लखनऊ ब्यूरो
सावरकर के माफीनामे के सम्बन्ध में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा दिये गये बयान को झूठा बताते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता डॉ. उमा शंकर पाण्डेय ने आज जारी एक बयान में कहा कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगना 1911 में आरंभ किया था और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने अंग्रेजो की कैद में बंद सभी कैदियों की रिहाई की मांग 1920 में किया था। संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों द्वारा गलत तथ्यों के माध्यम से इतिहास को प्रस्तुत करने से इतिहास बदलते नहीं है। देश के सामने सही इतिहास, वास्तविक स्वरूप में ही आना चाहिए और सच यह है कि सावरकर ने अंग्रेजों की कैद से रिहाई के लिए माफी मांगना महात्मा गांधी जी के 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापसी के पहले ही आरंभ कर दिया था।

‘‘कलेक्टेड वर्क ऑफ महात्मा गांधी’’ के वाल्यूम 20 के खण्ड 20 के पृष्ठ संख्या 369-371 से यह स्पष्ट है कि महात्मा गांधी जी ने उक्त मांग 26 मई 1920 को एक लेख के माध्यम से किया था। सावरकर के प्रिय लेखक विक्रम संपथ की ही किताब का संज्ञान लिया जाए तो भी यह स्पष्ट होता है कि सावरकर ने पहली माफी 14 नवम्बर 1913 को मांगी थी जो कि गांधी जी की अपील से सात साल पहले की घटना है। अच्छा होता कि रक्षा मंत्री जी इन अकाट्य तथ्यों से भलीभांति वाकिफ होकर ही ऐसा बयान देते। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम के पीछे छिपकर देश को गलत तथ्य देने की यह कोशिश सर्वथा अनुचित है।

गांधी जी के साथ ही देश के तत्कालीन नेताओं को इस बात से अनभिज्ञता थी कि सावरकर ने 1911 में अपनी गिरफ्तारी के डेढ़ माह बाद ही ब्रिटिश सरकार से अपनी रिहाई के लिए मांफी मांगना आरंभ कर दिया था। यह बात देश की जनता के सामने 1980 में आया कि सावरकर ने तमाम वादों और मिन्नतों के साथ अंग्रेजों की कैद से रिहाई के लिए सात बार माफी मांगी थी। देश के रक्षा मंत्री को इस गलत बयानबाजी के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।