तौक़ीर सिद्दीक़ी

प्रशांत किशोर और कांग्रेस पार्टी का जुड़ता रिश्ता टूटने का अगर कोई एक कारण मुझसे पूछा जाय तो वह यह है प्रशांत किशोर कांग्रेस पार्टी की मजबूरी का फायदा उठाना चाहते थे जिसे पार्टी के कुछ समझदार लोगों ने उठाने नहीं दिया। पिछले एक महीने से अपने आपको राजनीति का चाणक्य कहे जाने वाले प्रशांत किशोर कांग्रेस के इर्द गिर्द एक ऐसा मायावी जाल बिछा रहे थे जिसमें सामने वाले को सिर्फ कामयाबी और कामयाबी ही दिखाई पड़ रही थी लेकिन राजनीति में लगातार फ्लॉप पारियां खेल खेलकर परिपक्व हो चुके Rahul Gandhi उनके मायावी जाल में नहीं फंसे, यहाँ तक कि जब सारे लोग प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने और उसे टेक ओवर करने के दिन का इंतज़ार कर रहे थे, सोनिया के कहने पर कांग्रेसी सिपहसालार PK से मीटिंगों पर मीटिंगे कर रहे थे, राहुल गाँधी किनारा किये हुए थे. अंततः परिणाम वही हुआ जो राहुल और उनकी टीम चाहती थी. प्रशांत किशोर कांग्रेस को कब्ज़ाने में एकबार फिर नाकाम हो गए.

कांग्रेस और प्रशांत किशोर को लेकर पिछले दिनों जो कुछ भी घटनाक्रम हुआ उसने कांग्रेस पार्टी को एकबार फिर सवालों के घेरे में डाला। सवाल यही है कि इस प्रेम मिलन का अंजाम यही होने वाला था तो कांग्रेस पार्टी, या फिर कहिये सोनिया गाँधी ने इसे इतना लम्बा घसीटा क्यों? सभी को मालूम है कि भले ही राहुल गाँधी पार्टी के अध्यक्ष न हों लेकिन फैसलों पर अंतिम मुहर उन्हीं की लगती है, यह बात प्रशांत किशोर को भी मालूम थी, इससे पहले भी राहुल गाँधी के कारण पीके का कांग्रेस से प्रेम मिलन नहीं हो सका था, तो प्रशांत किशोर ने यह कैसे सोच लिया कि राहुल की मर्ज़ी के बिना उनका कांग्रेस में घुसना संभव है और फिर बात सिर्फ घुसने की नहीं थी, प्रशांत किशोर की महत्वकांक्षा तो बहुत बड़ी थी, देश की सबसे पुरानी पार्टी को अपने इशारों पर नचाने की. लेकिन किसी के लिए यह ऐसा सोचना मुंगेरी लाल के सपने जैसी ही बात होगी।

प्रशांत किशोर सोच रहे थे कि सोनिया गाँधी और प्रियंका वाड्रा को शीशे में उतारकर वह अपने राजनीतिक सफर का एक शानदार आग़ाज़ करेंगे लेकिन वह कहते हैं न कि तू डाल डाल तो मैं पात पात, Rahul Gandhi और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने ऐसा जाल बुना कि PK चारों खाने चित्त नज़र आये. उनकी सारी चाणक्य नीतियां धरी की धरी रह गयीं। कांग्रेस पार्टी में प्रशांत किशोर सपनों का सौदागर बनने गए थे लेकिन कांग्रेसियों ने उनके ही सपने को तोड़ दिया। नितीश कुमार ने उन्हें जेडीयू का उपाध्यक्ष बनाकर उनके मन में सक्रिय राजनीति की जो चिंगारी छोड़ी थी वह शोला बनने से पहले ही एकबार फिर राख हो गयी. एक्टिव पॉलिटिशियन बनने का उनका दूसरा प्रयास भी नाकाम रहा. प्रशांत किशोर वैसे चाहें तो किसी क्षेत्रीय पार्टी के साथ अपना सफर शुरू कर सकते हैं जैसे जेडीयू के साथ किया था, फिर ख़बरें आयी थीं कि वह अपनी पार्टी का गठन करके बिहार का चुनाव लड़ने जा रहे हैं मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. दरअसल प्रशांत किशोर नेशनल पॉलिटिक्स का हिस्सा बनने की तमन्ना रखते हैं और वह भी प्रभाव के साथ. अब जब्कि देश में दो ही नेशनल पार्टियां हैं, भाजपा ने तो उनका इस्तेमाल करने के बाद उन्हें दूध में मिली मक्खी की तरह बाहर फेंक दिया इसलिए उनके लिए विकल्प के तौर पर सिर्फ कांग्रेस ही बचती थी जिसके साथ उन्होंने दो प्रयास कर डाले।

तो अब क्या वह तीसरा मोर्चा गढ़ने की कोशिश करेंगे, हालाँकि वह कई बार कह चुके हैं कि कांग्रेस के बिना कोई भी मोर्चा मोदी का मुकाबला नहीं कर सकता। तो क्या पीके अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को एक बार फिर दफना देंगे और वापस अपने पुराने पेशे की तरफ चले जायेंगे। I-PAC के TRS से हुए मौजूदा एग्रीमेंट से तो यही लगता है. हो सकता है राज्यवार स्थितियों के हिसाब से वह कांग्रेस पार्टी को भी अपनी सेवाएं जारी रखें लेकिन इतना तो तय है कि जिस राज्य में गैरभाजपाई पार्टियों में टकराव होगा वहां प्रशांत किशोर को किसी एक की तरफ ही जाना होगा। राहुल और उनकी टीम इस बात को अच्छी तरह समझती है कि जब हितों का टकराव होगा कांग्रेस पार्टी को प्रशांत किशोर का साथ नहीं मिलेगा। यही एकबात है जिसको लेकर कांग्रेस पार्टी पीके पर आँख मूंदकर भरोसा नहीं कर सकी, उसने एम्पॉवर्ड ग्रुप बनाकर पीके के सामने बेड़ियों के साथ ऑफर रखा जिसे पीके को ठुकराना ही था.

इस डील के टूटने से कांग्रेस पार्टी का बड़ा वर्ग बहुत खुश है, प्रशांत किशोर ने जाते जाते जो बात कही वह बिलकुल सही है कि कांग्रेस पार्टी को अपनी जड़ों को मज़बूत बनाना होगा और जिसके लिए उनकी नहीं लीडरशिप की ज़रुरत होगी. पीके ने तंज़ में ही सही मगर बात तो सही कही कि कांग्रेस पार्टी को मज़बूत लीडरशिप की ज़रुरत है. वैसे मेरा मानना तो यही है कि प्रशांत किशोर वह व्यक्ति हैं जो आती हुई कामयाबी को और पुख्ता बनाते हैं न कि अपने दम पर कामयाबी दिलाते हैं , उनका ट्रैक रिकॉर्ड तो यही कहता है, जो आगे बढ़ रहा है उसे और आगे बढ़ाने में उनकी टीम के लटकों झटकों ने मदद की है न कि किसी पिछड़े हुए धावक को रेस जिताई हो।