लॉकडाउन के दौरान निजी कंपनियों को कर्मचारियों को पूरी सैलरी देने का आदेश देने वाली मोदी सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट में एकदम अलग रुख अपनाया है। सरकार ने कहा कि यह कंपनी और कर्मचारी के बीच का मसला है। यही नहीं सरकार ने कहा कि हम इसमें दखल नहीं देंगे। इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से 29 मार्च को आदेश जारी किया गया था कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान भी कंपनियों को एंप्लॉयीज को पूरी सैलरी देनी होगी। ऐसा न किए जाने पर उनके खिलाफ ऐक्शन होगा।
सरकार के इस आदेश पर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए रोक लगा दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आखिर सरकार कंपनियों से लगातार कितने दिन बिना काम के पूरी सैलरी देने की उम्मीद रखती है। इसके साथ ही कोर्ट ने होम मिनिस्ट्री के आदेश के पालन पर रोक लगा दी थी। अब जस्टिस अशोक भूषण की अगुवाई वाली बेंच ने कहा है कि 54 दिनों के लॉकडाउन के दौरान की सैलरी के भुगतान को लेकर कंपनियों और कर्मचारियों के बीच कोई सहमति बननी चाहिए।
लॉकडाउन के दौरान सैलरी के भुगतान को लेकर कंपनियों को आदेश देने की मांग वाली याजचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की। कोर्ट ने सरकार से कहा कि आपका यह पक्ष रहा है कि लॉकडाउन के दौरान भी कर्मचारियों को सैलरी का पूरा भुगतान होना चाहिए। ऐसे में अब आपको इस मसले के हल के लिए प्रयास करने चाहिए। बेंच में शामिल जस्टिस संजय किशन कौल ने केंद्र सरकार से कहा, ‘आप कर्मचारियों की जेब में पैसे डालने का प्रयास करते रहे हैं। ऐसे में अब कुछ समाधान किए जाने की जरूरत है।’
गौरतलब है कि लॉकडाउन लागू होने से पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कंपनियों से अपील की थी कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान कर्मचारियों की सैलरी में कटैौती नहीं की जानी चाहिए। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से इस संबंध में आदेश भी जारी किया गया था।
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