मोहम्मद आरिफ नगरामी

शबे कदर में अकवाम की कीमतों का फैसला हुआ और बरकात रब्बानी की सबसे पहली बारिश हुई रमजानुल मुबारक की रातों में से एक रात शबेकदर कहलाती है जो बहुत ही बरकत की रात है कुरआन करीम में उसको हजार महीनों से बेहतर बताया है खुश नसीब है वह शख्स जिसको इस रात की इबादत नसीब हो जाये। बनी स.अ. ने पहली उम्मतों की उमरों को देखा कि बहुत ज्यादा है आप स.अ. ने पहली उम्मत की उमर बहुत थोड़ी है अगर वह नेक अमाल में उमर भी खपायें तो भी बराबर मुमकिन है उससे अल्लाह के लाडले नबी स.अ. को रंज हुआ। इसकी तलाफी में यह रात मरहमत हुई बाज रवायत में यूं भी मंकूल है कि नबी करीम स.अ. ने चार हजरात का जिक्र फरमाया हजरत अयूब हजरत जकरिया हजरत हज कील हजरत यूशा जो 80 बरस तक अल्लाह की इबादत में मशगूल रहे और पलक झपकने के बराबर भी अल्लाह की नाफरमानी नही की। उस पर सहाबा किराम को हैरत हुई तो हजरत जिबराई हाजिर खिदमत हुए और सूतरा कदर सुनाई

लैलतुल कदर के बारे में हजरत अबू हरीरा से मंकूल है कि नबी करीम स.अ. का इरशाद है कि जो लैलातुल कदर में इमान के साथ और सवाब की नियत से इबादत के लिए खड़ा हो उसके तमाम पिछले गुनाह माफ किये जाते है।

आईये शबे कदर की तारीख पर नजर दौड़ाते है मक्का से तीन मीन की मसाफत पर कोहे हिरा वाके है आज से 13-41 बरस पहले अयाम रमजान में सख्त गरमी के दिन थे और शिददत गरमी से तीर व तारीक गार में मादयात आलम से एक किनारा शक नवजवान सरबजा नू थे। वह भूका था लेकिन भूका न था कि उसके पास खाने की वह चीजें थी जिसको खा कर फिर इन्सान कभी भूका नही होता वह प्यासा था लेकिन वह प्यासा न था कि उसके पास पीने की वह चीज थी जिस को पी कर इन्सान कभी प्यासा नही हेाता वह तीन तीन चार चार दन खाना पीना छोड़ देता था इसके जान निसार भी उसकी मोहब्बत में खाना पीना छोड़े देते लेकिन वह उनको मना करता था कि तुम कौन मेरी तरह है मैं भूका हूं तो मेरे आका मुझको खिलाता है मैं प्यासा होता हूं तो मेरा आका मुझे पिलाता है।

कोहे हिरा के उजलत नशीन इस तरह भूका प्यासा सरबजा नू था। कि एक नूर बेकैफ ने तेरा व तार गार को रोशन कर दिया वह नूर बेकैफ किया था? हदियात व इरफान का एक आफताब था जो मतला हिजरतुल अकसद से तुलू हेाकर उसके सीने में गुरूब हो गया। बेशक उसने तो यह कलाम आप स.अ. के दिल में उतारा है। फिर उसके सीने से निकल कर तमाम आलम को इस शाउन से रोशन कर दिया। वह आफताब जिसका मतला हजीतुल मुकददस था वह आफताब जिसका मगरिब सीना नबवी था वह आफताब जिसने आलम को मुनव्वर किया कुरआन मजीद था जो माह मुकददस की शब मुबारक में आसमान से जमीन पर नाजिल होना शुरू हुआ रमजानुल मुबारक खुदा का कलाम बंदे को पहचानना शुरू हुआ पस उन अयाम में हमारी भूक हमारी प्यास और हमारा हादसात आलम से इजतेनाब उस यादगार में है कि हम तक जो खुदा का पैगाम दिलाया वह उन दिनो का भूका व प्यासा था और तमाम लजीज मावी जिसमें दाई इस्लाम हस्बे इतना नबूवत तहम्मुल नुजूल कुरआन के लिए जरूरयात मादिया आलम से मुस्तफनी। रहा औस इसलिए जरूरी हुआ कि परवान मिल्लत इस्लामिया और मतीन तरीकत मोहम्मद या उन इमाम में जरूरयात माद आलम से मुस्तफी है।

वह कौन सी शब मुबारक थी जिस में खुदा का कलाम रूह परवर एक इन्सानी मुंह में डाला गया वह लैलातुल कदर यानी इज्जत व हुरमत की रात थी बेशक वह इज्जत व हुरमत की रात थी वह रात थी जो हजारों महीनों से बेहतर है कि आसमान वालों की बात जमीन वालो को सुनाई वह अमन व सलामती की रात थी कि उसमें दुनिया के लिए अमन व सलामती का पैगाम आया।

