उमाकान्त श्रीवास्तव
प्रदेष उपाघ्यक्ष
आलॅ इंडिया पीपुल्स फ्रंट

उमाकान्त श्रीवास्तव

आदरणीय मोदी जी,आप ने 2014 में चुनाव जीतने के बाद पहली बार संसद में प्रवेश करने से पहले उसकी चौखट पर माथा टेका था और संसद को लोकतंत्र का मंदिर की संज्ञा देते हुए कहा था कि संसद सत्र का पूरा उपयोग होना चाहिए। संविधान लोकतंत्र की आत्मा और संसद लोकतंत्र का मंदिर है।इसके सत्र का एक-एक क्षण कीमती है। इसका एक.एक क्षण का उपयोग होना चाहिए।आज वही मोदी सरकार संसद की उपेक्षा कर रही है, जानकर बहुत दुख हो रहा है। मोदी सरकार का कोरोना के बहाने से संसद के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी और जबाबदेही से बचने के लिए सरकार का बहुत चालाकीभरा और अलोकतांत्रिक फैसला लोकतंत्र के मंदिर का अपमान है। एक तरफ तो मोदी सरकार ने कोरोना के चलते शीतकालीन सत्र रद्द कर दिया, वहीं दूसरी ओर बीजेपी का मिशन बंगाल चल रहा है।जिसके तहत बीजेपी के बड़े.बड़े दिग्गज नेतागण, गृहमंत्री श्री अमित शाह जी,बीजेपी अध्य्क्ष जे०पी० नड्डा जी,बहुत भीड़ भरी,बड़ी बड़ी रैलियां कर रहे हैं।

देश, सरकार और सरकार के मंत्रियों से, पूंछना चाहता है कि बंगाल में कोरोना नही है क्या? इससे पहले हैदराबाद के लोकल इलेक्शन में भी तबियत से भारी भीड़ वाली रैलियां लगभग एक दर्जन बीजेपी मंत्रियों/नेताओं द्वारा की गई। तब शायद बीजेपी सरकार की नज़र में कोरोना नही था। कोरोना शायद सरकार के इशारों पर चलता है। किसानों के आंदोलन के चलते सरकार संसद में विपक्ष का सामना करने से कतरा रही है और संसद में जवाबदेही से बचना चाहती है।
सरकार ने मानसून सत्र में आनन-फानन में किसान विरोधी तीन कृषि कानून और मज़दूर विरोधी चार लेबर कोड जैसे कई कानून पास करा लिए और अब संसद मे जबाबदेही से बचना चाहती है और कोरोना के बहाने से संसद का शीतकालीन सत्र रद्द कर रही है। यही बीजेपी सरकार थी जिसने बिहार में पहले इलेक्शन होने दिया।फिर बहुत बड़ी.बड़ी चुनावी रैलियां की।और फिर इलेक्शन जीतने के बाद बिहार विधान सभा का सत्र भी बुलाया। देश, सरकार से पूंछना चाहता है कि तब क्या कोरोना नही था

मोदी जी और उनकी सरकार का तो पता नही, लेकिन पूरे देश की जनता का जबाब है,था, और आज 15 दिसंबर 2020 के मुकाबले बहुत अधिक था। जबकि सरकार के ही आंकड़ों के मुताबिक 15 दिसंबर की तारीख में कोरोना पूरे देश मे विशेष रूप से दिल्ली में बहुत कम हो चुका है और 15 दिसंबर को घोषित आंकड़ों में देश में 5 महीनों में सबसे कम कोरोना केस आये तो भी संसद का शीतकालीन सत्र रदद् क्यों?

सभी सरकारी/प्राइवेट कार्यालयों को सरकार भीषण कोरोना काल से ही खोल रही है। सभी कर्मचारी (सरकारी/प्राइवेट) ऑफिस में या फील्ड में कंपलसरी ड्यूटी पर बुलाये जा रहे हैं और काम कर रहे है। सभी पी.एस.यू बैंक के सभी कर्मचारियीं को कोरोना की शुरुआत से ही अनिवार्य रूप से ड्यूटी पर बुलाया गया।सभी सुरक्षा अधिकारी एवं कर्मचारी (पुलिस/सी.आई.एस.एफ./बी.एस.एफ/आर.ए.एफ/होमगार्ड) सभी प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारी सभी हेल्थ सेक्टर के डॉक्टर नर्स और अन्य कर्मचारियों को ड्यूटी पर कोरोना के शुरू से लेकर अब तक अनिवार्य रूप से बुलाया जा रहा है। और प्रशासनिक/पुलिस/मेडिकल अधिकारी और कर्मचारी तो ऐसी विषम परिस्थितियों में अनिवार्य रूप से काम करने को मजबूर रहे हैं और वो चाह कर भी सोशल डिस्टेनसिंग का पालन नही कर सके और न् ही उनको कोरोना से बचाव के लिए ज़रूरी अति आवश्यक उपकरण ही मिले। जिस कारण बहुत सारे लोगो की मृत्यु भी हो गई। दूसरी तरफ संसद में हर प्रकार के सुरक्षा बचाव किये जा सकते है। संसद हर प्रकार से साधन संपन्न है, कोरोना से बचाव के लिए। तो सरकार संसद का सत्र रद्द क्यों कर रही है। अभी सितंबर में जब किसान विरोधी तीन कृषि कानून मज़दूर विरोधी चार लेबर कोड व अन्य ज़रूरी कानून पास कराने के लिए मानसून सत्र बुलाया गया था, तब कोरोना काल नही था क्या?

ये तो लोकतंत्र का अनादर है, अपमान है। ये देश की आम जनता के साथ धोखा है, विश्वासघात है। इसके लिए देश की आम जनता बीजेपी सरकार को कभी माफ नही करेगी।