लखनऊ
मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना सै० कल्बे जवाद नक़वी ने जन्नत-उल-बक़ी के विध्वंस के मौक़े पर बयान जारी करते हुए तकफ़ीरी सऊदी सरकार के इस्लाम विरोधी क़दम का कड़ा विरोध करते हुए जन्नत-उल-बक़ी में पवित्र मज़ारों के पुनः निर्माण की मांग की।

मौलाना ने कहा कि सऊदी अरब एक तकफ़ीरी और ग़ैर-इस्लामिक सरकार हैं जिसके इस्लाम विरोधी क़दम का अंतराष्ट्रीय स्तर पर कड़ा विरोध होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन और औपनिवेशिक शक्तियों ने एक सुनियोजित सज़िश के तहत वहाबियत को जन्म दिया था। ताकि मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा कर उनमे फूट डाली जा सके। इस वहाबी और तकफ़ीरी गिरोह के हाथों हमेशा इस्लाम और मुसलमानों को नुकसान पहुंचा हैं। ब्रिटिश जासूस हम्फ्रे की डायरी से कुछ अहम तथ्य सामने आए जिससे पता चलता है कि मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब औपनिवेशिक शक्तियों की कठपुतली था जिसे ब्रिटेन का पूर्ण संरक्षण प्राप्त था।

मौलाना ने कहा कि जन्नत-उल-बक़ी के विध्वंस के समय लखनऊ में ऐतिहासिक एहतेजाजी जुलूस निकाला गया था जिसका नेतृत्व मेरे दादा मौलाना कल्बे हुसैन ताबा सराह ने किया था। ये जुलूस इमामबड़ा ग़ुॅफरांमाब से इमामबाड़ा झाऊलाल (बैतूल माल के इमामबाड़े) तक गया था। उस समय ब्रिटिश सरकार इस जुलूस के निकालने के ख़िलाफ़ थी, मगर एहतेजाजी जुलूस कामयाब रहा और 50 साल से भी ज़्यादा अरसे तक ये जुलूस निकलता रहा। जिस ज़माने में अज़ादारी के जुलूसों पर पाबंदी लगाई गई ये जुलूस भी बंद करवा दिया गया।

मौलाना ने कहा हम भारत सरकार से मांग करते हैं कि वो सऊदी सरकार पर दबाव बनाए ताकि जन्नत-उल-बक़ी में पवित्र मज़ारों का पुनः निर्माण कराया जा सके। जन्नत-उल-बक़ी में रसूले ख़ुदा (स.अ.व) की एकलौती बेटी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.अ) की क़ब्र हैं। हमारे इमामों की क़ब्रें हैं। असहाबे रसूल और अज़वाजे मुताहर की क़ब्रें है। हमारी दुआ हैं कि जल्द से जल्द जन्नत-उल-बक़ी में पवित्र मज़ारों का पुनः निर्माण मुमकिन हो और ज़ालिम सऊदी सरकार अपने अंजाम को पहुँचे।