वह शब क्या अजीम शब थी दुनिया असयान व हक नाशनासी की तारीकी में मुबतिला थी देवबातिल का तमाम आलमे इस्लाम पर इस्तेला था तौहीद का चेहरा नूरानी कुफ्र व शिर्क की जुल्मत में महबूब था नेकियां बदियों से शिकस्त खा चुकी थी। दुनिया की तमाम मुतमन्नद और जबर्दस्त कौमें कूवते इलाही से बगावत कर चुकी थी एक नहीफ व जईफ कौम बहर अहमर के किनारे के रेगिस्तानों पर गफलत व जेहालत के बिस्तरों पर बैठी सो रही थी लेकिन इस जुल्मत कदा आलम में सिर्फ एक गोशा था जो रोशन था। वह गोशा गारे हिरा का गोशा था। वह उजलत नशीं हिरा की जबीने मुबारक था। जो कूवते इलाही के आगे सर बस्जूद थी मेरी मुराद मोहम्मद स.अ. का कल्बे अकदस है।

यह रात भी अजीब थी कि जिसमें कौमों की किस्मत का फैसला हो रहा था।जबाबिरा आलम की तनबीया व तादीब के लिए एक नहीफ व जईफ कौम का इन्तेखाब हो रहा था नेकियों का लेशकर दोबारा मुकाबले के लिए आरास्ता किया जा रहा था। नूर की सर असकरी के लिए वह वजूद अकदस मुंतखब रहा था। जो हिरा के गैर मौजू हिजरे में बेदार और सरबस्जूद था और रहमत के मुहाफिज फरिश्ते उसके गर्द सफ बस्ता खड़े है इरशाद रब्बानी है कि हमने उव किसाताब मुबीन को एक मुबारक शम मं उतारा कि हमें इन्सानो को डराना है पस यह शब वह थी जिसमें अकवाम आलम की किस्मतों का फैसला हुआ यह वह शब है जिसमें बरकात रब्बानी की हम पर सबसे पहले बारिश हुईग् यह वह शब है जब इस सीने में जो खजीना नबूवत था कलामे इलाही के इसरार सबसे पहले मंकशफ हुए और रहमत हाय आसमानी ने जमीन में नुजूल किया पस हर मोमिन को जरूरी है कि उस शब में रहमतों का तालिब हो, रहमाीन व रहमान के आगे सर नियाज खम रखे और बाद मंे खुशू व खुजू दस्त तजर दराज करें कि खुदाया मैं इमान लाया फरिश्तो किताबों और रसूलो और तकदीर पर और पुकार उठे परवरदिगार तेरी बाते सुनी तेरी इताअत का अहेद किया अब तेरी मगफिरत के तालिब है और तूही हमारा मरजा है किसी कों उसकी कूवत से ज्यादा का हुक्म नही देता और खैर व शर इन्सान की कमाई है पस ए परवर दिगार अहम हम से भूल हो या कोई खता हो तो मवाखजाना कर परवरदिगार हमारी ताकत से ज्यादा हम पर बोझ डाल हमें माफ कर हमारे गुनाह बख्श हम पर ऐ हमारे आका रहम फरमा और कुफ्फा पर हमे गलबा नसीब फरमा। मजहब की पाक रूह मुर्दा हेा चुकी थी। लेकिन इस रात में अयाद मअदूम और हयात बादुल ममात हुआ वह कतम अदद से आलम शहूद में उतरे है यह फरिश्तें और रूहे इस रात में उतरते हे मगर बतररेज पूरे एक महीने में उतरते है क्योंकि दुनिया का रूह की हकीकत किया है? खुदा ताला ने फरमया यानी वह मलाएका और रूह अमन सलामती हो जो दुनिया को यक्सरा नेस्त व सलामती की बरकतों से मामूर करती है। फिर यह सुकून व इत्मिनान और फैज सिर्फ अरब के लिए मखसूस नही बल्कि मशरिक व मगरिब दोनों को मुहीत है।

लैलतुल कदर को सिर्फ इसलिए फजीलत नही कि उसमें इबादत का सवाब आम रोते से ज्यादा मिलता है। बल्कि इस बिना पर भी कि उसमें हम को एक किताब दी गयी और हम को मशरिक व मगरिब में इसकी मनादी करने का हुक्म दिया गया बादशाहों की मनादी तबल आलम के साथ की जाती है लेकिन खुदा की मनादी तहलील व तकबीर के साथ होनी चाहिए। रमजान के बाद ईद का हुक्म इसलिए दिया गया ताकि तहलील व तकबीर की मुकददस सदाओं में इस्लाम के जाह व जलाल नफूज कूवत और वसअत व असर का सामन दुनियाक ेा नजर आ जायें।

आह पर तुम्हारी गफलत कैसी शदीद और तुम्हारी गुमराही कैसी ताहम अंगेज है कि तुम लैलतुल कदर को तो ढ़ंढनते हो पर उसको नही ढ़ूंढ़ते जो लैलातुल कदर में आया है और िजसक वरवद से इस रात की कदर मंजिलत बढ़ी। अगर तुम उसे पालो तो तुम्हारे लिए हर रात लैलतुल कदर है।

हर शब शबे कदस असत अगर कद़रे दानी

अल्लाह करीम हमें अपने बंदों में शामिल फरमायें और कामिल अतबाए मोहम्मद स.अ. की तौफीक अता फरमाये।

(अमीन सुम्मा आमीन)