वॉशिंगटन: दुनिया भर में कोरोना वायरस की वैक्सीन पर काम चल रहा है. इस बीच, एक अध्ययन में कहा गया है कि अमेरिकी बायो टेक कंपनी मॉडर्ना (moderna) की COVID-19 वैक्सीन ने एक मजबूत प्रतिरक्षा क्षमता विकसित की है. साथ ही कोरोनावायरस को बंदरों की नाक तथा फेफड़ों में संक्रमण फैलाने से रोक दिया. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के एक अध्ययन में यह बात कही गई है.

टीके ने बंदर की नाक में संक्रमण फैलाने से रोका
स्टडी में कहा गया है कि इस टीके ने कोरोनावायरस को बंदर की नाक में संक्रमण फैलाने से रोका है और यह इसलिए अहम है कि क्योंकि इससे दूसरों में संक्रमण फैलने का खतरा कम हो जाता है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (oxford university) के टीके का परीक्षण जब बंदरों पर किया गया तो ठीक इसी तरह के परिणाम देखने को नहीं मिले थे. हालांकि, इस वैक्सीन ने वायरस को जानवरों के फेफड़ों में जाने और बहुत बीमार होने से रोका दिया था.

आठ बंदरों पर हुआ टेस्ट
मॉडर्ना की जानवरों पर स्टडी में कहा गया है कि आठ बंदरों के तीन समूहों को प्लेसीबो या फिर वैक्सीन के दो अलग-अलग डोज- 10 माइक्रोग्राम और 100 माइक्रोग्राम- दिए गए. जिन बंदरों को टीके लगाए गए थे, सभी ने वायरस को खत्म करने वाले एंटीबॉडीज का अच्छी खासी मात्रा में उत्पादन किया, जो सार्स कोव-2 (SARS-CoV-2) वायरस से मुकाबला करते हैं.

उल्टा भी हो सकता है असर
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि दोनों तरह की खुराक लेने वाले बंदरों में एंटी बॉडीज (anti bodies) का स्तर कोरोना से ठीक हुए इंसानों के एंटीबॉडीज से अधिक था. इस स्टडी के लेखकों ने बताया कि यह वैक्सीन विभिन्न प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिकाओं (immune cells) को विकसित भी करती है, जिन्हें टी-सैल के नाम से जाना जाता है. यह कोशिकाएं पूरे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र (immune system) को मजबूत करने में मदद करती हैं. हालांकि, चिंता की बात यह है कि विकसित किए जा रहे ये टीके बीमारी को दबाने के बजाए उन्हें बढ़ाकर उल्टा असर भी कर सकते हैं.

परीक्षण का प्रभाव
बंदरों को दूसरा इंजेक्शन देने के चार हफ्ते बाद उन्हें सार्स-कोव-2 वायरस के संपर्क में लाया गया. वायरस को बंदर की नाक और एक ट्यूब के जरिये सीधे फेफड़ों में पहुंचाया गया. दो दिन बाद, आठ में से सात बंदरों के फेफडों में वायरस का फिर से संक्रमण नहीं पाया है. इनमें अधिक और कम दोनों डोज लेने वाले बंदर शामिल हैं. इसके विपरीत, बंदरों के जिस समूह को प्लेसीबो दिया गया तो उनमें वायरस मौजूद था. वायरस के संपर्क में आने के दो दिन बाद भी जिन बंदरों को हाईडोज ग्रुप में रखा गया था, उनकी नाक में वायरस के पता लगाने योग्य स्तर नहीं निकला है.