यह रात माहे रमज़ान के आख़री अशरा की ताक़ रातों में से किसी एक रात में आती है यानी इक्कीसवीं शब, तेइसवीं शब, पचीसवीं शब, सत्ताइसवीं शब और उनतीसवीं शब में से कोई एक शब लैलतुल क़द्र हाती है

मोहम्मद आरिफ नगरामी

उम्मत मोहम्मदिया अम्बियाए सिलसला की उम्मतों में सब से आखरी उम्मत है कि नबी आखरूज्जमा हजरत मोहम्मद स.अ. सिलसिले नबूवत की आखरी कड़ी और कसरे नबूवत की आखरी इंट है इसलिए आपकी उम्मत के बाद उस रोए अरजी पर कोई दूरी उम्मत नही होगी।

अल्लाह ने नबी आखरूज्जमा स.अ. को तमाम अम्बियाओं का सरदार और सैयद अव्वलीन और आखरीन बनाया। आप फख्र मौजूदात खुलासा कायनात इमाम इम्बिया और महबूब अब्बुल आलीमन हैं आपकी जात वाला सफात को ऐसी खुसूसियत और इनायत से नवाजा गया जो किसी जात वाला सफात को ऐसी खूसूसीयात और इनायात से नवाजा गया जो किसी और को नही मिलें अल्लाह की उन अनायात की करम गस्तरी से आप स.अ. की उम्मत भी सरफराज की गयी चुनाचे कुरआन ने उस उम्मत को खैरूल उम्मत और उम्मत वस्त के मोअज्जिज अलकाब से नवाजा। उनके लिए दीनी अमाल और एकाम को सहल बनाया और कम अमल पर ज्यादा अजर सवाब मुकर्रर कर दिया।

शबे कदर उस उम्मत मोहम्मदिया पर अल्लाह के ऐसे ही इनामात और एहसानान में से एक अजीम मुश्शान और जलील कदर इनाम है दरअस्ल उस उम्मत के लोगों की उमरंे कम थी और दूसरे उम्मतों के मुकाबले में यह कमजोर भी थी। मुसलमानों को उस बात का एहसास था कि वह गुजिश्ता उम्मतों के बराबर नेकियां नही कर सकेंगे उनकी इस हसरत को दूर करने के लिए अल्लाह ने एक खुसूसी इनाम से नवाजते हुए इस उम्मत को लैलतुल कदर अता फरमा दी।
लैलतुल कदर या शब कदर क्या चीज है? यह सवाल ख्ुाद कुरआन ने अपनी इस सूरत का आगाज करते हुए पूछा जो खास इस नाम यानी सूरतुल कदर के साथ नाजिल की गयी। इस सूरत को तर्जुमा पढ़िये और खुद मालिके दो जहां और रब्बुल आलेमीन शबे कदर के बारे में हमें क्या बता रहा है।

बेशक हमने कुरआन को शबे कदर में उतारा और तुम क्या जानें क शबेकदर क्या चीज है? शबेकदर हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है उसमें फरिश्तें और रूहुल आलेमीन अपने रब के हुक्म से उतरते है। हर अमर के साथ यह रात सलामती है सुबह तुलू होने तक उस रात की अहमियत पर इससे और बड़ी क्या दलील हो सकती है। कि उसकी फजीलत के बयान में पूरी एक सूरत कुरआन का हिस्सा बना दी गयी।

कुरआन ने उस शब का नाम कदर की शब रखा है कदर का एक मानी अन्दाजा करना और दूसरा कदर व कीमत और अहमियत, यह रात कदर व कीमत वाली है क्योंकि उस एक रात को एक हजार महीनों के बराबर ही नही बल्कि उससे मुददत से भी ज्यादा बेहतर बनाया गया है कुरआन की मजकूरा सूरत और रसूल अल्लाह स.अ. की मुतादिद हदीस के पेशे नजर इस रात के बारे में चन्द बातें हमारे लिए खूसूसयत के साथ तवज्जह तलब है।

इस रात की इबादत का अजर व सवाब एक हजार महीनों से भी ज्यादा होता है। जरा हिसाब लगायें एक हजार महीने 83 बरस से ज्यादा मुददत होती है। गोया एक रात की इबादत करने वाले शख्स 73 बरस तक इबादत करने वाले की हैसियत पा लेता है। फिर वह रात हर साल रमजान के मुकददस महीने में आती है। अगर किसी खुश नसीब को ऐसी चन्द राते भी मयैस्सिर हो जायें और नेकी व इबादत में बसर हो जाये तो वह अपनी एक उमर नही कई उमर के बराबर इबादतों का खजाना अपने नामा अमाल में जमा कर लेता हे।

