टीम इंस्टेंटखबर
सोनिया गाँधी ने कहा, हम ऐसे मौके पर मिल रहे हैं जब देश भर में किसानों और किसान संगठनों का आंदोलन जारी है। लगभग एक साल से किसान उन तीन काले कानूनों के खिलाफ संघर्षरत हैं जिन्हें जबरदस्ती संसद पर थोपा गया। हमने इन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन मोदी सरकार ने इन कानूनों को जबरदस्ती पास कराया ताकि निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा सके। इसके फौरन बाद ही किसानों ने आंदोलन शुरु कर दिया था और तब से अब तक उन्होंने काफी कुछ सहा है।

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि हाल के दिनों में लखीमपुर खीरी की घटना ने झकझोर कर रख दिया है और इससे साफ हो गया है कि बीजेपी किसान आंदोलन को किस तरह देखती है, जबकि किसान अपनी आजीविका बचाने का संघर्ष कर रहे हैं।

देश की अर्थव्यवस्था पर चिंता जताते हुए सोनिया ने कहा कि हालत बहुत बुरी है, सभी जानते हैं मगर केंद्र सरकार यह प्रचार करने में जुटी है कि सबकुछ ठीक है। सोनिया ने कहा हमें पता है कि आर्थिक स्थिति दुरुस्त करने के लिए सरकार बरसों के अथक परिश्रम से बनाई गई राष्ट्रीय संपत्तियों को बेच रही है। ध्यान रखना होगा कि सरकारी कंपनियां और संपत्तियां न सिर्फ देश का सामरिक और आर्थिक उद्देश्य पूरा करती हैं बल्कि सामाजिक लक्ष्य हासिल करने में भी इनका योगदान रहता है। मसलन अनुसूचित जाति/जनजातियों के सशक्तीकरण और पिछड़े क्षेत्रों के विकास में इन कंपनियों का बड़ा योगदान रहा है, लेकिन मोदी सरकार की ‘बेचो-बेचो’ नीति ने इस सबको पीछे धकेल दिया है। इस दौरान आवश्यक वस्तुओं के दाम, भोजन और तेल के दाम बेतहाशा तेजी से बढ़े हैं। क्यो कोई कल्पना कर सकता था कि देश में पेट्रोल-डीजल 100 रुपए प्रति लीटर के दाम पर बकेगा, गैस का सिलेंडर 900 से 1000 रुपए का होगा, खाने का तेल 200 रुपए लीटर होगा। इस सबसे देश के आम लोगों की जिंदगी दूभर हो गई है।

सोनिया ने कहा कि हाल के दिनों में जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों की हत्याओं में अनायास वृद्धि हुई है और उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। इस कृत्य की सख्त से सख्त शब्दों में निंदा की जानी चाहिए। मैं इसकी सख्त निंदा करती हूं। जम्मू-कश्मीर दो साल से केंद्र शासित प्रदेश है और वहां हो रही हत्याओं के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा लाने की जिम्मेदारी पूरी तरह केंद्र सरकार पर है। साथ ही जम्मू-कश्मीर में सामाजिक शांति और भाइचारे के साथ ही लोगों में विश्वास पैदा कनरे की जिम्मेदारी भी केंद्र सरकारी की ही है।

सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाते हुए सोनिआ गाँधी ने कहा, आज की तारीख में भारत की विदेश नीति चुनावी लामबंदी और ध्रुवीकरण का एक साधन बन गई है। हम अपनी सीमाओं और अन्य मोर्चों पर गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने पिछले साल विपक्षी नेताओं से कहा था कि चीन ने हमारे क्षेत्र पर कोई कब्जा नहीं किया है और तब से इस विषय पर उनकी चुप्पी देश को महंगी पड़ रही है।

विधानसभा चुनावों की बात करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि इसमें संदेह नहीं कि हमारे सामने कई चुनौतियां हैं, लेकिन अगर हम एकजुट हैं, हम अनुशासित हैं और सिर्फ पार्टी के हितों को ध्यान में रखते हैं तो मुझे भरोसा है कि हम चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करेंगे।

सोनिया ने कहा कि आज हम इस बैठक में इस मुद्दे पर स्पष्ट रूप से तय करेंगे कि संगठन चुनाव कब कराए जाएं। बीते दो साल के दौरान कांग्रेस के साथियों ने, खासतौर से युवा साथियों ने पार्टी के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है और पार्टी की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाया है। वह किसान आंदोलन का मुद्दों हो, कोरोना महामारी में लोगों को राहत पहुंचाने की बात हो, युवाओं और महिलाओं से जुड़े मुद्दे उठाना हो, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो, महंगाई और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को को ख्तम करने के फैसले हों, सब पर पार्टी ने एकजुट होकर आवाज उठाई है।