मोहम्मद आरिफ़ नगरामी

सऊदी अरब एक ऐसा मुल्क है जहां जिन्दगी के सारे गोशों पर इस्लाम की हुक्मरानी है। उसका तालीमी निजाम भी उसी हकीकत का मजहर है। उसके मकासिद व अहदाफ, असबाब, वसायल, तरीकाकार गर्ज कि सब कुछ इस्लामी उसूलों में ढला हुआ है। उसके असास में तौहीद और खातिमुन्नबीईन की सुन्नत साबता में दाखिल है। यूं तो इस मुल्क में बेशुमार दावती व तालीमी इदारे हैं लेकिन यहां उन तीन जामियात का खुसूसियात से जिक्र किया जा रहा है जो आलमगीर शोहरत की हामिल हैं।

इस्लामी यूनिवर्सिटी मदीना मुनव्वरा का कयाम 1380 में अमल में आया। इसका मकसद आलमे इस्लाम की खिदमत के लिए उलमा इस्लाम के दाई और इस्लामी मौजूआत के माहिर असातिजा व मुदर्रिसीन व आइम्मा की तैयारी है। इसमें 80 फीसद तालीमी वजायफ गैर सऊदी मुस्लिम मुमालिक व अकलियात के लिए खास हैं। इसमें तकरीबन 12 से ज्यादा कौमों के तलबा जेरे तालीम हैं जो अपनी तालीम खत्म करने के बाद अपने अपने मुल्कों में दीन की खिदमत अंजाम देते हैं। उा अब्दुल्लाह बिन अहमद कादिरी जो मुख्तलिफ मुमालिक का दौरा करने के लिए निकले, अपनी वापसी पर इस यूनिवर्सिटी के फोजला के बारे में ये तास्सुर पेश किया किः

हम जहां भी गये हमने जामिया इस्लामिया मदीना मुनव्वरा के फारिगीन और फोजला की फैज रसानियों को महसूस किया उनकी वजह से लोग बराहेरास्त अरबी जबान के जरिये किताब व सुन्नत की फहम से बहरावर हो रहे हैं और किरदार व सल्क में भी यहां के फोजला व फारिगीन दूसरों से फायक हैं’’ इस यूनिवर्सिटी में दावत इस्लामी के काम को मुनज्जम अंदाज में अंजाम देने के लिए एक मरकज काम कर रहा है जो मुख्तलिफ मुस्लिम मुमालिक और मुस्लिम अकलियतों की हालतों का जायजा लेता रहता है ताकि वह हालात से बराहेरास्त आगाह हो सके और उन मुशकिलात व मुबल्लिगीन और दावती मैदान में काम करने वालों को पेश आ रहे हैं ताकि फिल फौरान का तआवुन किया जा सके। ऐसे इल्मी व फिकरी मौजूआत पर इल्मी तहकीकात और इल्मी प्रोग्रामों का इंएकाद करना जिनके दावती मैदान में सहूलत फराहम हो और काम करने वालों की रहनुमाई हो सके। फारिगीन जामिया से मुस्तकबिल राबता रखना ओर उनके मसायल, दावती मुशकिलात व परेशानियों से बाखबार रहना ताकि फिल फौर इसका तदारूक किया जा सके।

