-मो. आरिफ़ नगरामी

आबादी के लेहाज से मुल्क के सबसे बडे सूबे उत्तर प्रदेश में अगले साल के शुरूआती महीनों में असेम्बली की 403 सीटों के लिये चुनाव होने है। उत्तर प्रदेश सियासी ऐतबार से बहुत ही अहमियत वाला सूबा है। क्योंकि इसी रियासत से 80 मेम्बरान पार्लियमेेंट भी चुनाव जीतकर पार्लियामेंट पहुचते हैं। इसी लिये हमेशा कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। उत्तर प्रदेश असेम्बली के लिये 403 मेम्बरान का चुनाव अगले साल मार्च या फिर अप्रैल मेें होंगेें। मगर अभी से ही तमाम सियासी पार्टियों ने तैयारियां शुरू कर दी है। जहां तक उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी बीजेपी का सम्बन्ध है, वह 15 दिनों की आंतरिक उठा पटक के बाद साफ हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष , जेपी नड्डा की मर्ज़ी के बिना मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की एक बार फिर एलेक्शन में वजीरे आला का चेहरा होंगेें। और उनके ही नेतृत्व में यूपी असेम्बली का एलेक्शन लडा जायेगा। यह भी तय किया गया है कि वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी एलेक्शन में कोई अहेम या खास किरदार नहीं अदा करेंगें। यह इसलिये किया गया है कि आर एस एस को शायद अब यह महसूस होने लगा है कि वजीरे आजम का जादू अब आखिरी मंजिल में है। जिसकी मिसाल पश्चिम बंगाल मेें, केरल में और तमिलनाडु मेें पार्टी की करारी हार है । यह बात भी सच है कि विषवमन और झूठे वादों के जरिये जनता को बहुत दिनों तक बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है। वजीरे आजम एण्ड पार्टी के लिये चिंता का विषय है कि उनकी यह हालत और गिरावट के क्या कारण हैं । कल पुराने कांग्रेसी और राहुल गाँधी के करीबी दोस्त जितिन प्रसाद बीजेपी में शामिल हो गये। यह कांग्रेस के लिये झटका हो सकता है मगर बीजेपी के लिये यह कोई बहुत खुश होने वाली बात नहीं है। क्योंकि बंगाल में एलेक्शन से पहले बीजेपी ने ममता बनर्जी के लीडरों को धमका कर या फिर लालच देकर अपनी पार्टी मेें शामिल कर लिया था और उनको बीजेपी परिवार का हिस्सा बना लिया था। मगर इसकी वजह से बंगाल के पुराने लीडरों में नाराजगी फैल गयी और फिर नतीजा सारी दुनिया ने देखा। यह बात तो तय है कि जिस तरह राम मंदिर के निर्माण के नाम पर और हिन्दुत्व कार्ड खेल कर बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में 2017 का एलेक्शन जीता था इतनी आसानी से 2017 वाली कहानी नहीं दोहराई जा सकेगी। हालांकि मुसलमानों को खुश करने की भी कोशिशें की जा रही हैं । अब यह तय किया गया है कि इस बार उत्तर प्रदेश के एलेक्शन में मैदाने जंग मेें मुस्लिम उम्मीदवारों को भी उतारा जायेगा।

रही समाजवादी पार्टी की बात तो उसको 2017 में घरेलू विवादों की वजह से हार का सामना करना पडा था। और आज 2017 के बाद से समाजवादी पार्टी ने चुप्पी साध ली थी। मगर अब भी उत्तर प्रदेश मे हुये पंचायती एलेक्श में बीजेपी पर बढ़त हासिल हुयी है। जिससे पार्टी में एक जोश और हौसला पैदा हुआ है और एक बार फिर पार्टी सत्ता में आने के ख्वाब देखने लगी है। मगर समाजवादी पार्टी को किसी खुशफहमी में नहीं रहना चाहिये क्योंकि पंचायती एलेक्शन में उसको जो वोट मिले है। वह सब नकारात्मक वोट हैं । दरअस्ल जनता कोरोना काल मेें पंचायती एलेक्शन कराने के विरोध में थी साथ ही कोरोना से उत्तर प्रदेश की हुकूमत में जिस नाकामी और नाअहली के साथ मुकाबला किया उससे भी अवाम में गुस्सा था तो सरकार को सबक सिखानेऔर अपना गुस्सा उतारने के लिये लोगोें ने बीजेपी की जगह समाजवादी पार्टी को वोट दे दिया।

बहुजन समाज पार्टी को तो अब उत्तर प्रदेश में अपना वजूद पहचानना ही मुशकिल लग रहा है । बीएसपी के बड़े लीडर मायावती से परेशान हो कर पार्टी को छोड कर दूसरी पार्टियों मेें चले गये हैं या फिर मायावती ने उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया है। मायावती का वोट बैंक भी भटक कर बीजेपी में चला गया है इसलिए सियासी पंडितों का ख्याल है कि बीएसपी आने वाले एलेक्शन में कुछ खास नहीं कर पायेगी।

