लेख

मुसलमान सत्ता संघर्ष में शामिल नहीं

अब्दुल ग़फ़्फ़ार सिद्दीकी
9897565066

संसदीय चुनाव नजदीक आ रहे हैं। नागरिकों की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं। मुस्लिम उम्माह की इच्छा है कि मौजूदा सरकार को बदला जाए। अल्लाह ज़ालिमों से निजात दे। इसके लिए वे दुआ भी कर रहे हैं और दावा भी कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि ”देखो! INDIA नाम का ये गठबंधन मोदी जी को धूल चटा देगा।” कोई कहता है: “आज नहीं तो कल ये लोग (वर्तमान सरकार) चले जायेंगे।” किसी की ज़बान पर है: “जब नमरूद और फिरऔन न रहे, तो ये क्या होंगे?” यानी जितने मुँह उतने शब्द। हालांकि, कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि वह जालिमों से छुटकारा पाने के लिए क्या प्रयास कर रहे हैं? सत्ता परिवर्तन के लिए उनकी क्या योजना है? इस सवाल पर वह कहते हैं, ”अल्लाह महान है, उसे ही सब कुछ करने दो। निस्संदेह, अल्लाह महानतम है। उसके पास हर चीज़ पर अधिकार है। वह चाहे तो हर किसी को आस्तिक बना सकता है।अगर वो चाहे तो शैतान भी तौबा कर सकता है । लेकिन अल्लाह ताला अपनी ‘सुन्नत’ के मुताबिक काम करता है और उसने कहा है कि ”अल्लाह की सुन्नत में तुम्हें कोई बदलाव नहीं मिलेगा।” (अल-फतह 23)। गौरतलब है कि अरबी भाषा में सुन्नत का मतलब ‘तरीका, कानून, नियम’ होता है।

संसार संसाधानों का घर(दारुल असबाब) है। यहां हरकत में बरकत का नियम लागू होता है। दुनिया में कुछ चीजें ऐसी हैं, जिन्हें करने की जिम्मेदारी अल्लाह की है। उदाहरण के लिए, मौसम में बदलाव की प्रक्रिया, बारिश, गर्मी और ठंड की अधिकता और कमी आदि। यानी बारिश कराना, या सूरज को जबरदस्ती हटाना, या दिन को रात में बदलना हमारे वश में नहीं है। ये सब अल्लाह ने अपने हाथ में रखा है और हमें उसकी व्यवस्था में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिख रहा है लेकिन इस संसार के अधिकांश कार्य ऐसे हैं जिन्हें करने के लिए साधनों की आवश्यकता होती है। मनुष्य को अपने हाथ-पैर हिलाने पड़ते हैं। मानव जाति के अस्तित्व के लिए खाना, नहाना, शौच करना, उठना, बैठना और चलना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति को हिलना-डुलना पड़ता है। बिजली का एक बल्ब खराब होने पर स्वयं बदल नहीं सकता । साइकिल का पंक्चर खुद नहीं जुड़ सकता । कपड़े अपने आप नहीं सिल जाते । खाना अपने आप नहीं पकता। इन सभी क्रियाओं में हम अपने हाथ हिलाते हैं, जिसे हम ” अमल ” कहते हैं। यानी ये छोटे-छोटे काम वो होते हैं जिनमें हम बिना हाथ लगाए अंजाम तक नहीं पहुंच सकते। परंतु हम चाहते हैं कि दुनिया में इस्लाम का झंडा लहराये। इस्लामिक व्यवस्था स्थापित हो जाए । घमंड मिट जाए, मोदी जी घर चले जाएँ । बीजेपी की खटिया गोल हो जाए और इस काम में हमें कुछ भी नहीं करना पड़े । तो यह कैसे संभव हो सकता है ? जब सभी पैगंबरों को अपने समय के फ़िरऔन को सत्ता से बेदखल करने के लिए लड़ना पड़ा, तो हम क्या हैं ? जब दुनिया के हर समूह को सरकार में आने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, तो हमारे लिए अल्लाह का कानून क्यों बदलना चाहिए? यह संसार है। कोई समूह चाहे वह अच्छा हो या बुरा, सही हो या गलत, उसे सत्ता में आने और शासन करने के लिए भौतिक साधनों और प्राकृतिक कानूनों का सहारा लेना पड़ता है।

