बिजनेस ब्यूरो
देश में बेतहाशा बढ़ती मंहगाई ने घरों का पूरा बजट बिगाड़ कर रख दिया है. सरकार कानों में तेल डाले बैठी है, शायद इसीलिए तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं. लोगों की पास मरता क्या न करता वाली हालत हो गयी है, सरकार से लड़ नहीं सकते इसलिए खुद ही खर्चों में कटौती का उपाय निकाला है.

देखने में आया है कि मांग में कमी के कारण भारत की कुछ सबसे बड़ी उपभोक्ता-वस्तु कंपनियों की बिक्री धीमी हो गई है। बाजार के आंकड़ों से इस बारे में आंकलन किया जा सका।

कंपनियों ने खाद्य पदार्थों से लेकर डिटर्जेंट तक लगभग हर चीज की कीमतें बढ़ा दी हैं, मुख्य रूप से मूल्य- बढ़ोत्तरी मुद्रास्फीति के कारण, जो कच्चे माल की उच्च कीमतों से बढ़ती समझ आती है। बाजार के आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण इलाकों में बिक्री में ज्यादा गिरावट आई है।

पैसे बचाने के लिए परिवार छोटे पैकेजों या नियमित ब्रांडों के सस्ते विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं। कारण यह कि जैसा कि यूक्रेन संघर्ष से महंगे हुए तेल और सप्लाई चैन के टूट जाने के कारण महंगाई समृद्ध और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में समान रूप से बढ़ गई है।

बता दें कि उपभोक्ता साबुन और शैंपू जैसी रोजमर्रा की वस्तुओं को सस्ते विकल्पों से चेंज कर रहे हैं। रिटेल-इंटेलिजेंस फर्म बिजोम ने हाल के एक नोट में कहा है कि जनवरी से मार्च के पहले सप्ताह के बीच कम कीमत वाले छोटे पैकेजों की ग्रामीण बिक्री पेय पदार्थों में 2%, पर्सनल केयर उत्पादों में 4% और वस्तुओं में 10.5% बढ़ी है।

बिजोम ने कहा कि हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड, मैरिको लिमिटेड, डाबर इंडिया लिमिटेड, इमामी लिमिटेड और ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड सहित भारत की सबसे बड़ी एफएमसीजी फर्मों ने मार्जिन में कमी देखी है, जिससे उन्हें हाल के महीनों में कीमतों में 30% तक की वृद्धि करनी पड़ी है।

डाबर लिमिटेड के विश्लेषण से पता चला है कि ज्यादातर उत्पादों की बिक्री मात्रा – शैम्पू, टूथपेस्ट और हेयर ऑयल – या तो एक जगह पर रुक गई या घट रही है। एक महीने पहले मार्च में साबुन की बिक्री में 5% की गिरावट आई थी।