स्वीडिश जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने कोविड-19 महामारी से बचाव के लिए संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) को एक डेनिश फाउंडेशन से पुरस्कार में प्राप्त 100,000 डॉलर का दान दिया है।

समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, यूनिसेफ ने 17 साल की थनबर्ग से कहा, ‘जलवायु संकट की तरह कोरोनो वायरस महामारी एक बाल अधिकार संकट है। यह अभी और लंबे समय में सभी बच्चों को प्रभावित करेगा, लेकिन कमजोर समूहों को सबसे अधिक प्रभावित करेगा।’ वहीं, थनबर्ग ने कहा, ‘मैं सभी लोगों से बच्चों के जीवन को बचाने, स्वास्थ्य की रक्षा करने और शिक्षा जारी रखने के लिए यूनिसेफ के महत्वपूर्ण काम के समर्थन में कदम बढ़ाने और उससे जुड़ने की अपील कर रही हूं।”

यूनिसेफ ने कहा कि यह धनराशि कोरोनावायरस लॉकडाउन और स्कूल बंद होने से प्रभावित बच्चों के लिये सहयोगी होगी। इससे विशेष रूप से बच्चों में भोजन की कमी, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अवरोध, हिंसा और शिक्षा में बाधा को दूर करने में मदद मिलेगी। थनबर्ग ने मार्च के अंत में कहा था कि केंद्रीय यूरोप की यात्रा के बाद उनको कई लक्षणों का अनुभव होने के कारण कोरोनोवायरस से संक्रमित होने की संभावना थी।

स्वीडन की रहने वाली ग्रेटा थनबर्ग पहली बार पर्यावरण के मुद्दे पर स्वीडिश संसद के बाहर अगस्त 2018 में प्रदर्शन करके चर्चा में आईं। ग्रेटा तीन-चार साल अवसाद में भी रही हैं, इस दौरान उनका स्कूल जाना भी छूट गया था। हालांकि स्कूल छोड़ने के मसले पर ग्रेटा थनबर्ग को अपने पिता का समर्थन नहीं मिला था। अब उनके पिता का कहना है कि जब से ग्रेटा ने पर्यावरण के मुद्दे पर काम करना शुरू किया है तो वह खुश रहने लगी हैं। ग्रेटा थनबर्ग को 2020 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया है।

इसके बाद जलवायु संकट को लेकर ग्रेटा ने मुहिम शुरू की। ग्रेटा से प्ररित होकर दूसरे छात्र अपने-अपने समुदायों में इसी तरह के आंदोलनों से जुड़ गए। उन्होंने मिलकर ‘फ्राइडेज फॉर फ्यूचर’ नाम के बैनर तले स्कूल क्लाइमेट स्ट्राइक आंदोलन चलाया।

ग्रेटा से प्रेरित छात्र जलवायु संकट को लेकर दुनिया के किसी न किसी हिस्से में हर हफ्ते प्रदर्शन करते हैं। 2019 में कम से कम दो ऐसे बड़े आंदोलन हुए जिनमें कई शहरों के लाखों लोगों ने हिस्सा लिया। थनबर्ग सार्वजनिक तौर पर, नेताओं के बीच या सभाओं में अपने मुद्दे पर स्पष्ट बोलने के लिए जानी जाती हैं जिसमें वह जलवायु संकट को लेकर तत्काल उपाय करने का आह्वान करती

अग्रेजी अखबार द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रेटा थनबर्ग लाखों लोगों में से किसी एक को होने वाली दुर्लभ बीमारी एस्पर्जर्स सिंड्रोम से ग्रसित हैं। सरल शब्दों में इसे चयनात्मक गूंगापन कहते हैं लेकिन सभाओं में जब अपने विषय पर बोलती हैं तो ऐसा मालूम नहीं होता है।