यह रात माहे रमजान के आखरी अशरे की ताक रातों में से किसी एक रात में आती है। यानी इक्कसीवीं शब तेसवीं शब पच्चीसवीं शब सत्ताइसवीं शब और उनतीसवीं शब में से कोई एक शब लैलतुल कदर को तलाश किया जायें तलाश करने का मतलब यह है कि पाने की सइ व कोशिश की जाये। उसकी कुछ अलामतें बताई गयी है अगर अन्दाजा हेा जाये कि यह शब कदर है तो इसमें कसरत से इबादत व तलावियत जिक्र व नमाज और दुआ का एहतेमाम किया जाये। कुरआन में बताया गया है कि यह रात बड़ी पुरसुकून और सलामती वाली होती है। और पूरी शब यह कैफियत रहती है। उस में फरिश्तें और जिब्राईल अहे. जमीन पर उतरते है और हर खड़े बैठे अल्लाह का जिक्र करने वाले के लिए दुआ करते है हर तरफ खैर व बरकत की बारिश हो रही होती है। यह भी कहा गया है। कि हर रमजान में यह रात बदलती रहती है। खुदा सहबाा रिकाम ने अलामतों से उस शब को तलाश यिका तो कभी इक्कसीसवीं शब नजर आयी और कभी तैसियों शब लेकिन ज्यादा तर अन्दाजे सत्ताईसवी शब के बारे में पेश आयें लेहाजा सत्ताईसवीं शब के लैलतुल कदर होने के ज्यादा इमकानात है लेकिन यह जरूरी नही कि सत्ताईसवीं की रात ही शब कदर हो क्योंकि दूसरी ताक रातों के बारे में भी कहा गया है कि उनमें शबे कदर ही है खुद एक हदीस में हे कि रसूल स.अ. ने फरमाया कि मुझे वह शब दिखाई गयी मैं ने देखा कि मैं उसकी सुबह को मिटटी और कीचढ़ में सिजदा कर रहा हूं सहाबा किराम ने देखा कि वह इक्कसीस शब थी जिसकी सुबह को बारशि हुई थी और मस्जिद नबवी का फश्र कीचढ़ आलूदा होने की वजह से फज्र की नमाज इसी तरह अलविदा की गयी थी। फिर यह बात भी गुजरी कि एक बरस रमजान की एक शब में लैलतुल कदर होती है। तो दूसरें बरस किसी और शब में।

उस तफसील के पेशे नजर हमारा यह रवैया दुरूस्त नही होगा। कि सिर्फ सत्ताईस की शब में तो हम लैलतुल कदर का एहतेमाम करें और दूसरी रातों में उसकी तलाश छोड़ दें।

लैलतुल कदर के सिलसिले में एक अहम बात यह है कि एक रवायत में रसूल स.अ. ने फरमाया कि शबे कदर की ताइय्यन बता दी गयी थी और मैं घर से निकला था कि तुम्हें उस रात के बारे में मुतैय्यन तौर पर बता दूं लेकिन बाहर निकल कर देखा कि दो अशखास आपस में झगड़ रहे हे यह देखकर मेरे जहन से उस शब की तईय्यन निकाल दी गयी तो अब तुम उसे ताक रातों में तलाश करो।

मौजूदा हालात में यह हदीस हम सब की तवज्जह का उनवान रहनी चाहिए। बिलखुसूस जब कि हम माहे मुबारक के अन्दर उस शब का इस्तकबाल करने के लिए लम्हात इन्तेजार कुन रहे है वह मुसलमान भाईयों की आपस की लड़ाई इतनी बेबरकत और अल्लाह के नजदीक नापसंद दीदा अमल है कि उसकी वजह से शब कदर की तईन रसूल करीम स.अ. के जहन से उठाई गयी और वह इशतेखास के बाहमी झगड़े ने पूरी उम्मत मोहम्मदिया को इस फजीलत के मुताईयना वक्त के इल्म के नात से महरूम करा दिया। आज जिस तरह महलकी झगड़े ने हमारी सफों को दरहम बरहम कर रखा है और हम मुखतलिफ मैदानों में बेवजन से होकर रहे गये है। क्या इस महरूमी से बाहर निकलने के लिए शब कदर के इस मुकददस मौके पर एतेहाद का यह पैगाम हम अपने दिलो में जा गुजेर करेंगे।

यह बात भी याद रखने की है कि शब कदर के लिए कोई मखसूस अमल मुकर्रर नही किया गया है। बस इस में इबादत व नेकी और दुआए मगफिरत तलबी का एहतेमाम जिस कदर ज्यादा मुमकिन हो करना चाहिए। यह भी अल्लाह की तरफ से हम सब की आसानी के लिए है कि हम जिस तरह चाहे और जिस तौर हमारे लिए मुमकिन हो इबादत व नेकी कर सकते है।

खुद कुरआन करीम की तिलावत करें नफिल नमाजें पढ़ें जिक व तसबीहात करें और रब्बे करीम दाता के दरबार में हाथ फैला कर दुवाए करें बस यह रात अल्लाह की इबादत और अल्लाह से मांगने की है जिस तरह इबादत करें और जिस तरह मांगें हम मोहजात है अल्लाह हर जबान को सुनता है और हर दिल की सदा उस तक पहुंचती है हम हर छोटी बड़ी हाजत इससे मांग लें कि वह ऐसा दाता है जो ज्यादा मांगने पर और ज्यादा खुश होता है और जिसके खजाने भी लामहदूद है हजरत आयशा सिददीकी ने रसूल करीम स.अ. से पूछा था कि अगर शबे कदर मिल जाये तो हमें क्या दुआ करनी चाहिए आप स.अ. ने फरमाया यूं दुआ करों ऐ अल्लाह तो माफ करने वाला है माफी को पसंद फरमाता है तो मुझे माफ कर दें खुश नसीब है वह लोग जिन्हें यह बा बरकत शब नसीब हो जाये और वह अल्लाह गफूर्रूर रहीम से अपनी मगफिरत का परवाना हासिल कर लें।