खरीदा जाता है कि बुरे वक्त के लिए पैसे सुरक्षित हो रहे हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि जब हम अपने पास रखे किसी भी रूप में सोने की बिक्री करते हैं तो उस पर टैक्स देनदारी कितनी बनती है. इस पर टैक्स देनदारी इसलिए बनती है क्योंकि बिक्री से आपके पास जो पैसे आएंगे, वो आपकी आय है. इसे जानना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि टैक्स देनदारी को समझने से आप अपने लिए सोने में निवेश का अच्छा विकल्प सोच पाएंगे.

देश में सोना खरीदने या उसमें निवेश के चार तरीके हैं- फिजिकल गोल्ड, गोल्ड म्यूचुअल फंड या ईटीएफ, डिजिटल गोल्ड और सॉवरेन गोल्ड बांड. आइए एक-एक करके देखते हैं कि इन पर किस तरह से टैक्स देनदारी बनेगी.

सोने में निवेश का सबसे आम तरीका ज्वेलरी या सिक्के हैं. इस पर टैक्स देनदारी इस बात पर निर्भर करती है कि आपने कितने समय तक इन्हें अपने पास रखा है. इस पर डेट फंड्स के समान ही टैक्सेशन नियम लगते हैं. अगर गोल्ड को खरीदी तिथि से तीन साल के भीतर बेचा जाता है तो इससे हुए किसी भी फायदे को शॉर्ट टर्म गेन माना जाएगा और इसे आपकी इनकम मानते हुए एप्लिकेबल इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से इस पर टैक्स की गणना की जाएगी. इसके विपरीत अगर आप तीन साल के बाद इसे बेचने का फैसला करते हैं तो इसे लांग टर्म कैपिटल गेन मानते हुए इस पर 20 फीसदी की टैक्स देनदारी बनेगी.

गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेट फंड (ईटीएफ) आपके कैपिटल को फिजिकल गोल्ड में निवेश करता है और यह गोल्ड की प्राइस के हिसाब से घटता-बढ़ता रहता है. गोल्ड म्यूचुअल फंड्स की बात करें तो यह गोल्ड ईटीएफ में निवेश करता है. गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड म्यूचुअल फंड्स पर फिजिकल गोल्ड की तरह ही टैक्स देनदारी बनती है.

सोने में निवेश के लिए डिजिटल गोल्ड भी एक जरिया है. कई बैंक, मोबाइल वॉलेट और ब्रोकरेज कंपनियों ने एमएमटीसी-पीएएमपी या सेफगोल्ड के साथ टाइ-अप कर अपने ऐप के जरिए गोल्ड की बिक्री करती हैं. इनसे हुए कैपिटल गेन पर फिजिकल गोल्ड या गोल्ड म्यूचुअल फंड्स या गोल्ड ईटीएफ की तरह ही टैक्स देनदारी बनती है.

ये गवर्नमेंट सिक्योरिटीज होती हैं जिन्हें केंद्रीय बैंक आरबीआई सरकार के बिहाफ पर जारी करता है. इनकी कीमत एक ग्राम गोल्ड के बराबर मापी जाती है. निवेशकों को ऑनलाइन या कैश से इसे खरीदना होता है और उसके बराबर मूल्य का सॉवरेन गोल्ड बांड उन्हें जारी कर दिया जाता है. मेच्योरिटी के समय इसे कैश के रूप में रिडीम किया जाता है. इनकी मेच्योरिटी पीरियड आठ साल की होती है और इस अवधि पर रिडीम होने पर इससे हुए गेन पर कोई टैक्स नहीं लगेगा.

हालांकि अगर इससे मेच्योरिटी से पूर्व (निवेश के पांच साल बाद ही एग्जिट ऑप्शन मिल जाता है) इसे रिडीम कराते हैं तो इस पर फिजिकल गोल्ड या गोल्ड म्यूचुअल फंड्स या गोल्ड ईटीएफ की तरह ही टैक्स देनदारी बनती है. इसके अलावा 2.5 फीसदी का सालाना ब्याज भी मिलता है जो आपके टैक्स स्लैब के मुताबिक टैक्सेबल होता है. हालांकि टीडीएस नहीं कटता है.