लाल बहादुर सिंह, नेता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट

लाल बहादुर सिंह

अमित शाह ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। लोग हतप्रभ है।क्या कोरोना का खतरा टल गया, उसका कर्व फ्लैट हो गया, क्या वह अब ढलान पर है ?ऐसे समय जब कम्युनिटी संक्रमण के साये में सरकती राजधानी दिल्ली में मुख्यमंत्री का कोरोना टेस्ट हो रहा है, न जाने कितने लोग अस्पतालों के गेट पर, टेस्ट और बेड के अभाव में दम तोड़ रहे हैं, देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई और महाराष्ट्र अकेले ही चीन को पीछे छोड़ चुके हैं, जब देश अमेरिका, ब्राज़ील की राह पर एक ऐसे खतरनाक भविष्य की ओर सरपट दौड़ रहा है, जिसकी कल्पना मात्र से ही लोग सिहर उठ रहे है, तब देश के प्रधानमंत्री अदृश्य हो गए हैं और सबसे ताकतवर मंत्री अमितशाह वोट मांग रहे हैं और वर्चुअल रैलियों में मशगूल हैं !

क्या यह जिम्मेदार राष्ट्रीय नेतृत्व का आचरण है ? क्या यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा नहीं है ?

आखिर, देश के नागरिकों के जीवन की रक्षा एक सरकार के बतौर आपकी सर्वोच्च नैतिक, राजनैतिक, संवैधानिक जिम्मेदारी है। लेकिन आपने तो सबसे पल्ला झाड़ लिया। अब आप विपक्ष से सवाल पूछ रहे हैं, पर जनता ने तो विपक्ष को नकार कर आपको सत्ता शीर्ष पर बैठाया था, कुछ उम्मीदों से।

अमित शाह ने बिल्कुल ठीक कहा कि देश की जनता ने प्रधानमंत्री पर एकनिष्ठ भाव से विश्वास करके, वह सब किया जो उन्होंने कहा- ताली, थाली, मोमबत्ती, कर्फ्यू….आखिर इस अभूतपूर्व आपदा के खिलाफ युद्ध में वे हमारे प्रधान सेनापति हैं! पर इसके बदले जनता को आखिर मिला क्या ? कोरोना की विभीषिका के आगे देश आज असहाय, जनता बेबस खड़ी है। क्या देश की भोली भाली जनता जिसने आप पर इतना भरोसा किया, वह बस इसी की हकदार है?

जहां तमाम देशों ने अलग अलग रणनीति अख्तियार करके धीरे धीरे कोरोना को नियंत्रित कर लिया, वहीं हमारे देश में कोरोना संकट का तो कोई आदि-अंत ही नहीं दिख रहा, आपने ” कोरोना के साथ जीना होगा ” का झुण्ड प्रतिरक्षा का बोगस सिद्धांत पेशकर जनता को मरने के लिए छोड़ दिया है। याद रखिये, यह सिद्धांत कोरोना से लड़ पाने में आपकी विराट विफलता का भव्य स्मारक है, जिसके लिए देश की जनता आपको कभी माफ नहीं करेगी! बहुमूल्य समय गंवा कर, अनियोजित, क्रूरतापूर्ण लॉकडाउन द्वारा आपने पहले से डूबती अर्थव्यवस्था को रसातल में पंहुंचा दिया, तमाम उद्यमों को चौपट कर दिया, करोड़ों मजदूरों को भूखे-प्यासे दम तोड़ने, कटने मरने को छोड़ दिया, अब जब कोरोना चौकड़ी भरते हुए छलांग लगा रहा है, तब आपने व्यव्हारतया सब खोल दिया !

अमित शाह ने कहा कि तमाम राज्यों की समृद्धि की नींव में बिहार (और उप्र0) के मजदूरों के पसीने की खुशबू मिली हुई है, पर उनके खून-पसीने के बदले उन्हें आपने क्या दिया: अपमान, बेबसी, भूख, चौतरफा तबाही और मौत, जिसे आने वाली कई पीढ़ियों तक वे भूल नहीं पाएंगे!

जब लोग कह रहे हैं कि जरूरतमंदों को पैसा देकर डिमांड पैदा करिये तभी अर्थव्यवस्था मंदी से उबरेगी, पूरे देश में बेकारी, भूखमरी, आत्महत्या का काला साया पसरता जा रहा है , तब आप सारे संसाधनों पर कुंडली मार कर बैठ गए हैं। न सिर्फ़ विराट मेहनतकश आबादी को बल्कि मुख्यमंत्रियों तक को भिखमंगों में आपने तब्दील कर दिया।

आज जहां जरूरत थी कि पूरा राष्ट्र एक स्वर में एक फौलादी इच्छाशक्ति के साथ युद्धस्तर पर कोरोना से लड़ता, स्वस्थ्यसेवाओं को कई गुना बढ़ा देने के लिए सारे राष्ट्रीय संसाधन झोंकता, वहीं आपने सारे विपक्षी मुख्यमंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और सब को दोषारोपण में उलझा दिया है।

बेशकीमती समय गंवाया जा चुका है, फिर भी अभी भी देरी नहीं , अभी भी पहल लीजिये, टुच्ची राजनीति से ऊपर उठिए, पूरे राष्ट्र की ऊर्जा और इच्छाशक्ति को संगठित करिये, देश के सारे आर्थिक संसाधनों को युद्धस्तर पर स्वस्थ्यसेवाओं के विस्तार और जनता की आजीविका के लिए झोंक दीजिये !

बहुमूल्य मानव जीवन पहले ही दाव पर लग चुका है, अभी भी जो बच सके उसे बचा लीजिये!

यह एक आम देशभक्त नागरिक की बेहद दर्द के साथ, देश के मुखिया से अश्रुपूरित हार्दिक अपील है !