नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और व्हाट्सएप से कहा कि वे भारतीयों के लिए निजता के निम्न मानकों के आरोप वाली याचिका पर नए सिरे से जवाब दें। शीर्ष अदालत का कहना है कि नागरिकों की निजता की रक्षा करना न्यायपालिका का कर्तव्य है। शीर्ष अदालत ने कहा कि लोगों को गंभीर आशंका है कि वे अपनी निजता खो देंगे और उनकी सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है।

पैसे से ज्यादा अपनी निजता को महत्व
चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने व्हाट्सएप को बताया कि भले ही यह तर्क दिया जाए कि भारत के पास विशेष डेटा संरक्षण कानून नहीं हैं, भले आप दो या तीन ट्रिलियन कंपनियों के हो सकते हैं लेकिन लोग पैसे से ज्यादा अपनी निजता को महत्व देते हैं।

याचिकाकर्ता का तर्क
शीर्ष अदालत ने 2017 की लंबित याचिका में कर्मण्य सिंह सरीन द्वारा दायर एक अंतरिम आवेदन पर सरकार और फेसबुक के स्वामित्व वाले ऐप को नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दिवान ने तर्क दिया कि मैसेजिंग ऐप भारतीयों के लिए गोपनीयता के निम्न मानकों को लागू कर रहा था और उन्हें फेसबुक के साथ डेटा साझा करने से रोक दिया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, “हम श्री दीवान के इस तर्क से प्रभावित हैं कि यह हमारे सामने प्रस्तावित था कि एक डेटा संरक्षण कानून लागू किया जाएगा। “अब इस नीति के तहत आप भारतीयों का डेटा साझा करेंगे।”

निजता के नुकसान की आशंका
पीठ ने कहा कि नागरिकों को उनकी निजता के नुकसान के बारे में बहुत आशंका है और उन्हें लगता है कि उनका डेटा और चैट दूसरों के साथ साझा किया जा रहा है और इस पर ध्यान देना होगा। केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि सोशल मीडिया ऐप उपयोगकर्ताओं के डेटा को साझा नहीं कर सकते हैं और डेटा को संरक्षित किया जाना चाहिए।