-मो. आरिफ़ नगरामी
असेम्बली एलेक्शन में जब उत्तर प्रदेश मेें बीजेपी को जबर्दस्त कामयाबी हासिल हुयी थी उस वक्त बीजेपी आला कमान यानी वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी और अध्यक्ष अमित शाह को एक फिक्र थी कि मुल्क के सब से ज्यादा आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का ओहदा किसको दिया जाये। उस वक्त आला कमान के सामने वजीरे आला के ओहदा के लिये कई नाम थे। उनमें राज नाथ सिंह, कलराज मिश्रा मौजूदा सूबे के दोनों उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या और दिनेश शर्मा मुख्या रूप से थे मगर फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने अचानक रात में फोन करके योगी आदित्य नाथ को दिल्ली बुलाया और उनको उत्तर प्रदेश संभालने का हुक्म सुना दिया। दूसरी सुबह योगी आदित्य नाथ ने लखनऊ पहुंच कर मुख्यमंत्री का ओहदा सम्भाल लिया। मुख्यमंत्री का ओहदा सम्भालने के बाद से उत्तर प्रदेश के राजनीतिक क्षितिज पर सिर्फ और सिर्फ योगी आदित्य नाथ का नाम चमकता रहा है। यहां तक कि विभिन्न राजनीतिक दलों के लीडर जैसे पूर्व सीएम मायावती, अखिलेश यादव के अलावा अपोजीशन के तमाम नेता भी अंधेरों मेें गुम हो गये। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ही उत्तर प्रदेश के सियाह व सफेद के मालिक बन गये। उनकी इजाजत के बेगैर उत्तर प्रदेश मेें परिन्दा पर भी नहीं मार सकता है। हुकूमत पर उनकी जबर्दस्त पकड है। और उनकी इजाजत के बेगैर उत्तर प्रदेश में कोई काम नहीं हो सकता है। ऐसे अचानक परिदृश्य बदल गया। योगी जी की लोकप्रियता से बीजेपी और आर0एस0एस0 के लीडरों में खलबली हो गयी। मोदी जी के बाद स्टार प्रचारकों मेें योगी जी की डिमाण्ड होने लगी। लोग योगी जी को वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी का विकल्प बताने लगे। यह सब बातें लोगों को खटकने लगीं तो योगी जी के पर काटने की कोशिश की जाने लगीं। प्रधामंत्री नरेन्द्र मोदी के बहुत खास पूर्व आई0ए0एस0 अफसर अरविन्द शर्मा को इस्तीफ़ा दिलाकर एक प्लान के तहेत एम0एल0सी0 बनवाया गया। खुद प्रधानमंत्री ने शर्मा जी की इन्तेजामी सलाहियतों की खुल कर तारीफ की। प्रधानमंत्री की ख्वाहिश थी कि शर्माजी को उत्तर प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाया जाये। जिस से एक तरफ तो योगी जी पर लगाम लगाई जा सकेगी तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश मेें योगी जी की लोकप्रियता को कम कर दिया जाये मगर योगी जी शर्मा जी को उपमुख्यमंत्री का ओहदा या गृह विभाग देने से साफ इन्कार कर दिया जिसकी वजह से बीजेपी आला कमान और योगी जी के दरमियान कडुवाहट पैदा हो गयी और जब यह खटास ज्यादा बढ गयीं और ऐसा लगने लगा कि उत्तर प्रदेश बीजेपी मेें टकराव की स्थिति पैदा हो रही है तो आर0एस0एस0 के दूतों के लखनऊ आवागमन का सिलसिला शुरू हो गया और यह प्रचार किया जाने लगा कि कोरोना वायरस के दिनों मेें योगी जी की अक्षमता और उत्तर प्रदेश में हुए पंचायती एलेक्शन मेें बीजेपी की शर्मनाक हार की वजह से योगी जी को मुख्यमंत्री के ओहदे से हटाया जा रहा है। मुख्यमंत्री पद के लिए जिन नामों को उछाला गया उनमें राजनाथ सिंह, कलराज मिश्रा का नाम सबसे आगे था। यह भी क़यास लगने लगे कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को हटा कर उनकी जगह पर केशव प्रसाद मौर्या को फिर बिठाया जायेगा और स्वतंत्र देव सिंह को कैबिनेट में शामिल किया जायेगा। यह भी क़यास लगाए गए कि प्रधानमंत्री के चहेते ए0के0 शर्मा को उपमुख्यमंत्री का दरजा दिया जा रहा है साथ ही उनको गृह मंत्रालय भी सौंपा जायेगा। मगर मुख्यमंत्री आदित्य नाथ ने अपनी रणनीतिक महारत के जरिये विरोधियों की तमाम सियासी चालों को नाकाम बना दिया। और एक बार फिर वह उत्तर प्रदेश के सबसे प्रभावकारी और कद्दावर लीडर के तौर पर उभर कर सामने आये है।
