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पास्को एक्ट में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध के लिए ‘स्किन टू स्किन’ टच का होना जरूरी नहीं। हाईकोर्ट ने कहा था कि पोक्सो के तहत बच्ची के ‘स्किन टू स्किन’ टच होने पर ही अपराध साबित होता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शारीरिक संपर्क को त्वचा से त्वचा के संपर्क तक सीमित रखने का संकीर्ण अर्थ देने से POCSO अधिनियम का उद्देश्य विफल हो जाएगा, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

बॉम्बे हाईकोर्ट के नागपुर बेंच ने अपने आदेश में कहा था कि बिना ‘स्किन टू स्किन’ टच के बच्ची के शरीर को टटोलना आईपीसी की धारा 354 के तहत छेड़छाड़ तो है, लेकिन पोक्सो की धारा 8 के तहत ‘यौन हमला’ का गंभीर अपराध नहीं है। इस फैसले को अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि एक नाबालिग लड़की को कपड़ों पर से टटोलना पॉक्सो की धारा-8 के तहत ‘यौन उत्पीड़न’ का अपराध नहीं होगा।

हाईकोर्ट का कहना था कि पॉक्सो की धारा-8 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए ‘त्वचा से त्वचा’ संपर्क होना चाहिए। हाईकोर्ट का मानना था कि यह कृत्य आईपीसी की धारा-354 आईपीसी के तहत ‘छेड़छाड़’ का अपराध बनता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए दोषी को 3 साल जेल की सजा भी सुनाई है।