मोहम्मद आरिफ नगरामी

बाज लोग गलती से यह समझते है कि जिस पर जकात फ़र्ज़ नही उस पर सदक़ाए फ़ित्र भी वाजिब नही। हालांकि बहुत से लोगों पर जकात फ़र्ज़ नही होती मगर सदक़ए फ़ित्र वाजिब होता है जैसा कि कई मसाएल में आगे मालूम होगा,

  • जो मुसलमान इतना मालदार हो कि उस पर जकात फर्ज हो या ज्यादा जकात तो फर्ज न हो लेकिन उसके पास जरूरी सामान से ज्यादा इतना सामान हो कि उसकी कीमत साढ़े बावन तोला चांद की कीमत के बराबर हो तो उस पर सदका फितरा वाजिब है चाहे वह सामान तिजारत का हो या तिजारत का न हेा मसलन घरेलू सामान जरूरत से ज्यादा हो और चहे उस पर पूरा साल गुजरा होया न गुजरा हो।
  • किसी के पास अपनी रिहाईश का बड़ा कीमती मकान है और पहनने के कीमती कपड़े है मगर उनमें सच्चा गोटा नही नीज घरेलू सामने है जो इस्तेमाल में आता रहता है मगर जेवर और रूपये नही या कुछ सामान जरूरत से ज्यादा भी है और कुछ सच्चा गोटा जेवर रूपये भी है मगर उनका टोटल साढ़े बावन तोला चांदी की कीमत से कम है तो ऐसे शख्स पर सदका फितरा वाजिब नही,
  • किसी के पास जेवर रूपये नही या सामान तिजारत है मगर कुछ और सामान जरूरत से ज्यादा है जिसकी टोटल कीमत साढ़े बावन तोला चांदी की कीमत के बराबर है तो ऐसे शख्स पर जकात वाजिब नही मगर सदका वाजिब है
  • किसी के पास दो मकान है एक में खुद रहता है और एक खाली पड़ा है या किराये पर दिया हुआ है। तो शराअन यह दूसरा मकान जरूरत से ज्यादा है अगर इस की कीमत साढ़े बावन तोला चांदी की कीमत के बराबर हो तोउस शख्स पर सदका फितरा वाजिब है अलबत्ता अगर इसी मकान के किराये पर उसका गुजारा हो तो यह मकान भी जरूरी सामान में दाखिल हो जायेगा। और इस पर सदका फितरा वाजिब न होगा।
  • किसी के पास जरूरी सामान से ज्यादा माल और सामान है मगर वह कर्जदार भी है तो कर्ज को हटा करके देखें क्या बचा है अगर साढ़े बावन तोले से ज्यादा बचता है तो उस पर सदका फितरा वाजिब नही इसके माल में से न दिया जाये और जो बच्चा फज्र का वक्त शुरू होने के बाद पैदा हुआ उसकी तरफ से सदका फितरा वाजिब नही है।
  • ईदुल फितर के दिन सुबह सादिक के वक्त यह सदका वाजिब होता है लेहाजा अगर फज्र का वक्त शुरू हेाने के बाद पैदा हुआ इसकी तरफ से सदका फितरा वाजिब नही।
  • मर्द पर सदका अपनी तरफ से और अपनी छोटी बालिग़ औलाद की तरफ से अदा करना वाजिब है बालिग औलाद और बीवी की तरफ से अदा करना वाजिब नही अगर बीवी बालिग औलाद के पास इतना माल हो कि जिससे सदका फितरा वाजिब होता है तो वह अपना सदका फितरा खुद अदा करें अलबत्ता अगर मर्द अपनी बीवी और बालिग औलाद की तरफ से भी उनको बना कर अदा कर दें तो यह भी दुरूस्त है उनकी तरफ से अदा हो जायेगा,
  • अगर छोटे बच्चे की मलकियत में इतना माल हो जितने के हेाने से सदका फितरा वाजिब होता है मसलन उकसे किसी रिश्तेदार का इन्तेकाल हेा गया उसकी मीरास में इस बच्चो को हिस्सा मिला या किसी और तरह से बच्चेे को माल मिल गया तो बाप इस बच्चेका सदका फितरा उसके माल से अदा करें अपने माल में से देंना जरूरी नही।
  • जिसने जिसक किसी वजह से रोजे नही रखे उस पर भी यह सदका वाजिब है और जिसने रोजे रखे उस पर भी वाजिब है दोनो में कुछ फर्क नही।
  • बेहतर है कि ईदुल फित्र की नमाज को जाने से पहले ही यह सदका अदा कर दिया जाये अगर पहले न दिया तो बाद में अदा करें,
  • किसी ने ईद के दिन सदका फितरा न दिया तो माफ नही हुआ अब किसी दिन दे देना चाहिए।
  • सदका में अगर गेंहूं दे तो खालिस गेहूं का आटा दें तो एक शख्स की तरफ से दो किलों या कुछ ज्यादा दे देना चाहिए। क्योंकि ज्यादा देने में कुछ हर्ज नही बल्कि बेहतर है और अगर जौ या खालिस जौ का आंटा बना हो तो उसका दोगुना देना वाजिब है।
  • अगर गेंहू और जौ के अलावा कोई और अनाच हो मसलन चना ज्वार या चावल वगैरा तो इतना दें कि उस की कीमत इतने खालिस गेंहूं या इतने ख़ालिस गेंहूं जौ के बराबर हो जाये जितना ऊपर बयान ऊपर बयान हुआ।
  • अगर गेंहूं अैार जौ नही दिये बल्कि इतने खालिस गेंहूं की कीमत दे दी तो यह सबसे बेहतर है कीमत चूंकि घटती बढ़ती रहती है। लेहाजा हर साल अदा करने के वक्त बाजार से खालिस गेहूं की कीमत मालूम करके किया जाये आज कल राशन का आटा चूंकि खालिस गेहूं की कीमत मालूम करके किया जाये आज कल राशन यानी आंटा खालिस नही होता लेहाजा इसकी कीमत का एतबार नही।
  • ऊपर जो मकदार बयान की गयी यह एक शख्स का सदका फितरा है जिस मर्द पर सदका फितरा वाजिब हो अगर उसकी बालिग औलाद भी है तो हर बच्चे की तरफ से भी इतना ही इतना ही सदका फितरा देना वाजिब है।
  • एक आदमी का सदका फितरा एक ही फकीर को दे दिया जाये तो यह थेाड़ा थोड़ा करके कई फकीरों को दे दें दोनो तरफ जायज है
  • अगर कई आदमियां का सदका फितरा एक ही फकीर को दे दिया तो यह भी दुरूस्त हैं
  • सदका फितरा उन ही लोगो को दिया जा सकता है जो जकात के मुस्तहेक है।