और अब बीजेपी उत्तर प्रदेश के एलेक्शन 2022 के लिये फिर वही पुराना फारमूला अपनाने यानी मजहबी कार्ड खेलने जा रही है। सत्ता को बचाने के लिये उसे अपनी केंद्र और राज्य सरकार की उपलब्धियों से ज्यादा भगवान राम पर भरोसा है और राम मन्दिर की तामीर की राह हमवार करने का क्रेडिट खुद को देते हुये उस का सियासी फायदा उठाने का सोचा समझा मन्सूबा भी बना रही है। इसके लिये पार्टी का शीर्ष नेतृत्व और उसको वैचारिक समर्थन देने वाली संस्था आर0एस0एस0 का भी सिगनल मिल चुका हे क्योंकि बीजेपी को यह डर है कि कोरोना काल में मोदी और योगी जी की छवि को जो धक्का लगा है उसकी वजह से उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले असेम्बली एलेक्शन में बीजेपी की कामयाबी की राह मुश्किल हो गयी है और उत्तर प्रदेश को बचाने के लिये उसे एक बार फिर भगवान राम की शरण में जाना ही पडेगा।
पार्टी के एक सीनियर नेता का कहना है कि भगवान राम चन्द्र और हिन्दुत्व का कार्ड हमारे लिये हमेशा से कारगर चुनावी हथियार रहा है। तो उसे छोड देने की वजह दिखाई नहीं पड़ती है। वैसे अगर देखा जाये तो बीजेपी हिन्दुत्व कार्ड से हट कर कुछ सोच भी नहीं सकती है। इसका जीवंत उदाहरण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी है। जो इसी कार्ड के दम पर ‘‘अपराजेय ‘‘ है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के सामने हथियार डालने के बाद बीजेपी आला कमान और आर0एस0एस0 का शीर्ष नेतृत्व अगले साल होने वाले असेम्बली एलेक्शन को योगी जी की केयादत में और उनके चेहरे और नाम पर लडने का फैसला किया है। सियासी पंडितों का मानना है कि कोरोना काल के बाद सितम्बर से बीजेपी उत्तर प्रदेश मेें अयोध्या तो सिर्फ झांकी है, काशी मथुरा बाकी है मुहिम शुरू करेगी। बीजेपी और आर0एस0एस0 के शीर्ष नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के असेम्बली चुनावों को करो या मरो के नजरिया से देख रही है। उनको यह फिक्र है कि यूपी में हार का पूरा असर 2024 के लोकसभा चुनावों पर होगा। क्योंकि यह पराजय सिर्फ योगी की नहीं बल्कि मोदी और आर0एस0स0 की भी मानी जायेगी।
यह भी कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ इस बार भले ही अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो गये हों मगर सरकार में बडी तब्दीली को वह ज्यादा दिनों तक नहीं टाल सकते। बीजेपी और आर0एस0एस0 का शीर्ष नेतृत्व यह तय कर चूका है कि उत्तर प्रदेश हुकूमत का चेहरा पूरी तरह नहीं तो मगर कुछ तो बदलना ही पडेगा। यह तो तय ही हो चुका है कि योगी जी मुख्यमंत्री के ओहदे पर बरकरार रहेंगें और एलेक्शन भी योगी जी ही के नेतृत्व में लडा जायेगा मगर खबरों के मुताबिक योगी जी को ए0के0 शर्मा और राज्य के कानून मंत्री बृजेश पाठक के रूप में दो सहायक दिए जायेंगे । योगी जी ने इस बार अपनी कुर्सी बचाने में जिस तरह मोदी जी और अमित शाह को चैलेंज किया है उससे यह बात तय है कि योगी जी को दोनों को अपनी कैबिनेट में ऐडजस्ट करना होगा। सूत्रों का कहना है कि योगी को साथ लेकर चलना मोदी शाह की मजबूरी बन चुकी है क्योंकि रियासत में ही नहीं अब उनका कद राष्ट्रीय स्तर का हो गया है और आर0एस0एस0 की नजर मेें हिन्दुत्व ब्राण्ड के चेहरा के तौर पर मोदी के बाद सब से मजबूत लीडर हैं। कोरोना के कारण या पंचायत एलेक्शन में योगी की इमेज को जो धक्का लगा है वह अस्थायी है इसको सही करने लिये भी जरूरी है कि सरकार की कमान उनके ही हाथ में रहे।
बहेरहाल बीजेपी का यह संकट अभी खत्म नहीं हुआ है उसका अगला दौर जून के आखिर में होगा जब नये उपमुख्यमंत्रियों के नामों का एलान होगा।
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