टीम इंस्टेंटखबर
राजनीतिक दलों को अपारदर्शी तरीके से चंदा देने के लिए लाए गए चुनावी बॉन्ड जारी करने के कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, वकील प्रशांत भूषण की याचिका पर सीजेआई एनवी रमना ने मामले को सूचीबद्ध करने की बात करते हुए कहा कि हम इस पर सुनवाई करेंगे।

भूषण ने अदालत के ध्यान में एक खबर लाई जिसमें कहा गया था कि कोलकाता की एक कंपनी ने आबकारी दरों को रोकने के लिए चुनावी बॉन्ड के माध्यम से 40 करोड़ रुपये का भुगतान किया था। भूषण ने इसे ‘लोकतंत्र के साथ खिलवाड़’ करार दिया।

इसके जवाब में सीजेआई ने कहा कि मैं इस मामले में देखूंगा। अगर कोविड-19 (के लिए) नहीं होता, तो मैंने इस मामले पर सुनवाई किया होता। हमें देखने दीजिए, हम मामले को देखेंगे। हालांकि, इसके बाद भी जब इसे महत्वपूर्ण बताते हुए भूषण ने जोर दिया तो सीजेआई ने कहा कि हां, हम इसे सुनेंगे।

2017 के केंद्रीय बजट में घोषित चुनावी बॉन्ड ब्याज मुक्त बॉन्ड हैं जिनका उपयोग राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से धन दान करने के लिए किया जाता है। चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले के बारे में कोई जानकारी नहीं रखता है, और उसे हासिल करने वाले (जो कि राजनीतिक दल हैं) को उसका मालिक माना जाता है।

2017 के बजट भाषण के दौरान पहली बार तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा चुनावी बॉन्ड की घोषणा की गई थी। शुरुआत में, चुनावी बॉन्ड कंपनियों के लिए अपनी पहचान बताए बिना दान करने का एक तरीका बनकर उभरा, लेकिन अब गुमनामी व्यक्तियों, व्यक्तियों के समूहों, गैर सरकारी संगठनों, धार्मिक और अन्य ट्रस्ट तक बढ़ गई है, जिन्हें अपने विवरण का खुलासा किए बिना चुनावी बांड के माध्यम से दान करने की अनुमति है।