दुनिया की मुख्तलिफ जबानों में इस्लामी लिट्रेचर की तेयारी, तबाअत और उनकी तरसील ये काम मुल्क में काम करने वाले दूसरे इदारों के तआवुन से अंजाम दिया जाता है। जामिया उम्मुल कुरा मक्का मुकर्रमा यूनिवर्सिटी मुख्तलिफ मरहलों और शक्लों से गुजरते हुए यूनिवर्सिटी की शक्ल में वजूद में आई। 1401 में एक शाही फरमान की रो से उसकी मौजूदा शक्ल यानी यूनिवर्सिटी की हैसियत से वजूद में आयी। यूनिवर्सिटी में लडकों और लडकियों के 50 से जायद शोबे हैं। इसके अलावा उन तलबा के लिए जिनकी मादरी जबान अरबी नहीं और जो अरबी से नावाकिफ होते हैं उनके लिए एक अलाहिदा शोबा वजूद में आया इससे अहम मकासिद में ये है कि जदीद तहकीकाती उसूलों के मेयार पर इस्लामी तहकीकात को पेश करने के अहल असहाब इल्म व दानिश की तैयारी है। नेज जामिया के इल्मी और फन्नी मराकिज में रिसर्च और इल्मी तहकीकात की हौसला अफजाई है। मक्का यूनिवर्सिटी में हसबे जे़ल कालेजेज़ में दावत पर खुसूसी तवज्जो दी जाती है। इनके अलावा दीगर बहुत से कालेजेज जो इस यूनिवर्सिटी से मुनसलिक और मुलहक अपनी मुस्तहकम तालीम और उनमें दावती रूजहान के लिए खासे शोहरत रखते हैं। इनके अलावा यूनिवर्सिटी में दावती मतबूआत का एक मुस्तकिल शोबा है। यहां से मुख्तलिफ मैगजीन और रिसाला नेज मजल्लात शाया होते हैं। इमाम मोहम्मद बिन सऊद इस्लामिक यूनिवर्सिटी रियाज 1370 हिजरी में मुमलिकत सऊदिया अरबिया के शाह अब्दुल अजीज ने एक इदारा खोला। इस इदारा का नाम महदुर रियाजुल इल्मी’’ रखा इसके बाद ‘‘कुल्लियतुल लु ग तुल अरबिया बिल रियाज’’ के नाम से दूसरा इदारा खोला। इसके म अन बाद उमूमी सदारती बोर्ड बराये कुल्लियात व मुआहिदा की निगरानी में मुख्तलिफ इदारों के कयाम का एक सिलसिला चल निकला। इसके बाद एक शाही फरमान की रो से 1395 में ‘‘जामिया मोहम्मद बिन सउद इस्लामिया’’ के नाम एक यूनिवर्सिटी के कयाम का फैसला हुआ। इस यूनिवर्सिटी के अगराज व मकासिद इसके लिट्रेचर में कुछ यूं बयान किये गये। उलूम इस्लामिया, अरबी जबान व अदब और उमरानियात वगैरा उलूम के प्राइमरी से लेकर यूनिवर्सिटी सतह तक तालीम के असबाब व वसायल फराहम करना। इस्लामी मकालात व मजामीन उनके तराजुम तैयारकराना और उनकी नश्र व इशाअत का एहतेमाम करना ओर आलमे इस्लाम की दीगर यूविर्सिटियों और जामियात से राबता व ताल्लुक पैदा करना।फिकही मकालात व मजामीन की तैयारी का एहतेमाम करना। इस्लामी उलूम फुनून, अरबी अंग्रेजी जबान व अदब और उमरानियात के माहिरीन तैयार करना।इस्लामी जरूरतों की तकमील में हिस्सा लेना और बैरून मुल्क तलबा के लिए तालीमी वजायफ की फराहमी करना। यूनिवर्सिटी ने अपनी कोशिशों को सिर्फ सउदिया अरबिया तक महदूद नहीं रखा बल्कि इससे आगे बढकर मुख्तलिफ मुमालिक में अपनी शाखें और कालेज खोले हैं। मसलन रासुल खेमा में महदुल उलूमुल इस्लामिया के नाम से इसकी शाख काम कर रही है। इसी तरह मोरी तानिया में महदुल उलूमुल इस्लामिया वल अरबिया के नाम से एक इदारा काम कर रहा है जिसे वहां जबरदस्त मकबूलियत हासिल हुई है।चुनांचे इसी नाम से जेबूती में एक इदारा इंडोनेशिया में भी इंतेहाई कामयाबी के साथ काम कर रहा है उन मुस्लिम मुल्कों के अलावा इस्लाम की तरवीज व इशाअत के लिए इसकी शाखें दूसरे गैर मुस्लिम मुमालिक में भी काम कर रही हैं मसलन टोकियो जापान में, वाशिंगटन अमरीका में कोरिया वगैरा में। हकीकत ये है कि सउदी अरबिया में दीनी व दावती इदारों का एक मुस्तहकम जाल फैला हुआ है जिसके असरात न सिर्फ वहां के काम करने वाले गैर मुमालिक के अफारिद पर नुमायां हैं बल्कि सारी दुनिया में इस तबके पर देखे जा सकते हैं जो किसी ऐतबार से लिखा पढा है।