समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ने के बाद सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर की हालत वही हो गयी है कि न खुदा ही मिला न विसाले सनम न इधर के रहे न उधर के रहे. यह पंक्तिया उनपर इसलिए फिट बैठती हैं क्योंकि भाजपा के करीब जाने के चक्कर उन्होंने सपा का साथ छोड़ दिया और भाजपा उनको भाव नहीं दे रही है, वहीं कई पार्टी नेता भी अब साथ छोड़कर दूसरे दलों में विकल्प तलाशने लगे हैं।
उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनावों के बाद जब राजभर एसपी के साथ गठबंधन से बाहर हो गए, तो उन्हें उम्मीद थी कि बीजेपी खुले हाथों से उनका स्वागत करेगी। इस आस में राजभर ने समाजवादी पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ अपना अंतहीन बयान शुरू कर दिया और अखिलेश यादव को ड्राइंग रूम राजनेता तक करार दे दिया। एसपी पर लगातार हमलों के बावजूद बीजेपी ने राजभर के प्रति नरमी का कोई संकेत नहीं दिखाया।
ओम प्रकाश राजभर ने तो यहां तक कह दिया कि मौर्य, पटेल, लोध, कोरी और निषाद सहित प्रमुख ओबीसी जातियां और राजपूत, ब्राह्मणों सहित सभी उच्च जातियां बीजेपी के साथ थीं और ये जातियां भविष्य के किसी भी चुनाव में समाजवादी पार्टी का समर्थन नहीं करेंगी। राजभर की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब बीजेपी और एसपी ओबीसी और दलित वोटों को लेकर एक-दूसरे पर हमलावर हैं।
राजभर ने योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा हाल में पेश वार्षिक बजट की भी सराहना की और इसे गरीब समर्थक करार दिया। लेकिन बीजेपी ने अभी भी उनके प्रस्तावों का जवाब नहीं दिया है। जैसा कि बीजेपी के एक पदाधिकारी ने कहा, ओम प्रकाश राजभर एक अवसरवादी सहयोगी साबित हुए हैं। उनके बयान संयमित नहीं हैं। हम जानते हैं कि वह अपने बेटे अरविंद राजभर के लिए यूपी विधान परिषद में सीट चाहते हैं, लेकिन बीजेपी इस तरह के किसी सौदे के लिए तैयार नहीं है। इसके अलावा, एक अविश्वसनीय सहयोगी कौन चाहता है?
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