इतनी कम उम्र का शिशु दुनिया का सबसे पहला प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन से गुजरने वाला इंसान बना, कोई अन्य दर्ज प्रमाण नहीं

मुंबई: महाराष्ट्र में स्थित मेडिकवर हॉस्पिटल्स के विशेषज्ञों की एक टीम ने ‘प्लाज्मा थेरेपी’ करके दो महीने के एक बच्चे की जान बचाई जो कोविड पॉजिटिव पाया गया था। विवादस्पद रूप से यह भारत (और दुनिया भर में) का सबसे नन्हा मरीज है जिसकी जिंदगी बचाने के लिए प्लाज्मा ट्रांसफ़्यूज़न किया गया था।

बच्चे को गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिसका 80% फेफेड़ा कोरोनावायरस से संक्रमित हो चुका था, जिसके परिणामस्वरूप उसे गंभीर निमोनिया हो गया था। साँस लेने में तकलीफ और तेज बुखार ने स्थिति को गंभीर बना दिया; और बच्चे पर कोविड-19 के पारंपरिक उपचार प्रोटोकॉल का कोई असर नहीं हो रहा था। रेमेडिसविर इंजेक्शन से लेकर हेपरिन थेरेपी तक, मरीज का हर संभव तरीके से उपचार करने की कोशिश की गई।

“बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह से विकसित नहीं होती है और इसलिए उन्हें संक्रामक रोग आसानी से लगने का जोखिम होता है; और कोरोनावायरस के ममले में भी ऐसा ही है। समाज में एक गलत धारणा फैली है कि बच्चों को कोविड -19 होने का जोखिम कम है, लेकिन तथ्य यही है कि ये वायरस बच्चों के लिए भी खतरनाक है,” डॉ. अनिल कृष्णा, चेयरमैन, मेडिकवर ग्रुप (इंडिया) ने कहा।

उपचार पर टिप्पणी करते हुए, डॉ. सुशील पारख, मेडिकल डायरेक्टर, मेडिकवर हॉस्पिटल्स ने कहा, “चूंकि बच्चे पर हर दूसरे उपचार का असर नहीं हो रहा था, इसलिए हमने आखरी रास्ते के रूप में प्लाज्मा थेरेपी करने का फैसला लिया। और मेडिकवर हॉस्पिटल्स के मेडिकल टीम की 22-दिनों की अथक कोशिशों के बाद, नन्हा वॉरियर ठीक हुआ और उसका अपनी माता के साथ पुनर्मिलन हुआ! अब शिशु को डिस्चार्ज कर दिया गया है और वह घर लौट चुका है और अस्पताल की एक विशेषज्ञ टीम द्वारा दूर से ही उसपर नज़र रखी जा रही है।”

कभी-कभी, समय पर अस्पताल ले जाने की बजाय, माता-पिता कोविड -19 की मौजूदा स्थिति के डर से घरेलू उपचार का सहारा लेने लगते हैं। कई बार परिणाम बुरे होते हैं। वैश्विक महामारी के इस समय के दौरान, यह महत्वपूर्ण है कि लोग लक्षणों को लेकर सतर्क रहें, और हालात हाथ से निकलने से पहले स्वास्थ्यसेवा केन्द्रों में जाएं।