सत्ता के लिए संघर्ष हमेशा से रहा है और हमेशा जारी रहेगा। इसमें जीत दो चीजों पर निर्भर रही है। एक नैतिक बल और दूसरा भौतिक कारण। जब हम नैतिक बल शब्द बोलते हैं, तो इसका मतलब पहले सामान्य मानव नैतिकता और बाद में ईमान पर आधारित नैतिकता है। यदि दो समूह हैं जो अल्लाह में ईमान नहीं रखते हैं। अतः उनमें से वही सफल होगा जो सामान्य मानवीय आचरण और भौतिक साधनों के क्षेत्र में मजबूत होगा। इन दो वस्तुओं में नैतिकता महत्वपूर्ण है। यदि कोई समूह नैतिक शक्ति से समृद्ध है, तो वह कम भौतिक संसाधनों के साथ भी सफलता प्राप्त कर सकता है। यदि विरोधी समूहों में से एक इमान वालों का समूह है, जो आस्था-आधारित नैतिकता से सुसज्जित है, तो उसकी सफलता 100% निश्चित है । कुरान ने इन शब्दों में इसका वर्णन किया है:”यदि तुम ईमानवाले हो तो तुम प्रबल (सर बुलन्द ) होगे।” (अल-इमरान.139) यहां ईमान सिर्फ मौखिक ईमान नहीं है। बल्कि, यह वह ईमान है जिसके पीछे नेक आमाल और नैतिकता की शक्ति है। सूरह अल-अस्र में बताया गया है कि “नुकसान से वे सुरक्षित रहते हैं जो ईमान लाते हैं, जो नेक काम करते हैं, एक दूसरे को सच्चाई और धैर्य की शिक्षा देते हैं।” यही बात सूरह नूर की आयत 55 में भी कही गई है:”अल्लाह ने तुम में से उन लोगों से, जो ईमान लाए और अच्छे कर्म किए, वादा किया है कि वह उन्हें धरती पर ख़लीफ़ा बना देगा, जैसे उसने उनसे पहले गुज़रे लोगों को बनाया था। वह उनके लिए उनके धर्म को एक मजबूत बुनियाद पर स्थापित करेगा, जिसे अल्लाह ने उनके लिए पसंद किया है। और उनकी (वर्तमान) स्थिति भय को शांति से बदल देगा, जब तक कि वे मेरी इबादत करते हैं और किसी को मेरे साथ साझी नहीं बनाते हैं, और जो कोई उसके बाद इनकार करेगा, वही उल्लंघनकर्ता हैं। सूरह रूम, आयत 47 में यहां तक कहा गया है: “ईमानवालों की मदद करना हमारा कर्तव्व्य है।”

सत्ता में आने के लिए जो नैतिक गुण सबसे महत्वपूर्ण हैं उनमें ‘न्याय’ है । जो क़ौम न्यायप्रिय हैं। जिसके दरबार में राजा और फ़क़ीर, अमीर और गरीब, छोटे और बड़े, मुस्लिम और ग़ैरमुस्लिम, सभी समान हैं , जब तक उसकी कानून व्यवस्था के ‘न्याय’ पर आधारित है वह क़ौम विश्व पर शासन करती हैं, और जब वह क्रूरता और विद्रोह पर उतर आती है तो इसका सामना करने के लिए उस क़ौम को लाया जाता है जो न्याय कर सकती है। यदि संयोगवश ऐसा कोई क़ौम या समूह नहीं है जो न्यायसंगत व्यवस्था चला सके तो फिर ज़ुल्म करने वालों की रस्सी छोड़ दी जाती है ताकि उन्हें सज़ा के तौर पर उन लोगों पर थोप दिया जाए जो लोग मौखिक रूप से ईश्वर की पुस्तक के स्वामी होने का दावा करते हैं और ईश्वर में आस्था रखते हैं ।

वर्तमान समय में हमारे देश में जो समूह सत्ता पाने के लिए मैदान में संघर्ष कर रहे हैं, जाहिर तौर पर वे सभी झूठ के वाहक हैं। इनमें से किसी भी समूह के पास ईमान-आधारित राजनीति प्रणाली नहीं है, न ही इनमें से कोई भी ईमान-आधारित प्रणाली लागू करने का दावा कर रहा है। यहाँ अल किताब कुरान नहीं बल्कि “भारत का संविधान” है। ऐसे में जाहिर है कि इस्लाम और ईमान के आधार पर किसी की हार या जीत नहीं होगी बल्कि यह देखा जाएगा कि सामान्य मानवीय नैतिकता और भौतिक संसाधनों में कौन समृद्ध है । कौन सा समूह अधिक निर्माण कार्य कर सकता है ? हमारे यहां मौजूद प्रतिस्पर्धी समूहों में से एक वह है जिसे प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार लंबे समय (लगभग 65 वर्ष) तक शासन करने का मौका मिला । अब, प्रकृति के नियम के अनुसार, शासक समूह की कार्रवाई की जांच की जाएगी। उसकी नैतिक शक्ति को तोला जाएगा।जब हम इस दृष्टि से अपने पूर्व शासक समूह का मूल्यांकन करते हैं तो बड़ी निराशा होती है। हमारे पूर्व शासकों ने अपनी जनता पर जो अत्याचार किये, जो अन्याय किये, भारत के संविधान की धज्जियाँ उड़ाईं उस से कौन परिचित नहीं है? इसी का परिणाम है कि आज सत्ता के सदन में उनकी स्थिति शर्म से डूब मरने की है ।

अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि क्या सत्ता में बैठा समूह कम जुल्म कर रहा है ? मैं आपके प्रश्न से सहमत हूं। लेकिन हमारे लिए यह कहना ठीक हो सकता है कि वे क्रूर हैं क्योंकि हम उनके अत्याचारों का निशाना हैं। लेकिन उनके सह-धर्मवादी उनके बारे में क्या सोचते हैं? उनका मानना है कि उनके कार्य उचित हैं उनमें से अधिकांश के अनुसार, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है। भव्य राम मंदिर का निर्माण, कश्मीर से 370 हटाना, नए संसद भवन, सेंट्रल विस्टा का निर्माण, समान नागरिक संहिता की दिशा में पहल , एनआरसी लागू करने की कोशिश, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में हस्तक्षेप, कावंड़ियों पर फूल बरसाना, नफरत फैलाना आदि कार्य हमारे हिंदू भाइयों की आस्था के मुताबिक़ है और उनके मुताबिक मौजूदा सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है ,देश में उनका ही बहुमत है । उनसे प्रतिस्पर्धा करने वाले समूहों का संगठन चू चू के मुरब्बे के अलावा क्या है? राज्यों में ये एक दूसरे के विपरीत हैं। उनके बीच कोई समानता नहीं है, उनकी भी जहां हुकूमत होती है, ‘न्याय’ पर अत्याचार होता है। बताइये इस समय जहां जहाँ उन की हुकूमत है उन में से किस राज्य को आदर्श राज्य कहा जा सकता है? जिसे जहां मौका मिलता है वह कमजोरों पर जुल्म करता है भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाता है। इन परिस्थितियों में मुझे नहीं लगता कि 2024 के चुनाव परिणाम आश्चर्यजनक होंगे

जहां तक मुसलमानों का सवाल है, वे सत्ता की दौड़ से बाहर हैं। उन्होंने दिनदहाड़े अपने हाथों से पूरा कारोबार झूठ के हवाले कर दिया है। ‘1960 के दशक में जमीयत उलेमा, जो आज़ादी की लड़ाई में सबसे आगे थी, ने एक औपचारिक प्रस्ताव पारित किया कि हम राजनीति से दूर रहेंगे और केवल धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में काम करेंगे।जब मुसलमान इस युद्ध का हिस्सा नहीं हैं तो हार-जीत का क्या लेना-देना? वर्तमान सरकार उनके लिए एक अज़ाब है, और अगर, इस सरकार की जगह गठबंधन सरकार बनी, तो यह भी एक अज़ाब होगी। जिस समूह के पास प्रकाश है और वह इस प्रकाश से लाभ नहीं उठाता और दूसरों को लाभ उठाने का अवसर नहीं देता, तो उस समूह पर अंधकार का शासन होजाता फिर ईमान का दावा करने वाले समूह को अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए कि उसके पास ‘ईमान’ किस गुण का है और ‘नेक कर्मों’ के नाम पर उसके पास कितनी पूंजी है। उसकी नैतिकता में ‘अद्ल'(न्याय) की क्या स्थिति है। 10% आबादी बेशऊरी नमाज़ पढ़ती है, कुछ लोग दाढ़ी रखते हैं, टोपी पहनते हैं और हाथों में माला लेकर ख़ुदा का नाम जपते हैं। क्या इस्लाम व ईमान के नाम पर इतना काफी है? झूठ बोलना, चोरी करना, धोखा देना नशे, पाखंड और धोखे के लिए ईमान वालों की नैतिकता में कोई जगह नहीं है और इस वक्त मुस्लिम उम्माह के पास यही कुल नैतिक पूंजी बची है। जो लोग अल्लाह को चंद सिक्कों में बेच देते हैं, वे किस ईमान का दावा कर रहे हैं? अगर हम कोई बदलाव चाहते हैं तो हमें ईमान आधारित नैतिकता और भौतिक संसाधनों के साथ मैदान में आना होगा। अगर हम अपने ईमान के दावे में सच्चे साबित हुए तो अल्लाह की सुन्नत के मुताबिक हमें ताकत दी जाएगी और “यदि हम विमुख हो जाएं, तो अल्लाह एक और क़ौम लाएगा और वे हमारे जैसे नहीं होंगे” । (सूरह मुहम्मद 38)

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

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Tags: abdul gaffar

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