अब रही बात मुल्क की सबसे पुराणी पार्टी कांग्रेस की. उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी कांग्रेस की जनरल सेक्रेट्री प्रियंका गांधी को सौंपी गयी है जो उत्तर प्रदेश में पार्टी को नयी ज़िन्दगी देने की पूरी कोशिश भी कर रही है। यूँ तो प्रियंका गांधी समाज के तमाम तब्कों को कांग्रेस की तरफ आकर्षित करने की कोशिश भी कर रही है। एलेक्शन उत्तर प्रदेश के मुसलमान उनके खास निशाना है। वह चाहती है कि माजी में जो मुसलमान कांग्रेस से नाराज होकर समाजवादी पार्टी मेें चले गये है। वह वापस आ जायें। मगर प्रियका गांधी की कोशिशें कामबयाब होती नहीं दिखायी दे रही है क्योंकि हिन्दुस्तानी मुसलमानों की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि उन्होंने आजादी के बाद जिन सियासी पार्टियेां को अपना मसीहा समझ कर वोट दिया उन्होंने ही मुसलमानों का सबसे ज्यादा शोषण किया। कांग्रेस चॅूकि मुल्क की ऐसी एकलौती ऐसी पार्टी है जो सबसे ज्यादा दिनों तक सत्ता में रहीं है और हिन्दुस्तानी मुसलमानों ने शुरू से उसे वोट दिया। मगर इसके बावजूद बहुत ही कडवी हकीकत यह है कि कांग्रेस में मुसलमानों के वोटों पर हाथ तो साफ कर लिया लेकिन उनकी समस्याओं को हल करने की अवाम में कभी कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठाया और उन्हें हमेशा खिलौना देकर बहलाने की कोशिश की। कांग्रेस की तमामतर अनदेखी और नजरअन्दाज करने की कोशिश के बावजूद मुसलमान उसे वोट देते रहे। चॅूकि मुसलमानों के सामने कोई विकल्प नहीं था और मुसलमानों की इस मजबूरी से कांग्रेस ने खूब फायदा उठाया और लालीपाप देकर संतुष्ट करने की कोशिश करती रही।

कांग्रेस ने बाबरी मस्जिद विध्वंस में दोहरा खेल खेलने की कोशिश की और बीजेपी के हाथों से उसके फिरकावाराना एजेंडे को छीनने की कोशिश की और उस छीना छपटी में उसने अपने हाथों को पूरी तरह जला लिया। कांग्रेस के इस दोगले किरदार का नतीजा यह है कि आज मुल्क की सियासत में हाशिये पर पहुंच गयी है। उसकी सब से बुरी हालत उत्तर प्रदेश में हुई है। जहां इसका ताना बाना बुरी तरह बिखर गया है ऐसे हालात में प्रियका गांधी की वह तमाम कोशिशें कि मुसलमानेां को कांग्रेस की तरफ वापस ना लाया जाये, बिल्कुल नाकाम रहेंगी।

उत्तर प्रदेश की सियासत में गुजिश्ता 32 बरसों से हुकूमत से दूर रहने वाली कांगेस पार्टी मुसलसल वापसी के लिये जद्दोजेहद कर रही है और उसके लिये प्रियंका गांधी ऐसे एक चेहरे की तालाश में है जो उत्तर प्रदेश में आरएसएस और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मुकाबला हर सतेह पर कर सकें। इसलिये कांग्रेस के सामने इस वक्त जो चेहरे सामने नजर आ रहे हैं वह हिन्दू धर्मगुरू आचार्या प्रमोद कृष्णन का है। जो न सिर्फ हिन्दुओं में बल्कि मुसलमानों ओर दूसरी कौमों में भी मजबूत चेहरा है साथ ही साथ आचार्या जी प्रियका गांधी के सियासी सलाहकार भी है। माना जा रहा है कि कांग्रेस आला कमान में आचार्याजी को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपने का फैसला भी कर लिया है कहा जा रहा है कि कांग्रेस के अन्दर भुगवा ब्रिगेड के साथ साथ आरएसएस और बीजेपी के अलावा समाजवादी पार्टी भी आचार्या जी को उत्तर प्रदेश की सियासत से दूर रखने के लिये एडी चोटी का जोर लगाये हुये है। वाज़ेह रहे कि आचार्या जी पर उस वक्त से फिरकापरस्त तन्जीमों की तरफ से हमले किये जा रहे है। बोलना शुरू किया था और आज भी आचार्या जी आवाज बुलन्द करते रहते है। और अपनी तकरीरों में वह हिन्दुइज्म की असली तस्वीर पेश करते हैं इन सब बातों के आधार पर संघ परिवार को आचार्या जी बिल्कुल पसंद नहीं है। लेकिन अमन पसंद हिन्दुओं का एक बडा तब्का आचार्या जी को अपना लीडर मानता है और पसंद करता है। यह बात बिल्कुल साफ और स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश का एलेक्शन बीजेपी मजहबी बुनियाद पर लडेगी और जो माहौल बंगाल में पैदा किया गया था उससे ज्यादा खतरनाक सूरते हाल यूपी में पैदा करनेकी कोशिश की जायेगी। इरादा है कि सूरते हाल का मुकाबला करने के लिये कांग्रेस की निगाह में आचार्या जी जैसी शख्सियत की जरूरत है
एलेक्शन से पहले के हालात का अगर जायजा लिया जाये तो यह कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ जैसी शख्सियत फिलहाल किसी सियासी पार्टी के पास नहीं है और योगीजी ने वजीरे आला बनने के बाद से अब तक काफी काम किया है। इस दरमियान वह काफी ताकतवर बन कर उभरे है। और आरएसएस के पसंदीदा भी बन गये है। सब कुो देख कर कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में अगली हुकूमत दोबारा बीजेपी की ही बनेगी और योगी जी के सिर पर वजीरे आला का ताज पहनाया जायेगा। असल मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के दरमियान ही होगा। एलेक्शन में कांग्रेस और बसपा का अपना वजूद बचा लेना ही उनकी कामयाबी होगी।